फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: मां सावित्री और मां फातिमा हम क्षमाप्रार्थी हैं

By फिरदौस मिर्जा | Published: February 10, 2022 12:24 PM2022-02-10T12:24:47+5:302022-02-10T12:30:58+5:30

अनुच्छेद 25 और 29 अल्पसंख्यकों को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति की रक्षा का भी अधिकार देते हैं।

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फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: मां सावित्री और मां फातिमा हम क्षमाप्रार्थी हैं

Highlightsशिक्षा की कमी से ज्ञान की कमी होती है, जो न्याय की कमी की ओर ले जाती है।भारत के नागरिक होने के रूप में सद्भाव और बंधुत्व भावना को बढ़ावा देना अनिवार्य हो गया।केवल 2 प्रतिशत मुस्लिम लड़कियां ही उच्च शिक्षा के स्तर तक पहुंच पाती हैं।

प्रिय माताओं, मैं बालिकाओं को शिक्षित करने में आपके प्रयासों को सार्थक करने में हमारी सामूहिक विफलता को व्यक्त करने के लिए यह लिख रहा हूं. मैं क्षमाप्रार्थी हूं. शिक्षा की कमी से ज्ञान की कमी होती है, जो न्याय की कमी की ओर ले जाती है. इससे प्रगति की कमी होती है, जिसके कारण धन की कमी होती है और फलस्वरूप कमजोर जातियों का उत्पीड़न होता है. 

यह महात्मा ज्योतिबा फुले की शिक्षा थी जिन्होंने प्रतिपादित किया कि शिक्षा मनुष्य का अधिकार है और वे शिक्षा का सार्वभौमीकरण चाहते थे. आप दोनों इन शिक्षाओं का पालन करते हुए महिलाओं के लिए पहली शिक्षक बनीं. महिलाओं को दोयम दर्जे की स्थिति और गुलामी में रखने की प्रवृत्ति के कारण आपको जो परेशानी झेलनी पड़ी है. हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते.

संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने महात्मा फुले को अपना गुरु कहा और शिक्षा के अधिकार को प्राप्त करने के लिए संघर्ष जारी रखा. 26 जनवरी, 1950 को हमने भारत के संविधान को अपनाया और अधिनियमित किया जिसने हमारे साथ समान व्यवहार किया और व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित करते हुए भाईचारे की अपेक्षा की.

औपनिवेशिक शासन से आजादी पाने के उत्साह में और बेहतर भारत के सपने के साथ, हमने अनुच्छेद 39 में यह स्पष्ट किया कि सरकार अपनी नीतियों से यह सुनिश्चित करेगी कि बच्चों को सौहाद्र्रपूर्ण माहौल में और स्वतंत्रता तथा गरिमा की स्थिति में विकसित होने के अवसर और सुविधाएं दी जाएं. आगे अनुच्छेद 46 में हमने उल्लेख किया कि राज्य कमजोर वर्ग के लोगों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को विशेष रूप से बढ़ावा देगा.

अनुच्छेद 39 और 46 को निर्देशक सिद्धांतों के रूप में रखा गया है, लेकिन अनुभवों ने बताया कि इन सिद्धांतों का सम्मान नहीं किया जा रहा है, इसलिए हमने अनुच्छेद 51ए के अंतर्गत ‘मौलिक कर्तव्यों’ को जोड़ा, जिससे भारत के नागरिक होने के रूप में सद्भाव और बंधुत्व भावना को बढ़ावा देना अनिवार्य हो गया ताकि भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं से परे, भाईचारा सुनिश्चित किया जाए और महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं को त्यागा जाए.

प्रिय माताओं, संविधान बनाते समय हमारे पूर्वजों को अलग-अलग प्रवृत्तियों के बारे में पता था, मुख्य रूप से उसके बारे में जो कमजोर वर्गो, अल्पसंख्यकों और हाशिए पर के लोगों को दबाना चाहती है, इसलिए उन्होंने अनुच्छेद 25 और 29 को मौलिक अधिकारों के रूप में रखा, जो कि विवेक और व्यवसाय की स्वतंत्रता, अपने धर्म के पालन और प्रचार-प्रसार की गारंटी देते हैं तथा अल्पसंख्यकों को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति की रक्षा का भी अधिकार देते हैं. 

प्रिय माताओं, आजादी के बाद से लगभग 70 वर्षो तक हमने अपनी बेटियों की शैक्षिक स्थिति में सुधार करने की कोशिश की, यहां तक कि हमारे प्रधानमंत्री ने भी ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का आह्वान किया. फिर भी आश्चर्यजनक रूप से, कर्नाटक में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने के कारण स्कूलों में प्रवेश करने से रोक दिया गया, क्योंकि यह ड्रेस कोड का उल्लंघन करता है. 

हाल की रिपोर्टो में प्रकाशित हुआ है कि केवल 2 प्रतिशत मुस्लिम लड़कियां ही उच्च शिक्षा के स्तर तक पहुंच पाती हैं. यह भी बताया गया कि मुस्लिम छात्र अन्य समुदायों के 45.2 प्रतिशत राष्ट्रीय औसत की तुलना में सरकारी संस्थानों पर बहुत अधिक यानी 54.1 प्रतिशत भरोसा करते हैं.

प्रिय माताओं, क्योंकि आप इस बात से भली-भांति वाकिफ थीं कि लड़कियां शिक्षित होंगी तो वे अपनी आने वाली पीढ़ी को पढ़ाएंगी और शिक्षित वर्ग गुलामी में नहीं रहेगा, इसलिए आने वाली पीढ़ियों के लिए, जिन प्रवृत्तियों के खिलाफ आप खड़ी रहीं, वे प्रवृत्तियां धर्म के नाम पर मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा तक पहुंच को प्रतिबंधित करने का षड्यंत्र रच रही हैं.

माताओं, पहले उन्होंने महामारी के नाम पर स्कूलों को बंद करके हाशिए पर के सभी बच्चों के साथ ऐसा किया, हालांकि बड़ी चुनावी रैलियों और धार्मिक सभाओं का आयोजन जारी रखा. उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि वे ऑनलाइन शिक्षा देंगे लेकिन वचरुअल वल्र्ड तक पहुंचने के लिए दलितों के लिए बुनियादी ढांचा प्रदान करना भूल गए.

प्रिय माताओं, हम एक राष्ट्र के रूप में अपनी बेटियों को रूढ़िवादी प्रवृत्तियों से बचाने में विफल रहे हैं, हम उनके शिक्षा के अधिकार की रक्षा करने में विफल रहे हैं. वास्तव में, हमने आपको और आपके मिशन को विफल कर दिया है. हम उन लोगों के अनुयायियों से हारे हैं जिन्होंने आपका विरोध किया. प्रिय माताओं, कृपया हमें क्षमा करें

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