पीयूष पांडे का ब्लॉग: ड्रग्स की खबरें बनाम मौसमी व्यंग्यकार

By पीयूष पाण्डेय | Published: September 26, 2020 04:01 PM2020-09-26T16:01:10+5:302020-09-26T16:01:10+5:30

‘‘फालतू बात नहीं. एक तो हिंदुस्तान का हर दूसरा शख्स खुद को कवि मानता है. हर चौथे शख्स के पास अपनी लिखी कविताओं की डायरी है. हर छठे शख्स ने कविता की किताब छपवाई है.’’

Piyush Pandey's blog: news of drugs vs seasonal satirist | पीयूष पांडे का ब्लॉग: ड्रग्स की खबरें बनाम मौसमी व्यंग्यकार

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

‘‘माल है क्या?’’ पड़ोसी वर्माजी ने घर में घुसते ही सवाल उछाला. मैंने कहा- ‘‘मेरे पास माल के रूप में सिर्फ व्यंग्य होता है.’’ वे बोले- ‘‘मैं भी उसी माल की बात कर रहा था. आप शायद कोई और माल चाह रहे थे, इसलिए चौंके.’’

मैंने मुद्दा बदलते हुए कहा- ‘‘आप इतनी सुबह-सुबह आए हैं, जरूरी काम होगा.’’ वे बोले- ‘‘हां, मैं व्यंग्यकार बनना चाहता हूं.’’

अब चौंकने की बारी मेरी थी. मैंने वर्माजी को समझाया- ‘‘व्यंग्य क्यों, लेख लिखिए. आप विचारवान शख्स हैं, जिसके पास हर उस बात पर कोई विचार है, जिस पर विचार ने भी कभी विचार नहीं किया.’’

वे व्यंग्य समझ नहीं पाए अलबत्ता बोले- ‘‘ये बात ठीक है कि मेरे दिमाग में विचारों का जखीरा है. लेकिन, मैं उसे व्यंग्य में तब्दील करना चाहता हूं. व्यंग्य में लोकप्रियता ज्यादा है. आप खुद देखिए, धीरे-धीरे कितने लोकप्रिय हो रहे हैं.

वरना आपकी!!’’ उन्होंने मुंह पर मेरी उसी तरह बेइज्जती की, जिस तरह नेताजी हाथ जोड़कर विकास का ककहरा पढ़कर वोट मांगते हुए जनता की करते हैं. लेकिन जिस तरह जनता नेताजी का कुछ उखाड़ नहीं पाती, मैं पड़ोसी धर्म के चक्कर में वर्माजी का कुछ बिगाड़ नहीं पाया. ‘‘तो आप कविता के जरिये लोकप्रिय होने की कोशिश कीजिए’’ मैंने सुझाव दिया.

‘‘फालतू बात नहीं. एक तो हिंदुस्तान का हर दूसरा शख्स खुद को कवि मानता है. हर चौथे शख्स के पास अपनी लिखी कविताओं की डायरी है. हर छठे शख्स ने कविता की किताब छपवाई है.’’

मैं समझ गया कि वे नहीं मानेंगे. मैं उन्हें कोई टिप्स नहीं देना चाहता था, क्योंकि बेवजह प्रतिस्पर्धी पैदा करना आज के जमाने में अक्लमंदी का काम नहीं. लेकिन कोई चारा नहीं बचा तो कहा- ‘‘आप मौसमी व्यंग्यकार बन जाइए.’’
‘‘मौसमी व्यंग्यकार?’’ वे चौंके.

मैंने कहा- ‘‘ड्रग्स का मुद्दा गरम है. आप एक दो व्यंग्य इस पर ठेल दीजिए. इस सीजन में दो चार व्यंग्य छप गए तो आप अपने आप व्यंग्यकार मान लिए जाएंगे.’’

‘‘सही कह रहे हो गुरु. लेकिन क्या लिखूं.’’ वे बुदबुदाए और आला दर्जे के नशेड़ी की तरह सोफे पर पसर गए. मैंने कहा- ‘‘कुछ भी. ड्रग्स ऐसी चीज है, जिसके बारे में लोग सुन बहुत रहे हैं, पता किसी को कुछ नहीं. फिर, किसी भी नशेड़ी पर कुछ भी लिखो, कोई खंडन नहीं करेगा.

किसी की मानहानि हो भी गई तो कोर्ट में कह दीजिएगा-माई लॉर्ड ड्रग्स पर प्रामाणिक व्यंग्य लिखने के चक्कर में थोड़ा असली माल खुद फूंक लिया था. गलती हो गई. माफ कीजिए.’’ वे मुस्कुराए- ‘‘सही कहा. और एक-दो रुपए का जुर्माना हुआ भी तो अपन भर देंगे. है न?’’

Web Title: Piyush Pandey's blog: news of drugs vs seasonal satirist

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