पीयूष पांडे का ब्लॉग: भांति-भांति के नशों का रहस्यलोक

By पीयूष पाण्डेय | Published: September 12, 2020 01:56 PM2020-09-12T13:56:56+5:302020-09-12T13:56:56+5:30

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के चंगुल में फंसा हर आरोपी अधिकारियों को समझाने की कोशिश करता है कि उसका ड्रग्स से कोई वास्ता नहीं और वो किसी बड़ी साजिश का शिकार हुआ है, उसी तरह मैंने अपने आलाकमान उर्फ पिताश्री को बहुत समझाने की कोशिश की थी कि मैं मुहल्ले के कुछ लड़कों की साजिश का शिकार हुआ

Piyush Pandey blog over Drug: mystery of various drugs | पीयूष पांडे का ब्लॉग: भांति-भांति के नशों का रहस्यलोक

पीयूष पांडे का ब्लॉग: भांति-भांति के नशों का रहस्यलोक

एक महाकवि ने लिखा है, ‘नशा शराब में होता तो नाचती बोतल.’ उक्त कवि ने इतनी सुंदर पंक्तियां क्या स्वयं किसी नशे में लिखी थीं अथवा सामान्य रहते हुए यह प्रेरक वचन जन्मे, इस पर कोई शोध नहीं हुआ है अलबत्ता कई नशेबाज यदा-कदा इस पंक्ति को दोहराते दिखते हैं. नशा कई तरह का होता है, लेकिन मैं अधिक के विषय में नहीं जानता. इसकी कई वजह हैं.

पहली, मैंने किशोरावस्था में होली पर भांग का नशा किया तो तीन दिन तक हंसता रहा. हंस-हंसकर जब मैं रुका तो पिताजी ने इतना धुना कि मैं तीन दिन तक रोता रहा. जिस तरह नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के चंगुल में फंसा हर आरोपी अधिकारियों को समझाने की कोशिश करता है कि उसका ड्रग्स से कोई वास्ता नहीं और वो किसी बड़ी साजिश का शिकार हुआ है, उसी तरह मैंने अपने आलाकमान उर्फ पिताश्री को बहुत समझाने की कोशिश की थी कि मैं मुहल्ले के कुछ लड़कों की साजिश का शिकार हुआ. लेकिन जब पिताश्री ने साजिश के विषय में पूछा तो मैं उसी तरह चुप रह गया, जैसे घोटाले में फंसा नेता चुप रह जाता है.

घोटालेबाज नेता ने घोटाला किया होता है, इसलिए वो कुछ नहीं बोल पाता, और मैं इसलिए कुछ नहीं बोल पाया था, क्योंकि मुहल्ले के लड़कों ने एक कथित प्रेम प्रसंग के चक्कर में मेरा कांड किया था. जिस तरह राजनीतिक आलाकमान के समक्ष गड़बड़ी की खबर टिकट कटा सकती है, उसी तरह पिता रूपी आलाकमान के समक्ष प्रेम प्रसंग का जिक्र  करने का अर्थ था, जवानी की दहलीज पर कदम रखने से पहले जवानी से हाथ धो बैठना.

कालांतर में मैं हिंदी पत्नकार हो गया. हिंदी पत्नकार-लेखक इतना मजबूर टाइप आदमी होता है कि उसके लिए नियमित रूप से नशा करना संभव नहीं. इस दर्द को वही समझ सकता है, जो इसे जीता है. यदा-कदा किसी पार्टी में फ्री की मिली तो मैंने भी उड़ाई है. सच कहूं तो वो शौक कम बल्कि फ्री का माल लूटने की प्रवृत्ति अधिक होती है. आजकल ड्रग्स की बातें हो रही हैं.

न्यूज चैनल देखने वाले बच्चे कखगघ से ज्यादा अफीम, गांजा, हेरोइन, एमडीएमए, कोकीन, एलएसडी वगैरह का नया ककहरा सीख रहे हैं. जिस तरह सरकार की सैकड़ों नीतियों के बारे में आम आदमी नहीं जानता, उसी तरह इन नशों का रहस्यलोक ऐसा है कि अच्छा खासा पढ़ा-लिखा आदमी इनके विषय में नहीं जानता.

मेरे बेटे ने मुझसे पूछा- ‘‘आपने कभी एमडीएमए देखी है?’’ पहले पहल मुङो लगा कि वो दक्षिण भारत के राजनीतिक दल एआईएडीएमके के बारे में पूछ रहा है. मैंने कहा, ‘‘हां जयललिता को एक बार देखा था.’’ इस उत्तर को सुनकर बेटे ने जिस हिकारत के भाव से मुङो देखा, उसने मेरे सारे किताबी ज्ञान को शून्य साबित कर दिया.
 

Web Title: Piyush Pandey blog over Drug: mystery of various drugs

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