पवन के वर्मा का ब्लॉगः राम मंदिर के लिए वार्ता ही बेहतर विकल्प

By पवन के वर्मा | Published: November 19, 2018 04:06 PM2018-11-19T16:06:22+5:302018-11-19T16:06:22+5:30

इस  मुद्दे को हल करने के लिए वार्ता एक आदर्श तरीका होगा. इसके लिए दोनों पक्षों को अपने अनावश्यक कट्टरपंथी तत्वों को नियंत्रित रखने की जरूरत पड़ेगी. 

Pawan K. Verma's blog: Talks for Ram temple is better option | पवन के वर्मा का ब्लॉगः राम मंदिर के लिए वार्ता ही बेहतर विकल्प

पवन के वर्मा का ब्लॉगः राम मंदिर के लिए वार्ता ही बेहतर विकल्प

मैं समझ नहीं पाता कि क्यों किसी को - चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम या किसी अन्य धर्म को मानने वाला- अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का विरोध करना चाहिए. यहां तक कि एक नास्तिक भी यह स्वीकार करेगा कि पूरी तरह से संख्यात्मक लोकतंत्र के संदर्भ में, ऐसे लाखों हिंदू हैं जो भगवान राम का वहां एक मंदिर बनाना चाहते हैं जहां वे पैदा हुए थे. जो नास्तिक नहीं हैं लेकिन यह मानते हैं कि मंदिर बनाने में पैसा खर्च करने के बजाय अस्पताल या स्कूल के निर्माण में उसका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है, वे बहुत ज्यादा भोले हैं. पहली बात तो यह कि हमें अस्पताल और स्कूल तो निश्चित रूप से चाहिए लेकिन जो धार्मिक विश्वास रखते हैं उन्हें पूजा की जगह भी चाहिए. और यदि ‘विकासात्मक’ नजरिया इतना ही मजबूत है तो राष्ट्रपति भवन को अस्पताल में परिवर्तित करने का अभियान क्यों नहीं चलाया जाता, जैसा कि महात्मा गांधी 1947 में करना चाहते थे? 

भगवान राम एक बहुत ही प्यारे और सम्मानित देवता हैं. वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं. रामायण- चाहे वह वाल्मीकि या कम्बन की हो, या तुलसीदास का बेहद लोकप्रिय रामचरितमानस- केवल साहित्यिक प्रतिभा की कृति नहीं है, बल्कि बहुत पवित्र ग्रंथ हैं. जनमान्यता है कि राम सही आचरण की कसौटी हैं और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं. जब एक हिंदू का देहांत होता है तो उसकी शवयात्र के दौरान लोग ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हैं. महात्मा गांधी, जो चाहते थे कि आजाद भारत राम राज्य जैसा हो, हत्यारे की गोलियां लगने के बाद मृत्यु के पहले उनके मुख से जो आखिरी दो शब्द निकले थे, वे थे : ‘हे राम!’

इसलिए, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का विरोध करने के लिए कोई विश्वसनीय आधार नहीं हो सकता. सवाल पूछा जा सकता है कि इसे कैसे बनाया जाए. आमतौर पर माना जा रहा है कि मामले को या तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के जरिए सुलझाया जाना चाहिए या विवाद के सभी हितधारकों के बीच आपसी समझौते के जरिये इसका निपटारा होना चाहिए. लेकिन निजी तौर पर मैं इस बारे में सुनिश्चित नहीं हूं कि विश्वास के मामले को कानूनी हस्तक्षेप द्वारा निश्चित रूप से तय किया जा सकता है या नहीं. अदालत स्वामित्व का फैसला कर सकती है, हालांकि विरोधाभासी साक्ष्यों को देखते हुए यह भी आसान नहीं होगा. लेकिन यदि फैसला आ भी जाए और यह जिसके खिलाफ जाए वह इसका विरोध करे तो क्या विवाद अंतिम रूप से खत्म हो पाएगा?
 
इसलिए दूसरा विकल्प ज्यादा बेहतर है. इस  मुद्दे को हल करने के लिए वार्ता एक आदर्श तरीका होगा. इसके लिए दोनों पक्षों को अपने अनावश्यक कट्टरपंथी तत्वों को नियंत्रित रखने की जरूरत पड़ेगी. 

Web Title: Pawan K. Verma's blog: Talks for Ram temple is better option

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