अवधेश कुमार का ब्लॉग: दलीय भ्रष्टाचार का अंत हो, पर सावधानी बरतना भी जरूरी
By अवधेश कुमार | Published: September 13, 2022 11:36 AM2022-09-13T11:36:55+5:302022-09-13T11:38:53+5:30
लोकतंत्र में यदि कोई व्यक्ति अपने विचार के अनुसार किसी दल का पंजीकरण कराता है और उसका इरादा नेक है तो उसके अधिकार का दमन नहीं होना चाहिए। किसी दल की सदस्य संख्या कम होने या गतिविधियां न के बराबर होने के कारण उसे संदेह के घेरे में लाना उचित नहीं है।
इस समाचार से किसी को चौंकना नहीं चाहिए कि आयकर विभाग ने पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के ठिकानों पर कर चोरी के मामले में एक साथ कई राज्यों में छापा मारा। जितनी सूचनाएं बाहर आईं उनके अनुसार आयकर विभाग ने इस संदर्भ में गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा और कुछ अन्य राज्यों में लगभग 110 ठिकानों पर छापेमारी की है।
इन सभी राजनीतिक दलों पर संदिग्ध फंड जुटाने से लेकर कर चोरी करने का आरोप है। आयकर विभाग के अनुसार पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) और उनसे जुड़ी संस्थाओं, ऑपरेटरों और अन्य के खिलाफ एक समन्वित कार्रवाई शुरू की गई है। ऐसे अनेक दलों पर चंदे के नाम पर धोखाधड़ी व कर चोरी का आरोप लंबे समय से लगता रहा है।
चुनाव आयोग ने भौतिक सत्यापन के दौरान गैर-मौजूद पाए जाने के बाद कुल मिलाकर 198 ऐसे दलों को उसकी आरयूपीपी वाली सूची से हटा दिया है। राज्य चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय चुनाव आयोग को रिपोर्ट दी और उसके आधार पर आयकर विभाग को कार्रवाई की सिफारिश की गई। पहली नजर में किसी लोकतंत्र की दृष्टि से यह गंभीर मामला है।
यह सच है कि बहुत सारे लोग निहित स्वार्थों के तहत पार्टी बनाकर उनका निबंधन कराते हैं ताकि वह अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए दल के अध्यक्ष या संस्थापक होने के प्रभाव का उपयोग कर सकें। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 सी के तहत ऐसे दल यदि चंदे का विवरण देते हैं तो उन्हें आयकर में 100 फीसदी छूट मिलती है। इस कानून की धारा 29 ए (9) साफ कहती है कि पार्टियां आवश्यक जानकारियां आयोग को बिना देरी मुहैया कराएं।
ज्यादातर ऐसे निबंधित दल इसका अनुपालन नहीं करते। 2019 के लोकसभा चुनाव में ही निबंधित 70 फीसदी दलों ने चुनाव ही नहीं लड़ा था।
वास्तव में चुनाव आयोग लंबे समय से ऐसे दलों को लेकर कई प्रकार के कदम उठाता रहा है। किंतु सभी ऐसे दलों को संदेह के घेरे में लाना और उनको अपराधी मान लेना गलत होगा।
लोकतंत्र में यदि कोई व्यक्ति अपने विचार के अनुसार किसी दल का पंजीकरण कराता है और उसका इरादा नेक है तो उसके अधिकार का दमन नहीं होना चाहिए। किसी दल की सदस्य संख्या कम होने या गतिविधियां न के बराबर होने के कारण उसे संदेह के घेरे में लाना उचित नहीं है। कई बार छोटे दल किसी पते से अपना निबंधन कराते हैं लेकिन वह पता बदल जाता है या फिर उन्हें कोई उपयुक्त ऑफिस नहीं मिलता।
हालांकि वे अगर सक्रिय हैं तो उन्हें अपने पत्र आदि प्राप्त करने की व्यवस्था करनी चाहिए और जब चुनाव आयोग उन्हें सत्यापन के लिए बुलाए तो उपस्थित होना चाहिए। अगर वे इतना भी नहीं करते तो संदेह पैदा होता है।