Parliament Session: मोदी सरकार ने शायद विवादास्पद प्रसारण विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया है और वक्फ (संशोधन) विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने पर सहमति हो गई है. वह संसद द्वारा 2023 में पारित किए जाने के एक साल बाद भी डाटा संरक्षण अधिनियम से संबंधित नियम जारी नहीं कर पाई है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विदेशियों सहित सभी हितधारकों की चिंताओं का ध्यान रखा जाएगा. सरकार ने बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य यानी जून 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के अपने दम पर बहुमत हासिल करने में विफल रहने को देखते हुए सुरक्षित दांव चला है.
लेकिन उसने चुपचाप अपने प्रमुख सहयोगियों जैसे जनता दल (यू) और तेलुगू देशम पार्टी का समर्थन ‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता विधेयक और एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर सुनिश्चित करके अपनी सफलताओं की श्रृंखला में एक और उपलब्धि हासिल कर ली. दोनों ही मोदी 0.3 के प्रमुख सहयोगी हैं और उनके स्पष्ट समर्थन के बिना, ये विधेयक संसद में पारित नहीं हो सकते.
जब प्रधानमंत्री मोदी स्वतंत्रता दिवस के भाषण में लाल किले की प्राचीर से ‘धर्मनिरपेक्ष समान नागरिक संहिता’ विधेयक के बारे में बोल रहे थे, तो दोनों सहयोगी मुस्कुरा रहे थे. यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री ने पिछले दस वर्षों के अपने कार्यकाल के दौरान ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द का इस्तेमाल किया. अब तक भाजपा ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द का मजाक उड़ाती थी और विरोधियों को ‘छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी’ कहती थी.
मोदी को एक और बड़ी उपलब्धि तब हासिल हुई जब इन सहयोगियों ने सरकार को ‘एक देश एक चुनाव’ के मुद्दे पर भी अपना पूरा समर्थन दिया. हालांकि यह एक लंबी प्रक्रिया होगी लेकिन सहयोगियों के समर्थन से रास्ता आसान हो जाएगा. विपक्षी दल पहले से ही चिंतित हैं कि हर गुजरते दिन के साथ उनके सांसदों की खरीद-फरोख्त हो रही है.
राज्य सरकारें अपने अस्तित्व पर खतरे का सामना कर रही हैं. दोनों सहयोगियों के बल पर इन विधेयकों को पारित कराना भले ही बहुत आसान हो जाए लेकिन जब लेटरल एंट्री के जरिये 45 पदों को भरने की बात आई तो सरकार दबाव में आ गई और प्रस्ताव वापस ले लिया.
खिलाड़ियों पर हुड्डा का प्रभाव
सत्तारूढ़ दल मोदी राज में खिलाड़ियों के बढ़ते ओलंपिक पदकों का समुचित श्रेय भले ही ले रहा हो, लेकिन उसे इस बात से परेशानी है कि हुड्डा परिवार का हरियाणा के खिलाड़ियों पर जबरदस्त प्रभाव है. वह इस बात से नाराज है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे लोकसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने यह सुनिश्चित किया कि हरियाणा की ओलंपियन मनु भाकर इन पदक विजेताओं के प्रधानमंत्री या खेल मंत्री से मिलने से पहले ही सोनिया गांधी से मिलें. लेकिन मौका ऐसा है कि सत्ताधारी दल इस बारे में सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कह सकता.
हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव में विनेश फोगाट और साइना नेहवाल के बीच कड़ी चुनावी जंग की संभावना उभरने के बाद भाजपा भी इस पर कड़ी नजर रख रही है. दीपेंद्र सिंह हुड्डा पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उनकी पार्टी राज्यसभा की एकमात्र सीट के लिए विनेश फोगाट का समर्थन करेगी, जहां उपचुनाव होना है.
हुड्डा के लोकसभा में निर्वाचित होने के बाद यह सीट खाली हुई थी. लेकिन विनेश फोगाट ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, क्योंकि भाजपा इस सीट पर जीत दर्ज करने जा रही है. हालांकि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने विनेश फोगाट को पदक जीतने में विफल रहने के बावजूद, उनके शानदार प्रदर्शन के लिए चार करोड़ रुपए का नगद पुरस्कार दिया.
यह भी पता चला है कि भाजपा पूर्व बैडमिंटन चैंपियन साइना नेहवाल को मैदान में उतारने पर विचार कर रही है. दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा की दो मशहूर हस्तियों विनेश और साइना के बीच प्रतिद्वंद्विता तब सामने आई जब साइना ने एक बयान जारी किया जो विनेश को बहुत पसंद नहीं आया. इस मामले का उपसंहार होना अभी बाकी है.
आरएसएस क्यों चाहता है भाजपा प्रमुख ओबीसी हो?
केरल में 31 अगस्त से 2 सितंबर के बीच होने वाली आरएसएस की सर्वोच्च संस्था ‘प्रतिनिधि सभा’ के कोर ग्रुप में भाजपा के नए अध्यक्ष के मुद्दे पर चर्चा की संभावना नहीं है. खबरों की मानें तो नियमित अध्यक्ष चुने जाने तक अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त करने को लेकर आरएसएस और भाजपा के बीच कुछ बातचीत चल रही है.
आरएसएस उन राज्यों में भाजपा के विस्तार कार्यक्रम को मजबूत करने के लिए अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगा, जहां उसे अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए ओबीसी पसंदीदा हो सकता है. भाजपा नेतृत्व ने पहले ही संगठनात्मक चुनाव कराने का विस्तृत कार्यक्रम घोषित कर दिया है, ताकि 2025 की शुरुआत में पूर्णकालिक अध्यक्ष चुना जा सके.
लेकिन समझा जाता है कि आरएसएस अंतरिम अध्यक्ष के लिए उत्सुक है. आरएसएस ओबीसी का समर्थन हासिल करने पर भी ध्यान केंद्रित कर सकता है, एक ऐसा समुदाय, जिसे अब इंडिया गठबंधन की पार्टियों के साथ अधिक माना जाता है. भगवा परिवार को चिंता यह है कि कांग्रेस ने 90 के दशक की शुरुआत में ‘मंडल आयोग’ की रिपोर्ट के कार्यान्वयन का विरोध करने के बाद ओबीसी का समर्थन खो दिया था, लेकिन राहुल गांधी उनके हितों के मुद्दे उठाकर भाजपा को पीछे धकेलते हुए उनका समर्थन हासिल कर रहे हैं.
निजी क्षेत्र से शीर्ष नौकरशाही पदों पर 45 लेटरल एंट्रेंट की भर्ती के मामले में भी राहुल गांधी ने सरकार पर बड़े पैमाने पर ऐसी भर्तियों में ओबीसी, एससी और एसटी के हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाकर सुर्खियां बटोरीं. भाजपा नेतृत्व इस मुद्दे को अगले साल तक टालना चाहता है जब संगठनात्मक चुनाव होंगे. इस संबंध में अभी अंतिम फैसला होना बाकी है.