पराली बढ़ा सकती है खेत की उर्वरता
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 17, 2018 06:41 PM2018-10-17T18:41:57+5:302018-10-17T18:41:57+5:30
एक अनुमान है कि हर साल अकेले पंजाब और हरियाणा के खेतों में कुल तीन करोड़ 50 लाख टन पराली या अवशेष जलाया जाता है।
- पंकज चतुर्वेदी
इन दिनों दिल्ली और उसके आसपास दो सौ किलोमीटर में फैली आबादी के लिए सांस लेना दूभर हो गया है। यही हाल सीमापार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भी है। ‘नासा’ द्वारा खींचे गए सैटेलाइट चित्र से स्पष्ट हो गया है कि इंसान के लिए जानलेवा बन रहे इस धुएं का बड़ा हिस्सा खेतों में पराली जलाने से उपज रहा है। यह सभी जानते हैं कि हरियाणा और पंजाब में ज्यादातर किसान पिछली फसल काटने के बाद खेतों के अवशेषों को उखाड़ने के बजाए खेत में ही जला देते हैं या फिर ऐसे ही बर्बाद होने देते हैं। यह न केवल जमीन की उर्वरा शक्ति को प्रभावित करता है, बल्कि यदि थोड़ी समझदारी दिखाई जाए तो किसान फसल अवशेषों से खाद बनाकर अपने खेत की उर्वरता बढ़ा सकते हैं।
एक अनुमान है कि हर साल अकेले पंजाब और हरियाणा के खेतों में कुल तीन करोड़ 50 लाख टन पराली या अवशेष जलाया जाता है। एक टन पराली जलाने पर बड़ी मात्र में सल्फर डायऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाय ऑक्साइड और राख निकलती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब कई करोड़ टन अवशेष जलते हैं तो वायुमंडल की कितनी दुर्गति होती होगी। इन दिनों सीमांत व बड़े किसान मजदूरों की उपलब्धता की दिक्कत से बचने के लिए खरीफ फसल, खासतौर पर धान काटने के लिए हार्वेस्टर जैसी मशीनों का सहारा लेते हैं। इस तरह की कटाई से फसल के तने का अधिकांश हिस्सा खेत में ही रह जाता है। खेत की जैवविविधता का संरक्षण बेहद जरूरी है, खासतौर पर जब पूरी खेती ऐसे रसायनों द्वारा हो रही है जो कृषि-मित्र सूक्ष्म जीवाणुओं को ही चट कर जाते हैं।
हालांकि सरकार ने पराली जलाने को आपराधिक कृत्य घोषित कर दिया है और किसानों को इससे बचने के लिए प्रोत्साहन राशि आदि भी दी जा रही है, लेकिन परंपरा से बंधे किसान अभी भी इससे मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। किसान चाहें तो गन्ने की पत्तियों, गेहूं के डंठलों जैसे अवशेषों से कंपोस्ट तैयार कर सकते हैं। इसी तरह जहां मवेशियों के लिए चारे की कमी नहीं है, वहां धान के पुआल को खेत में ढेर बनाकर खुला छोड़ने के बजाय गड्ढों में कम्पोस्ट बनाकर उपयोग कर सकते हैं। आलू और मूंगफली जैसी फसलों को खुदाई कर बचे अवशेषों को भूमि में जोत कर मिला देना चाहिए। मूंग व उड़द की फसल में फलियां तोड़कर खेत में मिला देना चाहिए।
( पंकज चतुर्वेदी स्तंभकार हैं।)