पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉगः बगैर बछड़े के नहीं बचेगा देहात

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 17, 2019 11:31 AM2019-02-17T11:31:39+5:302019-02-17T11:31:39+5:30

जरा हमारे तंत्र में बैल की अनुपयोगिता या उसके आवारा होने की हकीकत पर गौर करें तो पाएंगे कि हमने अपनी परंपरा को त्याग कर खेती को न केवल महंगा किया, बल्कि गुणवत्ता, रोजगार, पलायन, अनियोजित शहरीकरण जैसी दिक्कतों का भी बीज बोया.

Pankaj Chaturvedi's blog: Without a calf, the countryside will not be left | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉगः बगैर बछड़े के नहीं बचेगा देहात

पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉगः बगैर बछड़े के नहीं बचेगा देहात

पंकज चतुर्वेदी

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य जहां की अर्थव्यवस्था या समृद्धि का मूल आधार खेती-किसानी है; के वर्ष 2019 के सालाना बजट में एक अजब प्रावधान किया गया है- सरकारी स्तर पर ऐसी योजना लागू की जा रही है ताकि गाय के बछड़े पैदा हों ही नहीं, बस बछिया ही हो. इसके लिए बजट में पचास करोड़ का प्रावधान रखा गया है ताकि राज्य की देशी गायों का गर्भाधान करवा कर केवल बछिया पैदा होना सुनिश्चित किया जा सके.  इसके पीछे कारण बताया गया है कि इससे आवारा पशुओं की समस्या से निजात मिलेगी. कैसी विडंबना है कि जिस देश में मंदिर के बाहर बैठे पाषाण नंदी को पूजने के लिए लोग लंबी पंक्तियों में लगते हैं, वहां साक्षात नंदी का जन्म ही न हो, इसके लिए सरकार भी वचनबद्ध हो रही है.  

जरा हमारे तंत्र में बैल की अनुपयोगिता या उसके आवारा होने की हकीकत पर गौर करें तो पाएंगे कि हमने अपनी परंपरा को त्याग कर खेती को न केवल महंगा किया, बल्कि गुणवत्ता, रोजगार, पलायन, अनियोजित शहरीकरण जैसी दिक्कतों का भी बीज बोया. पूरे देश में एक हेक्टेयर से भी कम जोत वाले किसानों की तादाद 61.1 फीसदी है. देश में 1950-51 में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 53.1 फीसदी हुआ करता था. 

संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा में अब इसे 13.9 फीसदी बताया गया है. ‘नेशनल सैंपल सर्वे’ की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 40 फीसदी किसानों का कहना है कि वे केवल इसलिए खेती कर रहे हैं क्योंकि उनके पास जीवनयापन का कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है. जरा गौर करें कि जब एक हेक्टेयर से कम रकबे के अधिकांश किसान हैं तो उन्हें ट्रैक्टर की क्या जरूरत थी, उन्हें बिजली से चलने वाले पंप या गहरे ट्यूबवेल की क्या जरूरत थी. उनकी थोड़ी सी फसल के परिवहन के लिए वाहन की जरूरत ही क्या थी. एक बात जान लें कि ट्रैक्टर ने किसान को सबसे ज्यादा उधार में डुबोया, बैल से चलने वाले रहट की जगह नलकूप व बिजली के पंप ने किसान को पानी की बर्बादी और खेती लागत को विस्तार देने पर मजबूर किया.

Web Title: Pankaj Chaturvedi's blog: Without a calf, the countryside will not be left

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