पंकज चतुव्रेदी का ब्लॉग: नदियों का काल बनता रेत खनन
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 26, 2020 03:05 PM2020-02-26T15:05:28+5:302020-02-26T15:05:28+5:30
रेत के बगैर सरकार के विकास का रथ आगे नहीं बढ़ सकता. देश के विकास का मानक भले ही अधिक से अधिक पक्का निर्माण हो, ऊंची अट्टालिकाएं और सीमेंट से बनी चिकनी सड़कें आधुनिकता का मानक हों, लेकिन ऐसी चमक-दमक का मूल आधार बालू या रेत, जीवनदायिनी नदियों के लिए जहर साबित हो रहा है
मध्यप्रदेश के चंबल क्षेत्र की सिंध नदी अभी कुछ दशक तक सदानीरा थी. अब इसमें बमुश्किल छह महीने ही पानी रहता है. इसके सूखने से पहले ही बड़ी-बड़ी मशीनें रेत निकालने में लग जाती हैं. जब पानी बरसता है, नदी में लहर आने के दिन होते हैं तो रेत-विहीन नदी में जल-धार गिरते ही पाताल में लुप्त हो जाती है. उजाड़ हो गई सिंध के सूखने के चलते इसके किनारे बसे गांवों का जलस्तर दो सौ से तीन सौ फुट तक नीचे जा चुका है. यह सभी जानते हैं कि यदि पानी चाहिए तो चंबल को फिर जिलाना होगा और इसके लिए इसकी सतह पर रेत की मोटी परत के बगैर कुछ होने से रहा.
उधर रेत के बगैर सरकार के विकास का रथ आगे नहीं बढ़ सकता. देश के विकास का मानक भले ही अधिक से अधिक पक्का निर्माण हो, ऊंची अट्टालिकाएं और सीमेंट से बनी चिकनी सड़कें आधुनिकता का मानक हों, लेकिन ऐसी चमक-दमक का मूल आधार बालू या रेत, जीवनदायिनी नदियों के लिए जहर साबित हो रहा है. नदियों का उथला होना और थोड़ी सी बरसात में उफन जाना, तटों के कटाव के कारण बाढ़ आना, नदियों में जीव-जंतु कम होने के कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्र कम होने से पानी में बदबू आना; ऐसे ही कई कारण हैं जो मनमाने रेत उत्खनन से जल निधियों के अस्तित्व पर संकट की तरह मंडरा रहे हैं. प्रकृति ने हमें नदी तो दी थी जल के लिए लेकिन समाज ने उसे रेत उगाहने का जरिया बना लिया और रेत निकालने के लिए नदी का रास्ता रोकने या प्रवाह को बदलने से भी परहेज नहीं किया. आज हालात यह हैं कि कई नदियों में न तो जल प्रवाह बच रहा है और न ही रेत.
सभी जानते हैं कि देश की बड़ी नदियों को विशालता देने का कार्य उनकी सहायक छोटी नदियां करती हैं. बीते एक दशक में देश में कोई तीन हजार छोटी नदियां लुप्त हो गईं. इसका असल कारण ऐसी मौसमी छोटी नदियों से बेतहाशा रेत को निकालना था, जिसके चलते उनका अपने उद्गम व बड़ी नदियों से मिलन का रास्ता ही बंद हो गया. देखते ही देखते वहां से पानी रूठ गया. खासकर नर्मदा को सबसे ज्यादा नुकसान उसकी सहायक नदियों की रेत के समाप्त होने से हुआ है.