अतीत के उदाहरणों से दोस्ती के काबिल नहीं दिखता पाकिस्तान, रहीस सिंह का ब्लॉग
By रहीस सिंह | Published: April 5, 2021 06:33 PM2021-04-05T18:33:39+5:302021-04-05T18:35:34+5:30
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष इमरान खान को पत्र लिख पड़ोसी मुल्क के लोगों को पाकिस्तान दिवस पर बधाई दी थी.
एक चिट्ठी नई दिल्ली से इस्लामाबाद इमरान खान और पाकिस्तान को शुभकामनाओं के साथ गई और बदले में एक खत इस्लामाबाद से नई दिल्ली प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा करते हुए आया.
शायद रिश्तों की नई इबारत यहीं से शुरू हो और दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ी गर्द कुछ हटे. बाकी कड़ियां इसके बाद जुड़नी हैं. लेकिन क्या इस आशा के अनुरूप पाकिस्तान अपना चरित्र, चेहरा और चाल बदल पाएगा? उम्मीद कम है. इसका उदाहरण कपास के आयात मामले में देखा जा चुका है. दूसरा यह कि पाकिस्तान दक्षिण एशिया में स्वतंत्र नीतियों का निर्माण नहीं करता.
कभी वह अमेरिका के सिपहसालार के रूप काम कर रहा था जबकि आज वह चीन के प्यादे के रूप में कर रहा है. भले ही औपचारिक तौर पर चीन उसे अपना ऑल वेदर फ्रेंड नाम दे रहा हो. ऐसे में पाकिस्तान के प्रति भारत का उदारतापूर्ण कदम क्या विदेश नीति के ‘रीयल पॉलिटिक फैक्टर’ का सम्मान कर पाएगा? 23 मार्च को पाकिस्तान दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बधाई दी और उनके कोविड पॉजीटिव हो जाने पर ट्वीट कर शीघ्र स्वस्थ होने की कामना व्यक्त की.
29 मार्च को इमरान खान ने प्रधानमंत्री के पत्र का जवाब दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद कहने के साथ ही यह भी लिखा, ‘‘पाकिस्तान के लोग भी भारत समेत अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण और सहयोगपूर्ण रिश्ते चाहते हैं. हम इस बात को लेकर निश्चित हैं कि दक्षिण एशिया में स्थायी शांति और स्थिरता भारत और पाकिस्तान के बीच सभी मुद्दों, जिनमें खासतौर पर जम्मू और कश्मीर का विवाद शामिल है, के सुलझ जाने से जुड़ी है.’’
उन्होंने यह भी लिखा है कि हमें विश्वास है कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए भारत एवं पाकिस्तान सभी मुद्दों को सुलझा लेंगे, खासकर जम्मू-कश्मीर विवाद. सकारात्मक और समाधान लायक बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाना जरूरी है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की तरफ से यह इसलिए लिखा गया क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इमरान खान को लिखे गए पत्र में पाकिस्तान दिवस की बधाई देने के साथ-साथ एक संदेश भी लिखा था- भरोसे के वातावरण की जरूरत है, जिसमें न आतंक हो और न शत्रुता.
ये तीनों बातें पाकिस्तान के लिए इसलिए बहुत अहम हैं क्योंकि पाकिस्तान यदि ऐसा करता है तो उसका चरित्र ही बदल जाएगा. लेकिन क्या पाकिस्तान अपना चरित्र बदलने के लिए तैयार होगा? इसी क्रम में पाकिस्तान रियल स्टेट एक्टर यानी आर्मी भी बेहतर इरादों को व्यक्त करती हुई दिख रही है. उसके चीफ जनरल बाजवा ने भारत के साथ बेहतर रिश्ते बनाने की इच्छा जताई है.
रियल स्टेट एक्टर और पॉलिटिकल स्टैब्लिशमेंट की तरफ से व्यक्त की गई ऐसी इच्छा स्वागतयोग्य है. लेकिन कुछ स्वाभाविक से प्रश्न भी हैं. पहला प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में पाकिस्तान ने कभी भी भारत के साथ संबंधों को लेकर कोई वास्तविक सकारात्मक पहल की है? दूसरा- पाकिस्तानी आर्मी चीफ कहते हैं कि दोनों देशों को पीछे की बातों को भुलाकर आगे की तरफ देखना चाहिए.
लेकिन पाकिस्तान आर्मी क्या सच में ऐसा कर पाएगी? यदि ऐसा है तो सबसे पहले पाकिस्तान को कश्मीर राग छोड़ देना चाहिए. हकीकत तो यह है कि पाकिस्तान का चरित्र अभी भी वही है इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. उसकी सेना अभी भी भारत को ‘एनमी नंबर वन’ और उसके चरमपंथी भारत को ‘इटरनल एनमी’ मानते हैं. हमारी उदारता पाकिस्तान के लिए रास्ता बनाने का काम करती रही है और पाकिस्तान हमें हमेशा धोखा देता रहा है.