पाक पर एफएटीएफ का शिकंजा कितना कारगर? रहीस सिंह का ब्लॉग

By रहीस सिंह | Published: June 29, 2021 03:12 PM2021-06-29T15:12:23+5:302021-06-29T15:14:48+5:30

धन शोधन और आतंकवाद को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने वाले संगठनों पर लगाम लगाने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (एफएटीएफ) ने कहा कि पाकिस्तान को ‘ग्रे (संदिग्ध) सूची’ में बरकरार रखा जाएगा.

Pakistan hit with $38 billion loss due to FATF grey list effective grip Rahees Singh's blog | पाक पर एफएटीएफ का शिकंजा कितना कारगर? रहीस सिंह का ब्लॉग

भारत विरोधी बयानों के जरिये कूटनीतिक पैबंद लगाकर तसल्ली कर लेगा?

Highlightsपाकिस्तान को 2018 में जिन 27 बिंदुओं पर कार्रवाई करने का लक्ष्य दिया गया.पाकिस्तान एफएटीएफ के नियमों का पालन नहीं कर रहा है और ‘ग्रे सूची’ में बरकरार है.पाकिस्तान को जून 2018 में ‘ग्रे सूची’ में डाला गया था.

25 जून को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने  पुन: यह मान लिया कि उसके सुझाव के बाद भी पाकिस्तान आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराने और उन्हें सजा दिलाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा पाया, इसलिए वह आगे भी ‘इन्क्रीज्ड मॉनिटरिंग’ यानी ग्रे लिस्ट में शामिल रहेगा.

अब चार महीने बाद अक्तूबर 2021 में एक फिर समीक्षा होगी कि पाकिस्तान उन अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने में कितना सफल हुआ है जो एफएटीएफ द्वारा उसे सिफारिशों के माध्यम से सौंपे गए हैं. यह पाकिस्तान की कूटनीति के लिए ही नहीं बल्कि चीन की पाकिस्तान नीति के लिए भी एक झटका है क्योंकि चीन पाकिस्तान के जरिये भारत के खिलाफ स्ट्रेटेजिक और डिप्लोमेटिक, दोनों ही तरफ की  लड़ाई लड़ता रहता है. एफएटीएफ के इस निर्णय से डिप्लोमेटिक डिविडेंड भारत के खाते में कितना जाएगा.

इस पर मतभिन्नता हो सकती है लेकिन इस विषय पर नहीं कि यह कम-से-कम पाकिस्तान की तो कूटनीतिक पराजय अवश्य है. अब प्रश्न यह उठता है कि पाकिस्तान और उसका सदाबहार मित्र चीन आगे की रणनीति किस तरह की बनाएंगे? क्या पाकिस्तान हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों तथा जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करेगा या फिर वह अपनी पारंपरिक शैली में भारत विरोधी बयानों के जरिये कूटनीतिक पैबंद लगाकर तसल्ली कर लेगा?

एफएटीएफ के निर्णय के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी  का कहना था कि भारत फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के मंच का इस्तेमाल ‘राजनीतिक उद्देश्यों के लिए’ करना चाहता है और भारत को इस मंच के राजनीतिक इस्तेमाल की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए. इसकी बैठक से पहले ही महमूद कुरैशी ने भारत की वैश्विक ‘राजनीतिक भूमिका’ की ओर इशारा करते हुए यह बात कही थी.

दरअसल कुरैशी और उनके देश पाकिस्तान की निरंतर यह कोशिश रही है कि भारत को कानूनी रूप से ऐसा करने से रोका जाए. लेकिन वह सफल नहीं हो पाया. वैसे पाकिस्तान के कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि एफएटीएफ जैसे वैश्विक मंच तकनीकी होते हैं और उन्हें वैसे ही रहने देना चाहिए. ऐसा न होना एफएटीएफ की अपनी साख के लिए अच्छा नहीं है.

अन्यथा संस्थाओं पर से भरोसा उठ जाता है, जो कि राजनीति की वजह से हो भी रहा है. प्रश्न यह उठता है कि पाकिस्तान को एफएटीएफ के मामले में ही यह चिंता क्यों सता रही है जबकि सच तो यह है कि पाकिस्तान और उसका सदाबहार मित्र ऐसी संस्थाओं और उनके फैसलों को दरकिनार करते रहे हैं.

भारत यदि ऐसी कोशिश कर रहा है कि पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में रहे या फिर उसे ग्रे से निकालकर ब्लैक लिस्ट में शामिल किया जाए, तो यह नैतिक, उचित और तर्कसंगत है. पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान दक्षिण एशिया में ही नहीं बल्कि एशिया भर के लिए आतंकवाद के न्यूक्लियस की तरह है और उसने सबसे ज्यादा नुकसान भारत को पहुंचाया है.

यही नहीं पाकिस्तान करीब तीन दशकों से इन्हीं आतंकवादियों के जरिये भारत के खिलाफ एक प्रॉक्सी वार लड़ रहा है. पाकिस्तान के कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि पिछले तीन सालों से भारतीय मीडिया और उच्च अधिकारियों के बयानों से ऐसा लगता है कि भारतीय राजनयिक एशिया पैसिफिक ग्रुप और एफएटीएफ दोनों में पाकिस्तान के खिलाफ लॉबिंग कर रहे हैं.

सच क्या है, यह बता पाना थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि डिप्लोमेसी के अपने सीक्रेट पक्ष होते हैं. यह दुनिया के अधिकांश देश करते हैं. लेकिन भारत आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए यदि विश्व स्तर पर लॉबिंग करता है तो उसे ऐसा करना भी चाहिए. यह काम अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, सहित दुनिया के तमाम देश करते हैं.

दरअसल एफएटीएफ पेरिस स्थित एक अंतर-सरकारी संस्था है. इसका काम गैर-कानूनी आर्थिक मदद को रोकने के लिए नियम बनाना है. इसका गठन 1989 में किया गया था. एफएटीएफ की ग्रे या ब्लैक लिस्ट में डाले जाने पर देश को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज मिलने में काफी कठिनाई आती है. आतंकवादी संगठनों को फाइनेंसिंग के तरीकों पर लगाम न कसने वाले देशों को इस लिस्ट में डाला जाता है.

ग्रे लिस्ट में शामिल रहने की वजह से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश पर विपरीत असर पड़ना शुरू हो जाता है. पाकिस्तान वैसे भी आर्थिक मामलों में दान दाता देशों पर काफी हद तक निर्भर रहा है. कोविड महामारी ने इसे और अधिक पराश्रित बनाने का काम किया.

ऐसे में उसका एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में शामिल रहना उसके सरवाइवल के लिए संकट पैदा करेगा. फिलहाल पाकिस्तान ब्लैक लिस्ट में शामिल होने से बच चुका है, लेकिन ग्रे लिस्ट उसका पीछा नहीं छोड़ रही है.

शायद यह पीछा छूटेगा भी नहीं क्योंकि पाकिस्तान शेष तीन सिफारिशों, यानी आतंकवादियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई, सजा और आर्थिक सहायता पर प्रतिबंध, को पूरा कर भी नहीं पाएगा. ऐसा इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान में आर्मी-जेहादी बॉन्डिंग बेहद मजबूत है और कोई भी चुनी हुई पाकिस्तानी सरकार यदि इसे तोड़ने की कोशिश करेगी तो वही सत्ता में नहीं रह पाएगी.

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