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आतंकी हमले पहले और बाद की सूचनाएं!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 6, 2025 07:16 IST

इस प्रक्रिया में बार-बार कश्मीरी लोगों को कटघरे में लेने और परेशान करने से अधिक से अधिक कुछ उन लोगों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जो सही रूप में आतंकियों की मददगार हैं.

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बीती 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए हमले के बाद पहले यह कहा जा रहा था कि यह गुप्तचर व्यवस्था की असफलता है. अब यह सामने आ रहा है कि खुफिया एजेंसियों ने पहलगाम हमले से पहले जबरवान की पहाड़ियों में स्थित होटलों में ठहरे पर्यटकों को निशाना बनाने की आशंका जताई थी. इसके बाद श्रीनगर के बाहरी इलाकों में सुरक्षा बढ़ाई गई थी. दाछिगाम, निशात और आस-पास के इलाकों में शीर्ष पुलिस अधिकारियों की देखरेख में तलाशी अभियान चलाए गए थे. मगर कुछ नहीं मिला और हमले से एक दिन पहले ही प्रयासों को कम किया गया था.

कहा यह भी जा रहा है कि आतंकवादी कटड़ा से श्रीनगर के लिए पहली ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान गड़बड़ी करना चाहते थे. हालांकि तेज हवा चलने के पूर्वानुमानों के कारण प्रधानमंत्री की 19 अप्रैल की यात्रा को स्थगित कर दिया गया था. कुछ समय बाद दोबारा यह कार्यक्रम होने वाला था. जिसे सीमा पार बैठे सरकारी और गैर-सरकारी तत्व पचा पाने की स्थिति में नहीं थे. उनका मानना था कि ट्रेन के आरंभ होने से अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित होगा.

दूसरी ओर पर्यटन से जुड़े आंकड़ों को देखा जाए तो वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर में 34 लाख से अधिक पर्यटक गए, जबकि साल 2023 में यह आंकड़ा दो करोड़ 11 लाख के पार चला गया था और जून 2024 तक पर्यटकों की संख्या एक करोड़ आठ लाख तक पहुंच चुकी थी.

वहीं हिंसा की घटनाओं में वर्ष 2023 में 12 नागरिकों की मौत हुई, जबकि 33 सुरक्षा कर्मी शहीद हुए और 87 आतंकवादी मारे गए. बीते वर्ष 2024 में 31 आम नागरिकों ने जान गंवाई, 26 सुरक्षा कर्मी शहीद हुए और 69 आतंकी मारे गए. यह स्थिति सरकार के कमी के दावों के बावजूद आतंक की जड़ों को अपनी जगह सिद्ध करती है और उन्हें अनदेखा कर पर्यटकों के घाटी की ओर आ आने के उत्साह को प्रदर्शित करती है. इससे आतंक से जुड़ी गुप्त सूचनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

संभव है कि सूचनाओं में गलत जानकारी अधिक होती होगी, लेकिन पर्यटकों की संख्या के बढ़ने और आतंकवादियों के अस्तित्व के बने रहने के कारण सतर्कता और सुरक्षा की अधिक आवश्यकता वहां थी और आगे भी बनी रहेगी. इसके साथ ही सूचनाओं के प्रति लापरवाह तत्वों पर नजर और उनकी जांच भी आवश्यक है. इस प्रक्रिया में बार-बार कश्मीरी लोगों को कटघरे में लेने और परेशान करने से अधिक से अधिक कुछ उन लोगों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जो सही रूप में आतंकियों की मददगार हैं.

कुल मिलाकर अब सिक्के के दोनों पहलू सामने हैं. खुफिया एजेंसियों की सूचनाएं थीं, लेकिन आवश्यक कार्रवाई नहीं हुई. जिसके पीछे के कारण जांच का विषय हैं. संभवत: इससे सबक लेकर लापरवाही रोकने के प्रयास किए जाएंगे और कश्मीर में वैमनस्य पैदा करने की कोशिशों को जड़ से और समय पर समाप्त किया जाएगा.

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