ब्लॉग: अंगदान के लिए एक राष्ट्र, एक नीति आवश्यक

By प्रमोद भार्गव | Published: March 4, 2023 04:48 PM2023-03-04T16:48:59+5:302023-03-04T16:50:43+5:30

हृदय प्रत्यारोपण की कुल संख्या 2013 में 30 से बढ़कर 2022 में 250 हो गई है। वहीं फेफड़े के प्रत्यारोपण की संख्या 23 से बढ़कर 138 हो गई है। बावजूद इसके अंग प्रत्यारोपण की जरूरत की पूर्ति आसानी से अंगों के उत्पादन से ही संभव हो पाएगी।

One nation one policy needed for organ donation | ब्लॉग: अंगदान के लिए एक राष्ट्र, एक नीति आवश्यक

फाइल फोटो

Highlightsभारत में फिलहाल बड़ी आबादी युवा और कामकाजी लोगों की है परंतु अच्छा खानपान और बेहतर उपचार सुविधाओं के चलते औसत उम्र में वृद्धि हुई है। फलतः बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ रही हैवर्तमान परिदृश्य में अंग प्रत्यारोपण में सबसे कारगर पद्धति अंगदान ही है।राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन की वेबसाइट पर सभी दिशा-निर्देश उपलब्ध हैं।

अंग प्रत्यारोपण में वार्षिक 27 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है, लेकिन मांग के अनुपात में पूर्ति नहीं हो पा रही है। बीते दस सालों में अंग प्रत्यारोपण की संख्या बढ़ी है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2013 में अंग प्रत्यारोपण की कुल संख्या 4,990 से बढ़कर 2022 में 15,561 हो गई है।

अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया को सरल और सुलभ बनाने के लिए भारत सरकार ‘एक राष्ट्र एक नीति’ लागू करने जा रही है। अब अंगदान और उसका प्रत्यारोपण देश के किसी भी अस्पताल में कराया जा सकता है। भारत सरकार ने मूल निवासी प्रमाण-पत्र की बाध्यता को हटाते हुए आयु- सीमा की बाध्यता भी खत्म कर दी है।

अंग प्राप्त करने के लिए अब जरूरतमंद रोगी किसी भी राज्य में अपना पंजीकरण करा सकते हैं। पंजीकरण के लिए अब मरीजों से कोई शुल्क भी नहीं लिया जाएगा। मालूम हो कि तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात और केरल जैसे राज्य अंगदान के पंजीकरण के बहाने पांच हजार से 10 हजार रुपए के बीच शुल्क ले रहे थे।

केंद्र सरकार द्वारा बदले नियमों के बाद अब 65 साल और उससे अधिक उम्र के मरीज भी मृतकदाता से अंग प्राप्त करने हेतु पंजीकरण करा सकते हैं। राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन की वेबसाइट पर सभी दिशा-निर्देश उपलब्ध हैं। बीते दस सालों में अंग प्रत्यारोपण की मांग बढ़ी है, जिसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है।

हालांकि, 2022 में 15 हजार से ज्यादा अंगों का प्रत्यारोपण हुआ है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने बताया है कि ‘अंग प्रत्यारोपण में वार्षिक 27 प्रतिशत दर से वृद्धि हो रही है लिहाजा मांग के अनुपात में पूर्ति नहीं हो पा रही है’, इसलिए संरचना में बदलाव के साथ स्तंभ कोशिकाओं के जरिए अंगों का उत्पादन को भी बढ़ाने की जरूरत है।

मानव त्वचा की महज एक स्तंभ कोशिका (स्टेम सेल) को विकसित कर कई तरह के रोगों के उपचार की संभावनाएं उजागार हो गई हैं। स्तंभ कोशिका मानव शरीर के क्षय हो चुके अंग पर प्रत्यारोपित करने से अंग विकसित होने लगता है। करीब दस लाख स्तंभ कोशिकाओं का एक समूह सुई की एक नोक के बराबर होता है।

ऐसी चमत्कारी उपलब्धियों के बावजूद समूचा चिकित्सा समुदाय इस प्रणाली को रामबाण नहीं मानता। शारीरिक अंगों के प्राकृतिक रूप से क्षरण अथवा दुर्घटना में नष्ट होने के बाद जैविक प्रक्रिया से सुधार लाने की प्रणाली में अभी और बुनियादी सुधार लाने की जरूरत है। इधर वंशानुगत रोगों को दूर करने के लिए स्त्री की गर्भनाल से प्राप्त स्तंभ कोशिकाओं का भी दवा के रूप में इस्तेमाल शुरू हुआ है।

इस हेतु गर्भनाल रक्त बैंक भी भारत समेत दुनिया में वजूद में आते जा रहे हैं। सरकारी स्तर पर अभी इन बैंकों को खोले जाने का सिलसिला शुरू ही नहीं हुआ है। निजी अस्पताल में इन बैंकों की शुरुआत हो गई है और 75 से ज्यादा बैंक अस्तित्व में आकर कोशिकाओं के संरक्षण में लगे हैं। इस पद्धति से जिगर, गुर्दा, हृदय रोग, मधुमेह,कुष्ठ और स्नायु जैसे वंशानुगत रोगों का इलाज संभव है।

भारत में फिलहाल बड़ी आबादी युवा और कामकाजी लोगों की है परंतु अच्छा खानपान और बेहतर उपचार सुविधाओं के चलते औसत उम्र में वृद्धि हुई है। फलतः बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ रही है, दूषित पर्यावरण के चलते अंदरूनी बीमारियां भी बढ़ रही हैं और यकृत,जिगर, हृदय व फेफड़े खराब हो रहे हैं।

अतएव इन अंगों की मांग में इजाफा हो रहा है। गोया, इनका जीवन बेहतर बनाने के लिहाज से अंगों की जरूरत भी बढ़ रही है। देश में 640 चिकित्सा महाविद्यालय और अस्पताल ऐसे हैं, जिनमें अंग प्रत्यारोपण और स्तंभ कोशिका से उत्पादन का काम किया जा सकता है। इनमें अंग प्रत्यारोपण व उत्सर्जन के पाठ्यक्रम भी नवीन चिकित्सा शिक्षा में जोड़ दिए गए हैं बावजूद चंद चिकित्सा संस्थानों में ही अंग प्रत्यारोपण व उत्सर्जन की शल्य क्रिया बमुश्किल उपलब्ध हैं।

अतएव वर्तमान परिदृश्य में अंग प्रत्यारोपण में सबसे कारगर पद्धति अंगदान ही है। इसकी आपूर्ति तीन प्रकार से अंगदान करके की जा सकती है। पहला कोई भी इंसान जीवित रहते हुए अपना गुर्दा अथवा जिगर दान करके जरूरतमंद को नया जीवन दे। दूसरे किसी व्यक्ति के ब्रेन डेड होने पर, उसके परिजनों की अनुमति से अंगदान कराया जाए लेकिन इसमें अंगदान करने की समय-सीमा होती है। समय रहते मृत व्यक्ति के अंग निकाल लिए जाएं।

इसमें परिवार की इजाजत कानूनन जरूरी है यदि जागरूकता से ऐसा संभव हो जाता है तो 90 प्रतिशत महिलाओं को अपने गुर्दे दान करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लिहाजा स्वाभाविक रूप में अंगदान के बाबत लैंगिक असमानता कालांतर में दूर होती चली जाएगी।

बीते दस सालों में अंग प्रत्यारोपण की संख्या बढ़ी है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2013 में अंग प्रत्यारोपण की कुल संख्या 4,990 से बढ़कर 2022 में 15,561 हो गई है। साथ ही जीवितदाताओं से किडनी प्रत्यारोपण की 2013 में कुल संख्या 3,495 थीं, जो 2022 में बढ़कर 9,834 हो गई है। वहीं, मृतकदाताओं से यह संख्या 542 से बढ़कर 2022 में 1589 तक पहुंच गई है।

इसी क्रम में हृदय प्रत्यारोपण की कुल संख्या 2013 में 30 से बढ़कर 2022 में 250 हो गई है। वहीं फेफड़े के प्रत्यारोपण की संख्या 23 से बढ़कर 138 हो गई है। बावजूद इसके अंग प्रत्यारोपण की जरूरत की पूर्ति आसानी से अंगों के उत्पादन से ही संभव हो पाएगी।

लिहाजा इस जैव तकनीक को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। हालांकि, अंग प्रत्यारोपण के बाद व्यक्ति कितने दिन या साल जीवित रहे,ये आंकड़े देखने में नहीं आते हैं। प्रत्यारोपित किडनी के मामलों में देखा गया है, लोग ज्यादा दिन तो जीवित नहीं रह पाए? अलबत्ता एक परिजन को विकलांग बनाने के साथ परिवार आर्थिक संकट में आकर कंगाल भी हो गए

Web Title: One nation one policy needed for organ donation

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