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सुधर जाओ 'सरकार', बहरे होने के साथ बांझपन भी झेलोगे

By रामदीप मिश्रा | Updated: June 12, 2018 06:05 IST

बताया जाता है कि मानव जाति की सुनने की अधिकतम क्षमता 60 डेसिबल होती है इससे ज्यादा की आवाज वह बर्दाश्त नहीं कर पाता है।

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हम जिस देश में रहते हैं यहां कानूनों का इतना बड़ा पुलिंदा है, जिसे लागू करने में सिस्टम कांप उठता है। हर साल कोई न कोई कानून नया आ जाता है, लेकिन जब आप घर से बाहर निकलते हैं तो हर एक कदम पर समस्याएं सामने खड़ी हो जाती हैं। आज बात ध्वनि प्रदूषण की करते हैं, जिसके लिए सरकार ने ध्वनि प्रदूषण अधिनियम वर्षों पहले बना दिया, लेकिन सड़क पर निकलते ही कान फटने लगते हैं। 

जब भी सड़क पर निकलते हैं तो वाहनों के भारी-भारी हॉर्न दिमाग खराब कर देते हैं, जिसे सुनकर न केवल आपको समस्या होती है बल्कि मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं और अचानक चिढ़-चिढ़ापन बढ़ने लगता है। समझ नहीं आता है कि जब हर चौराहे और तिराहे पर ट्रैफिक पुलिस तैनात रहती है तो इनपर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है। 

आजकल सबसे ज्यादा चलन में ज्यादा आवाज करने वाली बाइक्स हैं, जिनमें ध्वनि बढ़ाने के लिए लोग अलग से एक उपकरण लगा देते हैं। ये जब सड़क पर निकलते हैं तो केवल और केवल कोहराम सुनाई देता है। अगर आप बगल से गुजर रहे हैं तो परेशान हो जाएंगे और सिस्टम को कोसेंगे। यहां केवल हम सिस्टम को ही दोष नहीं दे सकते हैं इसके लिए हम भी उतने ही जिम्मेदार हैं क्योंकि अक्सर युवा ही ऐसे कारनामें करते हैं। 

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ऐसा भी नही कि इतनी ज्यादा आवाज ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को सुनाई न देती हो, या तो उन्हें नियमों की जानकारी नहीं है या फिर उनसे वसूली कर आगे बढ़ा देतें हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि सरकार ने अधिनियम तो बना दिया, लेकिन तेज आवाज करने वाले वाहनों को देश में प्रतिबंधित क्यों नहीं किया। बुलेट जैसी बाइक्स को क्यों इतनी आजादी दी गई? 

बताया जाता है कि मानव जाति की सुनने की अधिकतम क्षमता 60 डेसिबल होती है इससे ज्यादा की आवाज वह बर्दाश्त नहीं कर पाता है। 0 से लेकर 25 डेसिबल पर शान्ति का एहसास करता है और अगर वह 60 डेसिबल से अधिक सुनने लगे तो मनुष्य बीमार होने लगता है और उसे तकलीफ महसूस होने लगती है। वहीं जब आवाज की तीव्रता 130-140 डेसिबल हो जाती है तो व्यक्ति को बेचैन होने लगता है। 

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तमाम शोधों में पाया गया है कि ध्वनि प्रदूषण से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे न केवल मनुष्य बहरा हो सकता बल्कि कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो सकता है। कभी-कभी मनुष्य पागल भी हो जाता है। इसका असर नवजात शिशुओं पर पड़ता है और गर्भ में पल रहे शिशु के हृदय की धड़कन शोर के कारण तेजी से बढ़ती हैं, जिससे जन्मजात विकृतियां व कई अन्य असाध्य रोग हो जाते हैं। ध्वनि प्रदूषण से आंखों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। आंख की पुतली का आकार छोटा हो जाता है। रंग पहचानने की क्षमता में कमी आ जाती है। 

दक्षिण कोरिया में सेयोल विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने 20 से 59 साल की उम्र के 2 लाख 6 हजार 492 पुरुषों की प्रजनन स्वास्थ्य के दीर्घकालिक समीक्षा के बाद पता लगाया था कि जो पुरुष शोर शराबे वाले क्षेत्रों में रहते हैं उनमें प्रजनन क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित होती है और वह बांझ हो सकते हैं।

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इस समस्या का सामना केवल भारत ही नहीं कर रहा बल्कि कई पश्चिमी राष्ट्रों ने किया है, लेकिन उन्होंने इसको खत्म करने के लिए कड़े कानून बनाए। साथ ही साथ लोगों को जागरुक किया कि ये समस्या आपकी भावी पीड़ी पर दुष्प्रभाव डाल सकती है। हालांकि भारत में ध्वनि प्रदूषण पर इंडियन पीनल कोड की धारा 290 के तहत वैज्ञानिक प्रतिबंध लगाया गया है। इस अधिनियम के तहत अधिक ध्वनि जो कि सार्वजनिक पीड़ा अथवा कष्टप्रद हो, उत्पन्न करने पर 200 रुपये तक की सजा दी जा सकती है, जिसे जमीन पर नहीं देखा जा सकता है। लोकमत न्यूज के लेटेस्ट यूट्यूब वीडियो और स्पेशल पैकेज के लिए यहाँ क्लिक कर के सब्सक्राइब करें!

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