विष्णुगुप्त का ब्लॉगः आर्थिक भगोड़ों को अब संरक्षण नहीं
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 3, 2019 09:38 PM2019-07-03T21:38:03+5:302019-07-03T21:38:03+5:30
भारत की इस सफलता को कमतर नहीं आंका जा सकता है क्योंकि वह पांच साल से इस अभियान में लगा हुआ था और हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस समस्या को प्रमुखता के साथ उठा रहा था. जी-20 समूह के देशों ने इस समस्या को गंभीर इसलिए माना कि अब यह समस्या सिर्फ भारत की नहीं है बल्कि इससे कई विकासशील और विकसित देश भी परेशान हैं.
विष्णुगुप्त
आर्थिक भगोड़े अपराधियों पर यह पहली चोट है. यह सही है कि पहली चोट है, पर चोट गंभीर है. निर्णायक चोट करने में यह पहली चोट बहुत बड़ी भूमिका निभाने जा रही है, भारत सरकार की बहुत बड़ी जीत है. यह एक बड़ी जीत ही नहीं है बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की गतिशीलता को बाधित करने वाले और लाखों निवशकों के जीवन भर की कमाई लेकर भागे अपराधियों को दूसरे देश में शरण पाना न केवल मुश्किल होगा बल्कि जेल की हवा भी खाने को मिलेगी. भारत की गंभीर पहल का सुखद परिणाम निकला. बड़े देशों के आर्थिक समूह जी-20 ने अपने घोषणापत्र में यह स्वीकार कर लिया कि आर्थिक भगोड़े अपराधियों को संरक्षण नहीं दिया जाएगा, आर्थिक भगोड़े अपराधियों को कानून का सामना करने के लिए विवश किया जाएगा.
भारत की इस सफलता को कमतर नहीं आंका जा सकता है क्योंकि वह पांच साल से इस अभियान में लगा हुआ था और हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस समस्या को प्रमुखता के साथ उठा रहा था. जी-20 समूह के देशों ने इस समस्या को गंभीर इसलिए माना कि अब यह समस्या सिर्फ भारत की नहीं है बल्कि इससे कई विकासशील और विकसित देश भी परेशान हैं.
यह सही है कि सिर्फ जी-20 देशों के समूह में आर्थिक भगोड़ों पर बनी सहमति से आर्थिक भगोड़े अपराधियों पर अंकुश नहीं लग सकता है. दुनिया के जितने नियामक हैं, उन सभी में आर्थिक भगोड़े अपराधियों के खिलाफ बड़े और बाध्यकारी प्रस्ताव पारित करना होगा.
खासकर संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय यूनियन जैसे नियामकों में आर्थिक भगोड़े अपराधियों पर उसी तरह सिद्घांत बनने चाहिए जिस तरह कालेधन वालों व आतंकवादियों के खिलाफ बने हुए हैं.
दुनिया में कई ऐसे देश हैं जो आर्थिक भगोड़े अपराधियों को न केवल संरक्षण देते हैं बल्कि उनको अपनी नागरिकता भी प्रदान कर देते हैं. ऐसी स्थिति में पीड़ित देशों के पास अपने आर्थिक भगोड़े अपराधियों को पकड़ना और सजा दिलाना मुश्किल हो जाता है. इसलिए आर्थिक भगोड़े अपराधियों को संरक्षण देने वाले देशों के खिलाफ भी अंतर्राष्ट्रीय संहिताएं बननी चाहिए.