एनके सिंह का नजरियाः कांग्रेस का ‘न्याय’ बनाम भाजपा का ‘राष्ट्रवाद’
By एनके सिंह | Published: April 12, 2019 11:40 AM2019-04-12T11:40:59+5:302019-04-12T11:40:59+5:30
कांग्रेस घोषणापत्र की ‘न्याय’ (न्यूनतम आय) योजना भले हीं फिलवक्त एक वादा हो, पर यह प्रभावित कर रहा है सभी गरीबों को, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, समुदाय या पेशे के हों. नतीजतन भाजपा को अपनी रणनीति पुराने ढर्रे पर लानी मजबूरी हो गई. यही वजह थी कि भाजपा घोषणापत्र का पहला बिंदु ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’ और पहला उप-बिंदु ‘आतंकवाद पर जीरो टोलरेंस (शून्य- सहिष्णुता) था.
पिछले चार दिनों में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपनी रणनीति हीं नहीं, घोषणापत्र की धार भी बदलनी पड़ी. राष्ट्र्वाद, बालाकोट हवाई हमला, पुलवामा फिदायीन हमले में हुई जवानों की शहादत, घर में घुस कर मारेंगे’ का भाव और अफस्पा (सैन्य बल विशेषाधिकार कानून) पार्टी के मुख्य मुद्दे बने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इसी राष्ट्रवाद का हैवी डोज अपने भाषणों में रखना पड़ रहा है. दरअसल इसके पीछे दो कारण हैं-एक तात्कालिक और एक पिछली गलतियों की वजह से. कांग्रेस घोषणापत्र की ‘न्याय’ (न्यूनतम आय) योजना भले हीं फिलवक्त एक वादा हो, पर यह प्रभावित कर रहा है सभी गरीबों को, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, समुदाय या पेशे के हों. नतीजतन भाजपा को अपनी रणनीति पुराने ढर्रे पर लानी मजबूरी हो गई. यही वजह थी कि भाजपा घोषणापत्र का पहला बिंदु ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’ और पहला उप-बिंदु ‘आतंकवाद पर जीरो टोलरेंस (शून्य- सहिष्णुता) था.
जाहिर है सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक पहली लाइन बनी. ठीक इसके उलट कांग्रेस घोषणापत्र के कवर पेज पर एक मात्र आम जनता और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की एक छोटी सी तस्वीर. नीचे लिखा एक छोटा वाक्य - ‘हम निभाते हैं’ . कहना न होगा कि कांग्रेस रणनीतिकार बेहतर संदेश दे सके हैं और भाजपा को नई रणनीति अपनानी पड़ रही है.
भारत जैसे देश में जनमत ‘आभासित सत्य’ के आधार पर बनता है. चूंकि आभास अन्य तर्क-वाक्यों, कुतर्को और संदर्भ से परे भावनात्मक बुनियाद पर खड़े अर्ध-सत्य या असत्य पर पैदा किए जाते हैं लिहाज़ा इन्हें तैयार करने में एक अलग बाजीगर के कौशल की जरूरत होती है. तभी तो पांच साल के बाद चुनाव प्रचार में हर बात के जवाब में सरकार को कहना पड़ता है कि पिछले 55 साल में कांग्रेस ने कुछ नहीं किया. दरअसल आभासित सत्य का एक और पहलू होता है कि वह सत्य को आच्छादित कर देता है. लिहाज़ा यह पता नहीं चल पाता कि ‘दुश्मन के घर में घुस के मारने वाला बड़ा सत्य या कपास, मूंगफली, प्याज, आलू और गन्ना के उचित मूल्य न मिलने से या रोजगार के अभाव में आत्महत्या करने वाला किसान या युवा बड़ा सत्य’. फिर जब देश के प्रधानमंत्री पहली बार वोट करनेवाले युवाओं से अपील करते हुए पूछते हैं कि ‘क्या वे अपना पहला वोट बालाकोट के एयर-स्ट्राइक करने वाले वीरों को या पुलवामा में शहीद हुए जवानों को समर्पित कर सकते हैं’ तो आभासित सत्य से जकड़ा वह युवा यह नहीं समझ पाता कि वे वीर या शहीद चुनाव में किस क्षेत्र से और किस चुनाव चिह्न् पर खड़े हैं.
प्रजातंत्र में अपेक्षा तो यह थी कि घोषणापत्र एक पवित्र दस्तावेज साबित हो जिसे राजनीतिक दल धर्म-ग्रंथ का दर्जा देते हुए अपना शासन उसी के अनुरूप चलाएं और अगर मुकम्मल करने में कोई कोताही हुई भी तो उसे मतदाताओं के समक्ष तार्किक ब्योरा देकर रखें और जनता को संतुष्ट करें. लेकिन छोटी पार्टियों को तो छोड़े दोनों राष्ट्रीय पार्टियां- कांग्रेस हो या भाजपा-इन घोषणापत्रों को चुनाव जीतने की बाद शायद हीं दुबारा पढ़ती हों. शायद वे यह मानती हैं कि गालिब ने सही फरमाया था ‘वादा न वफा करते, वादा तो किया होता’. सन 2014 के घोषणापत्र में कांग्रेस ने शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का छह प्रतिशत देने का वादा किया था. इस चुनाव में फिर यह वादा दोहराया है. उधर भारतीय जनता पार्टी ने भी इसी वादे को दोहराया लेकिन वास्तविक खर्च कम रहा. शायद राजनीतिक दलों का मानना है ‘घोषणापत्र चुनाव नहीं जिताते’’.
तभी तो भाजपा 2014 के घोषणापत्र में किया अपना वादा ‘किसानों को उनके फसल की कुल लागत का डेढ़ गुना मुनाफा समर्थन मूल्य के रूप दिया जाएगा’ न केवल भूल गई बल्कि एक साल में हीं जब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अमल करने के बारे में पूछा तो हलफनामा देकर कहा कि यह संभव नहीं. और साढ़े चार साल बाद जब किसान उग्र हुए तो ठीक चुनाव के कुछ माह पहले 2018 में एक नई दर तय की यह बताते हुए कि यह लागत से ज्यादा है.
‘याने देर आयद पर दुरुस्त न आयद’. शायद कांग्रेस के रणनीतिकार इस बार ज्यादा चुस्त हैं और समय व स्थिति की पहचान भाजपा के रणनीतिकारों से बेहतर है तभी तो उनके घोषणापत्र में किया गया वादा -‘न्याय’ जिसके तहत हर गरीब परिवार को तब तक छ: हज़ार रुपया माहवार दिया जाएगा जब तक उसकी आय 12 हजार रु पए से ज्यादा न हो जाए- आज हर आमोखास के जेहन पर प्रभाव डाल रहा है वह चाहे किसी जाति, धर्म या संप्रदाय का हो, बशर्ते गरीब हो. इधर भाजपा की मजबूरी यह थी कि अगर वह ‘न्याय’ जैसा हीं वादा करे तो सभी कहेंगे कि कांग्रेस की ही नकल की है और अगर रकम बढ़ाएं तो लोग उन्हें याद दिलाएंगे कि कांग्रेस के घोषणापत्र को मोदी तक ने ‘ढकोसला पत्र’ बताया. कांग्रेस की न्याय योजना को भाजपा ने अमल में लाना असंभव बताया था.