एनके सिंह का ब्लॉग: आगामी आम चुनाव का अंक गणित
By एनके सिंह | Published: January 28, 2019 03:02 PM2019-01-28T15:02:04+5:302019-01-28T15:02:04+5:30
विपक्ष की गैर-कांग्रेस पार्टियों को नहीं भूलना चाहिए कि सन 2014 के चुनाव में जितना वोट इन सभी को कुल मिलाकर मिला था उससे दुगुना वोट अकेले कांग्रेस को मिला था. लिहाजा अगर कांग्रेस को ध्रुव मान कर उसके इर्द-गिर्द एक गठबंधन बनता तो विकल्प के प्रति जन-विश्वास और बढ़ता.
देश का राजनीतिक परिदृश्य 2019 के आम-चुनाव के बाद वही नहीं रहेगा जो 2014 में था. प्रश्न यह है कि अगर 2014 की स्थिति वापस नहीं आती तो क्या-क्या संभावनाएं उभर सकती हैं.
कुछ तर्क-वाक्य और फिर निष्कर्ष. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आज भी वही जन-स्वीकार्यता है जो पिछले चुनाव में थी? आम धारणा है नहीं, घटी है. क्या उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश यानी बसपा और सपा के हाथ मिलाने से देश के इस सबसे बड़े राज्य में भाजपा को नुकसान हो सकता है?
सामान्य ज्ञान से कहा जा सकता है हां. बिहार में लालू यादव के जेल जाने और जगन्नाथ मिश्र के बाहर रहने के बाद से ‘पिछड़ी जातियों’ में इस बैकवर्ड नेता के प्रति अन्याय हुआ है का भाव व्याप्त नहीं हुआ है लिहाजा क्या सहानुभूति नहीं बढ़ी है?
बिहार के उप-चुनावों के नतीजे गवाह हैं कि बढ़ी है. क्या बिहार में भाजपा से नाराज छोटे-छोटे जातिवादी दलों के ‘लालू एंड कंपनी’ के साथ मिलने से उत्तर भारत में पिछड़ी जातियों की सवर्णो के खिलाफ अलिखित एकता पहले से बढ़ी है? उत्तर है हां. क्या पांच राज्यों के ताजा चुनाव और कर्नाटक के कुछ माह पहले हुए चुनाव के परिणाम यह नहीं बताते कि कांग्रेस पहले से बेहतर स्थिति में है? उत्तर है हां.
मोदी अद्भुत कार्य-क्षमता के और विकास को बखूबी समझने वाले नेता हैं. लेकिन उनके स्वभाव की खास बात है कि वह एकल नेतृत्व ही दे सकते हैं, गठबंधन के दबाव में काम नहीं कर सकते. अब अगर उत्तर भारत के चार बड़े राज्यों में और खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में सन 2014 के मुकाबले भाजपा की 70 सीटें घट जाती हैं तो पार्टी 200 के नीचे पहुंचेगी.
संभव है कि भाजपा किसी तरह 273 का बहुमत का आंकड़ा पार भी कर ले तो मोदी उस गठबंधन को नहीं चला सकेंगे और उधर नीतीश कुमार या पार्टी के पांच साल से खार खाए कुछ नेता इनको हटाने का नारा बुलंद करेंगे और उन्हें वर्तमान मंत्रिमंडल में हाशिये पर आए मंत्री भी हवा देंगे.
विपक्ष की गैर-कांग्रेस पार्टियों को नहीं भूलना चाहिए कि सन 2014 के चुनाव में जितना वोट इन सभी को कुल मिलाकर मिला था उससे दुगुना वोट अकेले कांग्रेस को मिला था. लिहाजा अगर कांग्रेस को ध्रुव मान कर उसके इर्द-गिर्द एक गठबंधन बनता तो विकल्प के प्रति जन-विश्वास और बढ़ता.
आज क्या 85 करोड़ मतदाता किसी मायावती, किसी अखिलेश, किसी ममता, किसी चंद्रबाबू नायडू, किसी तेजस्वी या किसी देवगौड़ा और शरद यादव को 25 लाख करोड़ रु. बजट वाले देश को सौंपने को तैयार हैं?