नेपाल : ‘रोटी-बेटी’ के रिश्ते, फिर तनाव क्यों? पढ़ें शोभना जैन का ब्लॉग
By शोभना जैन | Published: May 16, 2020 08:33 AM2020-05-16T08:33:38+5:302020-05-16T08:33:38+5:30
लिपुलेख नेपाल के उत्तर-पश्चिम में है. यह भारत, नेपाल और चीन की सीमा से लगता है. भारत कहता रहा है कि यह इलाका उत्तराखंड में है, जबकि नेपाल का दावा है कि यह उसके सीमा क्षेत्र में है. दरअसल यह लिंक रोड उत्तराखंड के पिथौरागढ़ को भारत चीन सीमा पर स्थित लिपु लेख दर्रे से जोड़ती है. इस लिंक रोड का अंतिम 4 किमी का निर्माण कार्य अभी होना है.
भारत के साथ अपने रिश्तों को ‘रोटी-बेटी’ के रिश्ते बताने वाला नेपाल इन दिनों एक बार फिर से भारत के साथ सीमा विवाद को ले कर आमने-सामने है. निश्चित तौर पर इस घटनाक्रम ने रिश्तों में वैसी तल्खियां तो नहीं लाई हैं, लेकिन असहज स्थिति जरूर बनी है. हाल ही में भारत ने जब अपने सीमा क्षेत्र में कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा मार्ग की यात्रा ‘सुलभ’ कराने के मकसद से लिपुलेख दर्रे को उत्तराखंड में धारचूला से जोड़ने वाली एक लिंक रोड का उद्घाटन किया तो नेपाल ने इसे अपने भू-क्षेत्र में बताते हुए कड़ा विरोध जताया.
इस बारे में वहां राजनीति भी खासी गर्मा गई और सड़कों पर जन-असंतोष, सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए तथा पक्ष, विपक्ष ने सरकार से भारत के साथ इस मुद्दे को कड़ाई से उठाने की मांग की. नेपाली जनप्रतिनिधियों ने नेपाल सरकार पर सड़क के निर्माण को रोकने के लिए कोई पहल नहीं करने का आरोप लगाया.
एक तरफ जहां नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली की सरकार घरेलू मोर्चे पर स्थिरता को लेकर दबाव में है, उस पर इस मुद्दे को ले कर राजनीति गर्माने और जन-असंतोष के बढ़ने को ले कर भी उन पर इस पर कदम उठाने का दबाव है. ओली ने अब सीमा विवाद को फिलहाल कम करने के नजरिये से यह तो कहा कि समझौते के तहत भारत इस लिंक रोड का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन साथ ही कड़े शब्दों में उन्होंने यह भी कह दिया कि नेपाल सीमा विवाद वाले चर्चित कालापानी क्षेत्र को भारत को नहीं देगा.
वैसे एक सम्बद्ध महत्वपूर्ण घटनाक्रम में लिंक रोड के उद्घाटन के बाद नेपाल ने इस सीमा क्षेत्र में अपनी सुरक्षा चौकियां बनाई हैं. विगत पांच महीनों में यह दूसरी बार है जब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को ले कर तल्खियां उभर कर ऊपरी सतह पर आ गई हैं. पहले कालापानी और अब लिपुलेख सीमा तनाव को लेकर सुर्खियां... सवाल उठ रहे हैं कि नेपाल की चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों के चलते कहीं इस मामले को तूल तो नहीं दिया गया.
गौरतलब है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा पिछले दिनों इस लिंक रोड के उद्घाटन के फौरन बाद नेपाल ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. वैसे नेपाल के विदेश मंत्री ग्यावली ने सीमा विवाद के चीन पहलू संबंधी मीडिया की खबरों को खारिज करते हुए कहा कि नेपाल अपने घरेलू मामलों में किसी तरह की दखलदांजी की इजाजत नहीं देता है.
लिपुलेख नेपाल के उत्तर-पश्चिम में है. यह भारत, नेपाल और चीन की सीमा से लगता है. भारत कहता रहा है कि यह इलाका उत्तराखंड में है, जबकि नेपाल का दावा है कि यह उसके सीमा क्षेत्र में है. दरअसल यह लिंक रोड उत्तराखंड के पिथौरागढ़ को भारत चीन सीमा पर स्थित लिपु लेख दर्रे से जोड़ती है. इस लिंक रोड का अंतिम 4 किमी का निर्माण कार्य अभी होना है.
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह ही रक्षा मंत्री राजनाथ ने 80 किमी लंबे इस नए मार्ग का उद्घाटन किया था. लिपुलेख दर्रा नेपाल के पश्चिम में भारत से लगी सीमा पर विवादित क्षेत्र कालापानी के निकट स्थित है. यह सड़क लिपुलेख दर्रे और कालापानी से होकर गुजरती है. भारत और नेपाल दोनों ही कालापानी को अपना अभिन्न अंग मानते हैं.
नेपाल की प्रतिक्रिया के बाद भारत ने साफ तौर पर कहा कि यह सड़क पहले से ही बनी सड़क का हिस्सा है. साथ ही उसने इस मुद्दे पर वार्ता नहीं होने पर नेपाल की चिंताओं का संज्ञान लेते हुए भी कहा कि कोविड-19 संकट के निपटारे के बाद इस मुद्दे पर लंबे समय से अटकी पड़ी विदेश सचिव स्तर की वार्ता की जाएगी.
भारत ने कहा कि सीमा चिन्हित करने का काम तो चल ही रहा है. ऐसी खबरें हैं कि नेपाल दोनों देशों के बीच लंबे समय से इस संबंध में विदेश सचिव स्तर की वार्ता नहीं होने और उसकी वजह से कालापानी सीमा विवाद हल होने की दिशा में कोई प्रगति नहीं होने से खिन्न है.
समझा जाता है कि अब इस मुद्दे पर कोरोना संकट निपट जाने के बाद बैठक किए जाने के भारत के प्रस्ताव पर भी नेपाल ने नाराजगी व्यक्त की है और कहा है कि वह तब तक इंतजार करने के पक्ष में नहीं है. इस मुद्दे पर चार वर्ष पूर्व विदेश सचिव स्तर की वार्ता होने पर सहमति हुई थी लेकिन इसकी एक भी बैठक अभी तक नहीं हुई है.
पिछले साल नवंबर में जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए तो नए नक्शे में कालापानी भी शामिल था. नेपाल ने इसे लेकर तीखी आपत्ति दर्ज कराई और कहा कि भारत अपना नक्शा बदले क्योंकि कालापानी उसका इलाका है. अब पांच महीने बाद दोनों देशों के बीच लिपुलेख को लेकर फिर से तनाव पैदा हो गया है.
नेपाल और भारत सीमा से जुड़े अपने आपसी विवादों को अब तक शांतिपूर्ण और कूटनीतिक बातचीत के जरिए सुलझाते रहे हैं. साझी सांस्कृतिक विरासत से बंधे दोनों देशों के बीच परंपरागत मित्रतापूर्ण संबंध रहे हैं. आपसी रिश्तों के लिए हितकारी यही है कि इस तरह के सीमा विवाद समय रहते सुलझा लिए जाएं जिससे अन्य द्विपक्षीय व्यापक संबंधों पर असर नहीं पड़े. इसके साथ ही नीति-निर्माताओं का ध्यान इस बात पर तो है ही कि नेपाल पर चीन के बढ़ते प्रभाव और विकास के नाम पर वहां फैलती उसकी गतिविधियों के चलते चीन को दखलदांजी का मौका नहीं मिले.
उम्मीद है कि जल्द ही दोनों देशों के बीच उभयपक्षीय वार्ता के जरिए इस मुद्दे का आपसी समझदारी से हल निकल आएगा.