विजय दर्डा का ब्लॉग: पूर्वोत्तर में उग्रवाद पर आक्रामक रुख की जरूरत
By विजय दर्डा | Published: August 3, 2020 07:59 AM2020-08-03T07:59:57+5:302020-08-03T07:59:57+5:30
जरूरत इस बात की है कि इन उग्रवादियों के सफाये के लिए एक पुख्ता, सख्त और आक्रामक रणनीति बनाई जाए और इतनी जबर्दस्त घेराबंदी की जाए कि चीन सहित कोई भी बाहरी तत्व किसी भी हालत में उन तक हथियार नहीं पहुंचा पाए.
मणिपुर में असम राइफल्स के जवानों पर उसी चंदेल जिले में इस बार भी हमला हुआ है और तीन जवान शहीद हुए हैं, जिस जिले में जून 2015 में उग्रवादियों ने भारतीय सेना के काफिले पर घातक हमला किया था और हमारे 18 जवान शहीद हो गए थे. ताजा हमले से यह स्पष्ट है कि उग्रवादियों ने अपनी ताकत फिर से इतनी बढ़ा ली है कि भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला करने की जुर्रत कर सकें.
पूवरेत्तर राज्यों में उग्रवादियों के हमले और वहां अशांति को और ज्यादा फैलाने की आशंका तभी से पैदा होने लगी थी, जब लद्दाख के इलाके में चीन ने खुराफात शुरू की थी. पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्रवादियों का सबसे बड़ा मददगार चीन है और वहां अशांति का उद्देश्य यह है कि वहां तैनात फौज को भारत दूसरी जगह न ले जा पाए! चीन की इस चाल पर जून 2020 के अंतिम सप्ताह में और मुहर लग गई जब थाईलैंड और म्यांमार बॉर्डर पर हथियारों का बड़ा जखीरा पकड़ा गया. सारे हथियार चीन के बने हुए थे.
म्यांमार तथा भारत के उग्रवादी समूहों के बीच दोस्ती का रिश्ता है
पहली नजर में तो यही लगा कि ये हथियार म्यांमार के आतंकी संगठन अराकान आर्मी के लिए हैं, जिसकी मदद चीन करता रहता है लेकिन विशेषज्ञों की टीम ने कहा कि अराकान आर्मी इस तरह के हथियारों का उपयोग नहीं करती है. अराकान आर्मी के माध्यम से यह जखीरा भारत के पूवरेत्तर राज्यों के उग्रवादियों के लिए भेजा जा रहा था. म्यांमार तथा भारत के उग्रवादी समूहों के बीच दोस्ती का रिश्ता है. बहरहाल भारत ने हथियारों के जखीरे के संबंध में थाईलैंड सरकार से जानकारी भी मांगी है और पूरी जांच रिपोर्ट उपलब्ध कराने का आग्रह भी किया है. हमारी खुफिया एजेंसियां भी इसमें जुटी हुई हैं.
सवाल यह है कि हथियारों का यह जखीरा तो पकड़ा गया लेकिन क्या और जखीरे चीन से नहीं आए होंगे? निश्चित ही आए होंगे. दरअसल पूवरेत्तर भारत में चीनी हथियारों की खेप पहुंचाने का एक रास्ता म्यांमार की ओर से है, जहां के कई उग्रवादी समूहों का संबंध मणिपुर, नगालैंड, अरुणाचल और त्रिपुरा के आतंकी गुटों से है. दूसरा रास्ता बांग्लादेश से है. नीदरलैंड्स की संस्था थिंक टैंक ‘यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज’ (ईएफएसएएस) ने तो अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा भी है कि चीन लगातार भारत में तनाव बढ़ाने में जुटा है. म्यांमार के विद्रोहियों को हथियार देकर भारत के खिलाफ खड़ा कर रहा है.
कई बार भारत और म्यांमार की सेना एक साथ कार्रवाई भी करती है लेकिन उग्रवादियों का नेटवर्क जबर्दस्त है
पूर्वोत्तर के कई उग्रवादी संगठनों ने म्यांमार में शरण ले रखी है. वे बॉर्डर क्रास करके इधर आते हैं और हमले को अंजाम देकर फिर म्यांमार चले जाते हैं. वहां की सरकार के साथ भारत के रिश्ते भी अच्छे हैं लेकिन समस्या यह है कि वह इलाका बहुत दुर्गम है और उग्रवादी जंगलों और पहाड़ों में जाकर छुप जाते हैं. कई बार भारत और म्यांमार की सेना एक साथ कार्रवाई भी करती है लेकिन उग्रवादियों का नेटवर्क जबर्दस्त है और चीन भी उन्हें सारी गतिविधियों की जानकारी देता ही होगा. इसलिए वे बच निकलते हैं.
तो स्वाभाविक रूप से सवाल पैदा होता है कि पूवरेत्तर के राज्यों में ऐसी क्या रणनीति अपनाई जाए जो उग्रवाद के खिलाफ कारगर हो. कांग्रेस के जमाने में भी और अब भाजपा के जमाने में भी बहुत सारे प्रयास हुए हैं जिससे प्रशासनिक व्यवस्था वहां मजबूत हुई है और विकास की धारा बही है. वहां का आम आदमी भी यही चाहता है कि शांति बहाल हो लेकिन उग्रवादियों का इतना दबदबा है कि लोग चुप्पी साधे रहते हैं. इधर उग्रवादियों पर नकेल कसने के लिए सुरक्षा तंत्र जो कार्रवाई करता है, उसमें कई बार आम आदमी भी शिकार हो जाता है. इस कारण कई बार असंतोष भड़क उठता है. इस पर खासतौर पर ध्यान देने की जरूरत है. वैसे सरकार के समक्ष यह भी बड़ी परेशानी है कि शांति स्थापित करने के लिए वह बातचीत करे तो किससे करे? ढेर सारे उग्रवादी संगठन हैं और सबका अपना एजेंडा है. ज्यादातर संगठनों के नेता चीन की गोद में खेल रहे हैं.
उग्रवादियों के सफाये के लिए एक पुख्ता रणनीति बनाई जाए
ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि मानवाधिकार का पूरा खयाल रखते हुए उग्रवाद के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार किया जाए. 2015 में जब भारतीय फौज ने अपने साथियों की शहादत का बदला लिया था और घने जंगलों में घुसकर उग्रवादियों के ठिकाने को नेस्तनाबूद कर दिया था, तब उनके बीच में एक भय का वातावरण बन गया था. करीब-करीब सभी उग्रवादी संगठनों ने चुप्पी साध ली थी. उसके बाद इक्का-दुक्का घटनाएं जरूर होती रहीं लेकिन उग्रवादी किसी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दे पाए.
अब जरूरत इस बात की है कि इन उग्रवादियों के सफाये के लिए एक पुख्ता, सख्त और आक्रामक रणनीति बनाई जाए और इतनी जबर्दस्त घेराबंदी की जाए कि चीन सहित कोई भी बाहरी तत्व किसी भी हालत में उन तक हथियार नहीं पहुंचा पाए. यदि हम ऐसा करने में सफल रहते हैं तो उग्रवादियों पर काफी हद तक नकेल जरूर कस लेंगे. लेकिन पूरी सफलता के लिए मददगार नेताओं और उन तत्वों को भी नेस्तनाबूद करना होगा जो हमारी व्यवस्था के भीतर घुसकर उसे पालते-पोसते हैं और फैलने में मदद करते हैं.