नवीन जैन का ब्लॉग: पुस्तकें दिखाती हैं सही रास्ता
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 24, 2019 08:50 AM2019-04-24T08:50:30+5:302019-04-24T08:50:30+5:30
ग्लोबलाइजेशन के इस युग में किताबें हमसे दूर होती जा रही हैं. पहले ऐसा नहीं था. पुस्तकें हमारी संगी-साथी हुआ करती थीं. गीता में तो यहां तक कहा गया है कि ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं है.
पुस्तकें हमें जिंदगी का सही रास्ता दिखाती हैं और असली मकसद को समझाती हैं. 23 अप्रैल 1616 को अंग्रेजी साहित्यकार शेक्सपीयर ने दुनिया को अलविदा कहा था. शेक्सपीयर की कृतियों का विश्व की समस्त भाषाओं में अनुवाद हुआ है. इसी उपलब्धि को देखते हुए यूनेस्को ने 1995 से और भारत ने 2001 से इस दिन को पुस्तक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की.
ग्लोबलाइजेशन के इस युग में किताबें हमसे दूर होती जा रही हैं. पहले ऐसा नहीं था. पुस्तकें हमारी संगी-साथी हुआ करती थीं. गीता में तो यहां तक कहा गया है कि ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं है. यदि आप नियमित रूप से नहीं पढ़ते हैं तो हर दिन एक किताब के कुछ पन्नों को पढ़ें. जल्दी ही आपको एहसास हो जाएगा कि आप किताबें पढ़ने की अच्छी आदत के आदी हो चुके हैं.
भारत में ऐसे कई परिवार हैं जिनमें आज भी परंपरा है कि या तो घर में पुस्तकें संग्रहित हों या संगीत का कोई वाद्य हो, तभी वह घर सम्पूर्ण घर माना जाता है. पं. जवाहरलाल नेहरू का पुस्तकों के बारे में कहना था कि ‘जो पुस्तक सबसे अधिक सोचने को मजबूर करे, वही उत्तम पुस्तक है.’ पढ़ने की आदत से इंसान का दिमाग सतत् विचारशील रहता है.
इससे उसके सोचने, समझने का दायरा व्यापक होता चला जाता है जिसका प्रभाव उसके पूरे जीवन पर पड़ता है. पुस्तकें पढ़ने की आदत वाला व्यक्ति प्राय: कोई गलत निर्णय नहीं लेता क्योंकि उसकी आदत पड़ जाती है कि हर महत्वपूर्ण बात के अच्छे और बुरे पक्ष पर गहराई से विचार किया जाए उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचा जाए. मतलब यह हुआ कि उसका विवेक सदा क्रियाशील रहता है, और विवेकवान व्यक्ति ही जीवन में सफल होते हैं.
इंग्लैंड के एक विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार जो लोग पढ़ने तथा रचनात्मक गतिविधियों से जुड़े होते हैं, वे हरदम कुछ नया सोचते रहते हैं या करते रहते हैं. मलाला यूसुफजई ने किताबों के बारे में कहा है कि ‘एक किताब, एक कलम, एक बच्चा और एक टीचर पूरी दुनिया बदलने के लिए काफी हैं.’ किताबों के संपर्क में रहने वाले लोगों का दिमाग किताब न पढ़ने वाले लोगों की तुलना में 32 फीसदी युवा बना रहता है.