ब्लॉग: प्रकृति की ऊर्जा का प्रतीक हैं देवी दुर्गा के अलग-अलग रूप

By प्रमोद भार्गव | Published: September 27, 2022 12:28 PM2022-09-27T12:28:32+5:302022-09-27T12:28:32+5:30

चैत्र नवरात्र का आयोजन अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में किया जाता है. प्रकाश और ऊर्जा का समन्वित रूप आदि शक्ति या आदि मां कहलाईं.

Navaratri Different forms of Goddess Durga symbolize the energy of nature | ब्लॉग: प्रकृति की ऊर्जा का प्रतीक हैं देवी दुर्गा के अलग-अलग रूप

प्रकृति की ऊर्जा का प्रतीक हैं देवी दुर्गा के अलग-अलग रूप

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मनुष्य का जीवन भीतरी और बाहरी द्वंद्वों से भरा हुआ है. हमारे ऋषियों ने इसे अपने अंतर्ज्ञान से जान लिया था. इसी भेद को दुनिया के अन्य देशों की सभ्यताओं ने अब जाना है और वे भौतिक प्रगति के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक समता की बात करने लगे हैं. नवरात्रों का आयोजन दो ऋतुओं की परिवर्तन की जिस बेला में होता है, वह इस बात का द्योतक है कि जीवन में बदलाव की स्वीकार्यता अनिवार्य है. 

नवरात्रों का आयोजन अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में किया जाता है. शुक्ल पक्ष घटते अंधकार या अज्ञान का प्रतीक है, वहीं कृष्ण पक्ष बढ़ते अंधकार और अज्ञान का प्रतीक है. प्रति माह उत्सर्जित और विलोपित होने वाले यही दोनों पक्ष जीवन के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष की प्रवृत्तियां हैं. प्रकृति से लेकर जीवन में हर जगह अंतर्विरोध व्याप्त है.

मार्कंडेय पुराण में प्रकाश और ऊर्जा के बारे में कहा गया है कि ‘देवों ने एक प्रकाश पुंज देखा, जो एक विशाल पर्वत के समान प्रदीप्त था. उसकी लपटों से समूचा आकाश भर गया था. फिर यह प्रकाश पुंज एक पिंड में बदलता चला गया, जो एक शरीर के रूप में अस्तित्व में आया. फिर वह कालांतर में एक स्त्री के शरीर के रूप में आश्चर्यजनक ढंग से परिवर्तित हो गया. इससे प्रस्फुटित हो रही किरणों ने तीनों लोकों को आलोकित कर दिया. प्रकाश और ऊर्जा का यही समन्वित रूप आदि शक्ति या आदि मां कहलाईं.’

छान्दोग्य उपनिषद् में कहा गया है कि ‘अव्यक्त से उत्पन्न तीन तत्वों अग्नि, जल और पृथ्वी के तीन रंग सारी वस्तुओं में अंतर्निहित हैं. अतः यही सृष्टि और जीवन के मूल तत्व हैं. अतएव प्रकृति की यही ऊर्जा जीवन के जन्म और उसकी गति का मुख्य आधार है.’

इस अवधारणा से जो देवी प्रकट होती हैं, वही देवी महिषासुर मर्दिनी हैं. इन्हें ही पुराणों में ब्रह्मांड की मां कहा गया है. इनके भीतर सौंदर्य और भव्यता, प्रज्ञा और शौर्य, मृदुलता और शांति विद्यमान हैं. चरित्र के इन्हीं उदात्त तत्वों से फूटती ऊर्जा देवी के चेहरे को प्रगल्भ बनाए रखने का काम करती है. ऋषियों ने इसे ही स्त्री की नैसर्गिक आदि शक्ति माना है और फिर इसी का दुर्गा के नाना रूपों में मानवीकरण किया है. 

उपनिषदों में इन्हीं विभिन्न रूपों को महामाया, योगमाया और योगनिद्रा के नामों से चित्रित व रेखांकित किया गया. इनमें भी महामाया को ईश्वर या प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता मानकर विद्या एवं अविद्या में विभाजित किया गया है. विद्या व्यक्ति में आनंद का अनुभव कराती है, जबकि अविद्या सांसारिक इच्छाओं और मोह के जंजाल में जकड़ती है. विद्या को ही योगमाया या योगनिद्रा के नामों से जाना जाता है.

Web Title: Navaratri Different forms of Goddess Durga symbolize the energy of nature

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