ब्लॉग: साधना से निकले नए संकल्प

By नरेंद्र मोदी | Published: June 3, 2024 10:55 AM2024-06-03T10:55:01+5:302024-06-03T10:56:40+5:30

लोकतंत्र की जननी में लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व का एक पड़ाव 1 जून को पूरा हो गया

narendra modi New resolutions emerged from Sadhana kanyakumari | ब्लॉग: साधना से निकले नए संकल्प

फाइल फोटो

Highlightsदेश के नाम पीएम मोदी का पत्र पीएम ने कहा, लोकतंत्र की जननी में लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व का एक पड़ाव 1 जून को पूरा हो गयापीएम ने कहा, मैं एक असीम ऊर्जा का प्रवाह स्वयं में महसूस कर रहा हूं

मेरे प्यारे देशवासियों,
लोकतंत्र की जननी में लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व का एक पड़ाव 1 जून को पूरा हो गया। कितने सारे अनुभव हैं, कितनी सारी अनुभूतियां हैं। मैं एक असीम ऊर्जा का प्रवाह स्वयं में महसूस कर रहा हूं। वाकई, 24 के इस चुनाव में, कितने ही सुखद संयोग बने हैं।

अमृतकाल के इस प्रथम लोकसभा चुनाव में मैंने प्रचार अभियान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणास्थली मेरठ से शुरू किया। मां भारती की परिक्रमा करते हुए इस चुनाव की मेरी आखिरी सभा पंजाब के होशियारपुर में हुई। संत रविदास जी की तपोभूमि, हमारे गुरुओं की भूमि पंजाब में आखिरी सभा होने का सौभाग्य भी बहुत विशेष है।

इसके बाद मुझे कन्याकुमारी में भारत माता के चरणों में बैठने का अवसर मिला। कुछ ही क्षणों में राजनीतिक वादविवाद, वार-पलटवार। आरोपों के स्वर और शब्द, वह सब अपने आप शून्य में समाते चले गए। मेरे मन में विरक्ति का भाव और तीव्र हो गया। मेरा मन बाह्य जगत से पूरी तरह अलिप्त हो गया।

इतने बड़े दायित्वों के बीच ऐसी साधना कठिन होती है, लेकिन कन्याकुमारी की भूमि और स्वामीविवेकानंद की प्रेरणा ने इसे सहज बना दिया। मैं सांसद के तौर पर अपना चुनाव भी अपनी काशी के मतदाताओं के चरणों में छोड़कर यहां आया था।

मैं ईश्वर का भी आभारी हूं कि उन्होंने मुझे जन्म से ये संस्कार दिए। मैं ये भी सोच रहा था कि स्वामी विवेकानंद जी ने उस स्थान पर साधना के समय क्या अनुभव किया होगा। मेरी साधना का कुछ हिस्सा इसी तरह के विचार प्रवाह में बहा। इस विरक्ति के बीच, शांति और नीरवता के बीच, मेरे मन में निरंतर भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए, भारत के लक्ष्यों के लिए निरंतर विचार उमड़ रहे थे।

कन्याकुमारी के उगते हुए सूर्य ने मेरे विचारों को नई ऊंचाई दी, सागर की विशालता ने मेरे विचारों को विस्तार दिया और क्षितिज के विस्तार ने ब्रह्मांड की गहराई में समाई एकात्मकता, वन नेस का निरंतर एहसास कराया। ऐसा लग रहा था जैसे दशकों पहले हिमालय की गोद में किए गए चिंतन और अनुभव पुनर्जीवित हो रहे हों।

भारत हजारों वर्षों से विचारों के अनुसंधान का केंद्र रहा है। हमने जो अर्जित किया उसे कभी अपनी व्यक्तिगत पूंजी मानकर आर्थिक या भौतिक मापदंडों पर नहीं तौला। इसीलिए, ‘इदं न मम’ यह भारत के चरित्र का सहज एवं स्वाभाविक हिस्सा हो गया है। भारत के कल्याण से विश्व का कल्याण, भारत की प्रगति से विश्व की प्रगति, इसका एक बड़ा उदाहरण हमारी आजादी का आंदोलन भी है।

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। उस समय दुनिया के कई देश गुलामी में थे। भारत की स्वतंत्रता से उन देशों को भी प्रेरणा और बल मिला, उन्होंने आजादी प्राप्त की। अभी कोरोना के कठिन कालखंड का उदाहरण भी हमारे सामने है।

जब गरीब और विकासशील देशों को लेकर आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं, लेकिन, भारत के सफल प्रयासों से तमाम देशों को हौसला भी मिला और सहयोग भी मिला। आज भारत का गवर्नेंस मॉडल दुनिया के कई देशों के लिए एक उदाहरण बना है। सिर्फ 10 वर्षों में 25 करोड़ लोगों का गरीबी से बाहर निकलना अभूतपूर्व है।

गरीब के सशक्तिकरण से लेकर लास्ट माइल डिलीवरी तक, समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को प्राथमिकता देने के हमारे प्रयासों ने विश्व को प्रेरित किया है। भारत का डिजिटल इंडिया अभियान आज पूरे विश्व के लिए एक उदाहरण है कि हम कैसे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल गरीबों को सशक्त करने में, पारदर्शिता लाने में, उनके अधिकार दिलाने में कर सकते हैं।

भारत में सस्ता डाटा आज सूचना और सेवाओं तक गरीब की पहुंच सुनिश्चित करके सामाजिक समानता का माध्यम बन रहा है। बड़ी वैश्विक संस्थाएं कई देशों को हमारे मॉडल से सीखने की सलाह दे रही हैं। आज भारत की प्रगति और भारत का उत्थान केवल भारत के लिए बड़ा अवसर नहीं है।

ये पूरे विश्व में हमारे सभी सहयात्री देशों के लिए भी ऐतिहासिक अवसर है। जी-20 की सफलता के बाद से विश्व भारत की इस भूमिका को और अधिक मुखर हो स्वीकार कर रहा है। आज भारत को ग्लोबल साउथ की एक सशक्त व महत्वपूर्ण आवाज के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।

भारत की ही पहल पर अफ्रीकन यूनियन जी-20 ग्रुप का हिस्सा बना। ये सभी अफ्रीकन देशों के भविष्य का एक अहम मोड़ साबित हुआ है। साथियों, 21वीं सदी की दुनिया आज भारत की ओर बहुत आशाओं से देख रही है। और वैश्विक परिदृश्य में आगे बढ़ने के लिए हमें कई बदलाव भी करने होंगे।

हमें रिफोर्म को लेकर हमारी पारंपरिक सोच को भी बदलना होगा। भारत रिफोर्म को केवल आर्थिक बदलावों तक सीमित नहीं रख सकता है। हमें जीवन में हर क्षेत्र में रिफोर्म की दिशा में आगे बढ़ना होगा। हमारे रिफोर्म 2047 के विकसित भारत के संकल्प के अनुरूप भी होने चाहिए।

हमें ये भी समझना होगा कि किसी भी देश के लिए रिफोर्म कभी एकाकी प्रक्रिया नहीं हो सकती। इसीलिए, मैंने देश के लिए रिफोर्म, परफोर्म और ट्रांसफोर्म और ट्रांसफोर्म का विजन सामने रखा। रिफोर्म का दायित्व नेतृत्व का होता है। उसके आधार पर हमारी ब्यूरोक्रेसी परफोर्म करती है और फिर जब जनता जनार्दन इससे जुड़ जाती है, तो ट्रांसफोरमेशन होते हुए देखते हैं। भारत को विकसित भारत बनाने के लिए हमें श्रेष्ठता को मूल भाव बनाना होगा। हमें स्पील, स्केल और स्कोप और स्टैंड्ड चारों दिशाओं में तेजी से काम करना होगा।

हमें मैन्युफैक्चरिंग के साथ-साथ क्वालिटी पर जोर देना होगा, हमें जीरो डिटेक्ट, जीरो इफैक्ट के मंत्र को आत्मसात करना होगा। साथियों, हमें हर पल इस बात पर गर्व होना चाहिए कि ईश्वर ने हमें भारत भूमि में जन्म दिया है। ईश्वर ने हमें भारत की सेवा और इसकी शिखर यात्रा में हमारी भूमिका निभाने के लिए चुना है। हमें प्राचीन मूल्यों को आधुनिक स्वरूप में अपनाते हुए अपनी विरासत को आधुनिक ढंग से पुनर्परिभाषित करना होगा। हमें एक राष्ट्र के रूप में पुरानी पड़ चुकी सोच व मान्यताओं का परिमार्जन भी करना होगा।

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कहा था कि हमें अगले 50 वर्ष केवल और केवल राष्ट्र के लिए समर्पित करने होंगे। उनके इस आह्वान के ठीक 50 वर्ष बाद, 1947 में भारत आजाद हो गया। आज हमारे पास वैसा ही स्वर्णिम अवसर है। हम अगले 25 वर्ष केवल और केवल राष्ट्र के लिए समर्पित करें।

हमारे ये प्रयास आने वाली पीढ़ियों और आने वाली शताब्दियों के लिए नए भारत की सुदृढ़ नींव बनकर अमर रहेंगे। मैं देश की ऊर्जा को देखकर ये कह सकता हूं कि लक्ष्य अब दूर नहीं है। आइए, तेज कदमों से चलें। मिलकर चलें, भारत को विकसित बनाएं।

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