नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉग: जीवन दर्शन का पाठ पढ़ाया गुरु तेगबहादुरजी ने
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 24, 2019 08:15 AM2019-04-24T08:15:12+5:302019-04-24T08:15:12+5:30
गुरुजी ने जहां लोगों को सत्य धर्म का उपदेश देकर प्रचार तथा जीवों का उद्धार किया, वहीं काफी सामाजिक कार्य भी किए. कई स्थानों पर उन्होंने कुएं तथा सरोवर बनवाए.
धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शो और सिद्धांतों की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान देने वालों में गुरुतेगबहादुरजी का स्थान अग्रणी है. उनका जन्म बैसाख पंचमी 1678 को अमृतसर में गुरु हरगोबिंद साहिब के घर हुआ. बचपन से ही वे संतस्वरूप, उदारचित्त, बहादुर, गहन विचारक तथा निर्भीक स्वभाव के थे. धार्मिक व आध्यात्मिक रुचि उनमें बहुत अधिक थी. छोटी सी उम्र में ही वह कई बार समाधि लगाकर बैठ जाते थे. माताजी को फिक्र सताती तो पिता कहते हमारे पुत्र को भविष्य में महान कार्य करने हैं इसीलिए यह अभी से तैयारी कर रहा है.
पिता के मार्गदर्शन में गुरुजी ने धर्मग्रंथों की शिक्षा के साथ-साथ घुड़सवारी, अस्त्र-शस्त्र चलना सीखा. केवल 13 वर्ष की आयु में करतारपुर जंग में पिता के साथ तेगबहादुरजी ने तलवार के जाैहर दिखाकर पिता द्वारा दिए नाम तेग को तेग (तलवार) का धनी सिद्ध किया. माता गुजरीजी के साथ उनका विवाह हुआ था, जिससे उनके घर एकमात्र पुत्र गोबिंद सिंह का जन्म हुआ. उनके जीवन का प्रथम दर्शन यही था कि धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है. शांति, क्षमा, सहनशीलता के गुणों के धनी गुरु तेगबहादुरजी ने लोगों को प्रेम, एकता व भाईचारे का संदेश दिया. पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के ज्योति जोत समाने के पश्चात गुरु तेगबहादुरजी पत्नी सहित अमृतसर के समीप बकाला गांव में आ गए व आध्यात्मिक साधना में लीन हो गए.
गुरुजी ने जहां लोगों को सत्य धर्म का उपदेश देकर प्रचार तथा जीवों का उद्धार किया, वहीं काफी सामाजिक कार्य भी किए. कई स्थानों पर उन्होंने कुएं तथा सरोवर बनवाए. इन कार्यो में वे स्वयं तथा उनके साथी व इलाके के लोग मिल-जुलकर कार्य करते थे. उन दिनों हरियाणा के लोग तंबाकू की खेती करते थे तथा इसका अत्यधिक सेवन करते थे. गुरुजी ने उन्हें सत्य धर्म का उपदेश देकर तंबाकू से दूर हटाया.
उन्होंने अपने जीवन काल में संसार की नश्वरता, माया की क्षुद्रता, सांसारिक बंधनों की असारता, जीवन की क्षणभंगुरता पर काव्य सृजन किया. कुल 59 शबद तथा 57 श्लोकों की रचना की, जो गुरुग्रंथ साहिब में 15 रागों में दर्ज है. ‘जैसे जल ते बुदबुदा उपजै बिनसै नीत, जग रचना तैसी रची कहु नानक सुन मीत.’
गुरुजी का फरमान है - जो मनुष्य इस संसार के सारे माया, मोह से निर्लेप हो जाता है, वही ईश्वर तक पहुंच पाता है. शांति, प्रेम, अडोलता, सहनशीलता, वैराग्य, त्याग की वे प्रतिमूर्ति थे. उनका वैराग्य संसार त्यागने वाला नहीं, अपितु संसार में रहकर समरस जीवन बिताने वाला है. इन सभी जीवन मूल्यों के साथ उन्होंने जीवन जिया और मानवता के लिए मिसाल बन गए. आज उनकी जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन.