Modi 3.0 Cabinet: राजनीति में जाति का कायम है वर्चस्व

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 20, 2024 11:08 IST2024-06-20T11:06:24+5:302024-06-20T11:08:54+5:30

Modi 3.0 Cabinet: दिल्ली, भुवनेश्वर और विजयवाड़ा में नई सरकारें बनीं तो चर्चा उम्मीदवारों की जाति को लेकर थी, न कि जनप्रतिनिधि के तौर पर उनकी उपलब्धियों की.

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HighlightsModi 3.0 Cabinet: केंद्र सरकार को निरंतरता और बदलाव के आदर्श मिश्रण के तौर पर देखा जा रहा है.Modi 3.0 Cabinet: मंत्रियों की योग्यता गौण हो गई है और उनकी राजनीतिक स्थिति में भी गिरावट आई है. Modi 3.0 Cabinet: भारत के बढ़ते राजनीतिक बाजार में जीत की सबसे अच्छी रणनीति बन गई है.

प्रभु चावला-

मोदी 3.0 के नेतृत्व में, एनडीए 3.0 में जातिगत छाप स्पष्ट है. नरेंद्र मोदी इसके शिल्पकार हैं जिन्होंने भारत की सामाजिक विरासत की शाश्वत भट्टी में सरकार बनाने के लिए वर्ण और कर्म को मिश्रित किया है. राम मोहन राय, विवेकानंद, सुब्रमण्यम भारती और नारायण गुरु जैसे लोगों की विरासतों के बावजूद, सुधारों में अब विकृति आ गई है. जाति हमारी आधुनिक आकांक्षाओं पर अपनी छाया डालती है. इसकी सामाजिक विकृति में हालांकि कमी आई है, लेकिन चुनाव दर चुनाव इसका राजनीतिक लाभ उठाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. अब योग्यता को नहीं, बल्कि जाति को महत्व देकर सत्ता का मार्ग प्रशस्त किया जाता है. पिछले हफ्ते जब दिल्ली, भुवनेश्वर और विजयवाड़ा में नई सरकारें बनीं तो चर्चा उम्मीदवारों की जाति को लेकर थी, न कि जनप्रतिनिधि के तौर पर उनकी उपलब्धियों की.

लगातार तीसरी बार मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को निरंतरता और बदलाव के आदर्श मिश्रण के तौर पर देखा जा रहा है.  लेकिन जाति को दिए जाने वाले इस अत्यधिक महत्व के आगे मंत्रियों की योग्यता गौण हो गई है और उनकी राजनीतिक स्थिति में भी गिरावट आई है. राजनीतिक रूप से आगे बढ़ने के लिए जाति को एक अनिवार्य योग्यता के रूप में दिखाना भारत के बढ़ते राजनीतिक बाजार में जीत की सबसे अच्छी रणनीति बन गई है. उदाहरण के लिए, पिछले हफ्ते ओडिशा में भाजपा ने करिश्माई नवीन पटनायक को सत्ता से बेदखल करके बड़ी जीत हासिल की, जो 24 साल से सत्ता में थे.

निस्संदेह, भाजपा ने आंशिक रूप से उड़िया अस्मिता या गौरव का आह्वान करके जीत हासिल की क्योंकि एक पूर्व दक्षिण भारतीय नौकरशाह सत्ता पर राज कर रहा था और उसे पटनायक का उत्तराधिकारी माना जा रहा था. योगी आदित्यनाथ से लेकर मोदी तक, भाजपा का सबसे बड़ा सवाल यही था, ‘‘क्या आप एक तमिल बाबू को ओडिशा पर शासन करने देंगे?’’

जब राज्य में अपना पहला मुख्यमंत्री चुनने का समय आया, तो पार्टी ने उपलब्धियों के बजाय सामाजिक संदर्भों को ध्यान में रखा. 52 वर्षीय आदिवासी मोहन चरण माझी को ओडिशा के पहले भगवा मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया. राज्य के अनोखे सामाजिक गणित को साधने के लिए, पिछली गठबंधन सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री के.वी. सिंह देव को दो उपमुख्यमंत्रियों में से एक के रूप में शपथ दिलाई गई.

दूसरी, प्रवती परिदा महिला सशक्तिकरण के लिए भाजपा की प्रतीक हैं और राज्य की पहली महिला उपमुख्यमंत्री हैं. इन नियुक्तियों में भाजपा के कई दिग्गजों को किनारे कर दिया गया, क्योंकि वे राज्य की नई भगवा सामाजिक संरचना का हिस्सा नहीं थे. प्रथम दृष्टया के.वी. सिंह देव मुख्यमंत्री बनने के लिए उपयुक्त थे.

लेकिन माझी एक साधारण सामाजिक स्थिति वाले कट्टर हिंदू के रूप में अधिक वांछनीय प्रतीत हुए होंगे. उन्हें दीर्घकालिक राजनीतिक दौड़ में जीतने वाले घोड़े के रूप में देखा जा रहा है. जब से मोदी पार्टी और सरकार में सबसे शक्तिशाली बने हैं, तब से दोनों पर उनका प्रभाव स्पष्ट है. स्वयं साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले मोदी स्वाभाविक रूप से ऐसे अप्रत्याशित उम्मीदवारों को सामने लाते हैं, जो क्षेत्र और समाज में लंबे समय से राजनीतिक रूप से उपेक्षित हैं. हर राज्य में वैकल्पिक नेतृत्व प्रदान करने की उनकी दीर्घकालिक नीति का नवीनतम उदाहरण ओडिशा के नए मुख्यमंत्री हैं.

उनके कार्यकाल की एक खासियत यह रही है कि उन्होंने परंपरा को तोड़ा है. जरूरी नहीं है कि अब सबसे वरिष्ठ विधायक या किसी अच्छे संपर्क वाले राजनेता को ही मुख्यमंत्री के रूप में चुना जाए. 1980 से अब तक भाजपा के 54 मुख्यमंत्री बन चुके हैं, जिनमें से करीब 20 का चयन प्रधानमंत्री की सहमति से किया गया.

वे सभी न केवल अपने पूर्ववर्तियों से युवा थे, बल्कि राज्य की सामाजिक संरचना में भी भिन्न थे. मोदी द्वारा राज्य सरकार का नेतृत्व करने के लिए चुने गए सभी लोग अपने आप में एक संदेश हैं. अपेक्षाकृत युवा होने के अलावा, अधिकांश मुख्यमंत्रियों ने कभी भी पार्टी या सरकार में कोई महत्वपूर्ण पद नहीं संभाला है.

मोदी ने वरिष्ठता और प्रमुख जाति के अधिकार को नजरअंदाज करके उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, त्रिपुरा, उत्तराखंड और ओडिशा में आश्चर्यचकित कर दिया. उन्होंने यूपी में युवा ठाकुर योगी आदित्यनाथ को और महाराष्ट्र में ब्राह्मण देवेंद्र फडणवीस को आगे बढ़ाया. वे भविष्य की भाजपा का नेतृत्व करने के लिए एक वैकल्पिक नेतृत्व तैयार करने की उम्मीद कर रहे थे.

लेकिन हरियाणा में, उन्होंने अपेक्षाकृत अधिक उम्र के आरएसएस प्रचारक मनोहर लाल खट्टर को चुना, जो जाटों के प्रभुत्व वाले राज्य में भाजपा के पहले पंजाबी मुख्यमंत्री थे; खट्टर अब एक प्रमुख केंद्रीय मंत्री हैं. त्रिपुरा में, बिप्लब कुमार देब सबसे कम उम्र के सीएम बने. मोदी के सबसे भरोसेमंद युवा सहयोगी अमित शाह, जो अब दो बार के गृह मंत्री हैं, को 2019 में भाजपा के सबसे युवा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया. राजस्थान के ब्राह्मण सीएम भजन लाल शर्मा राजपूत के गढ़ में पहली बार ही विधायक चुने गए हैं.

मध्य प्रदेश में अहीर समुदाय से मोहन लाल यादव ने पिछड़ी जाति के शिवराज चौहान की जगह ली. मोदी को अपने भाजपा शासित राज्यों में तीन आदिवासी मुख्यमंत्री और एक महिला मुख्यमंत्री स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है. मोदी-शाह की टीम भाजपा को युवा जोश से भरी एक नई वैचारिक शक्ति के रूप में स्थापित कर रही है, लेकिन राज्यों में एक नई सत्ता संरचना भी स्थापित कर रही है.

मोदी का विचार है कि अपने शासन वाले लगभग सभी राज्यों में ऐसे उपमुख्यमंत्री बनाए जाएं, जो जातिगत संतुलन का हिस्सा न हों, बल्कि नेतृत्व की दूसरी पंक्ति के रूप में उभरें - एक ऐसी अवधारणा जो पिछले दो दशकों के दौरान लगभग गायब हो गई थी. सभी राज्यों के 25 उपमुख्यमंत्रियों में से 15 भाजपा के हैं, जिनमें से आधे दलित या पिछड़े समुदाय से हैं.

कुछ ब्राह्मण उपमुख्यमंत्री हैं. सत्ता में जाति पहले, गुणवत्ता बाद में, का एक समान समीकरण हर जगह देखा जा रहा है. गरीबों और पिछड़े वर्गों से नया नेतृत्व तैयार करने का मोदी का प्राथमिक लक्ष्य अभी तक परिणाम नहीं दिखा सका है. केंद्रीय मंत्रिमंडल में तीन पूर्व मुख्यमंत्री हैं, जबकि अधिकांश अन्य मंत्री या तो सेवानिवृत्त बाबू हैं या अपेक्षाकृत अनुभवहीन हैं.

उन्हें व्यापक स्वीकार्यता पाने और वर्तमान नेतृत्व के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य विकल्प बनने में मुश्किल होगी.  चूंकि मोदी की जगह लेने वाला कोई दूसरा नहीं है, इसलिए उनके पास कोई विकल्प नहीं है. 30 से ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्रियों में से किसी की भी इतनी स्वीकार्यता नहीं है कि वे प्रधानमंत्री बन सकें.

उत्तराधिकार के मामले में, 18 करोड़ से ज्यादा सदस्यों वाली भाजपा की स्थिति 139 साल पुरानी कांग्रेस जितनी ही खराब है, जहां गांधी परिवार के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. वर्तमान राजनीति में जाति का रंग भले ही गहरा हो गया है, लेकिन इसकी बनावट और स्वाद अच्छा नहीं है.

समसामयिक जाति की राजनीति ने उन नींवों को मजबूत किया है जो समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं. ‘जाति का, जाति से और जाति के लिए’ भारतीय वोट बैंक की विशेषता है जिसका इस्तेमाल नेता ओवरड्राफ्ट के रूप में करते हैं.

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