वेदप्रताप वैदिक का नजरियाः यौन उत्पीड़न पर नेताओं ने इसलिए साध रखी है चुप्पी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 18, 2018 10:41 PM2018-10-18T22:41:46+5:302018-10-18T22:41:46+5:30
नेताओं को यह डर लगा रहता है कि कहीं वह खुद न फंस जाएं इस जाल में।
यौन-शोषण के इतने अधिक आरोप लगे कि केंद्रीय मंत्नी एमजे अकबर को आखिरकार इस्तीफा देना ही पड़ा। इस्तीफा देने में उन्होंने 10 दिन लगा दिए। इन दस दिनों में सरकार की छवि पर असर पड़ा। कई लोगों ने प्रश्न किए, अखबारों और टीवी चैनलों में कि सरकार की चुप्पी का रहस्य क्या है? मैं पूछता हूं कि क्या किसी भी पार्टी के प्रमुख नेता का बयान यौन-शोषण के विरोध में आया? हां, अकबर के विरोध में जरूर आया लेकिन वह मूलत: अकबर के खिलाफ नहीं, भाजपा के खिलाफ था।
यूरोप के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक फ्रायड, एडलर और जुंग को आप पढ़ें तो आपको पता चलेगा कि यह यौन-शोषण क्यों होता है और इसे कौन लोग करते हैं। यौन-शोषण या यौन-उत्पीड़न वही लोग करते हैं, जो सत्ता के भूखे होते हैं और जिनमें जबर्दस्त हीन-भाव होता है। ऐसे संस्कारहीन लोग पत्नकारिता, व्यापार, व्यवसाय, शिक्षा संस्थाओं और नौकरशाही में तो होते ही हैं, सबसे ज्यादा वे राजनीति में होते हैं।
यौन-शोषण या यौन-उत्पीड़न सिर्फ पुरुष ही करते हों, ऐसा नहीं है। शक्तिशाली औरतों द्वारा मर्दो के यौन-शोषण और उत्पीड़न की कथाएं हम कई उपन्यासों में तो पढ़ते ही हैं, व्यावहारिक जीवन में भी देखते आए हैं। इसीलिए कोई बड़ा नेता इस मुद्दे को मुद्दा बनाना ही नहीं चाहता। नेताओं को यह डर लगा रहता है कि कहीं वह खुद न फंस जाएं इस जाल में।
नेताओं की चुप्पी तो मैं समझ गया लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को तो इस मामले में आगे बढ़कर पहल करनी चाहिए थी। वह ‘संस्कार’ की श्रेष्ठता पर इतना जोर देता है। उसके आदर्शो को मानने वाली पार्टी की सरकार हो और वह इस तरह से चुप रहे तो लोग उसका क्या मतलब निकालेंगे? क्या देश में कोई नैतिक शक्ति रही ही नहीं?