गुरचरण दास का ब्लॉगः मानसिकता में बदलाव जरूरी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 8, 2018 06:03 PM2018-11-08T18:03:11+5:302018-11-08T18:03:11+5:30
भारतीय महिलाओं को डोनाल्ड ट्रम्प को धन्यवाद देना चाहिए जिन पर लगे आरोपों के बाद अमेरिका में महिलाओं का ‘मी टू’ आंदोलन तेजी से फैला। वहां से यह हमारे देश में पहुंचा और दर्जनों महिलाओं ने यौन र्दुव्यवहार की आपबीती बयां की।
गुरचरण दास
ऐसे समय में, जबकि आर्थिक भूमंडलीकरण खतरे में है, वैश्विक भावना और संस्कृति का एक विपरीत रुझान सामने आया है। जिस असाधारण गति से ‘मी टू’ आंदोलन दुनिया भर में फैला, वह वैश्वीकरण की वजह से ही है। एक साल के भीतर दुनिया भर के समाज में ऐसे सामाजिक और भावनात्मक मुद्दों पर सहज ढंग से बात हो रही है जिन्हें पहले अनदेखा कर दिया जाता था। भारत में, इसकी वजह से एक मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और कई शक्तिशाली लोगों को अपनी प्रतिष्ठा गंवानी पड़ी। जिस तरीके से महिलाएं खुद को महसूस कर रही हैं, उसमें स्पष्ट परिवर्तन दिखाई दे रहा है। निश्चित रूप से यह हमारे देश के इतिहास में एक मील का पत्थर है। सवाल यह है कि हम इस क्रांति को कैसे बनाए रखते हैं?
भारतीय महिलाओं को डोनाल्ड ट्रम्प को धन्यवाद देना चाहिए जिन पर लगे आरोपों के बाद अमेरिका में महिलाओं का ‘मी टू’ आंदोलन तेजी से फैला। वहां से यह हमारे देश में पहुंचा और दर्जनों महिलाओं ने यौन र्दुव्यवहार की आपबीती बयां की। लेकिन आंदोलन तभी सार्थक होगा जब समाज में लड़कों को अलग तरह से व्यवहार करना सिखाए जाने की शुरुआत हो। उन्हें मर्दानगी का एक अलग अर्थ और ‘सहमति’ को सही अर्थो में जानने की जरूरत है।
‘मी टू’ आंदोलन पुरुष बनाम महिला का मुद्दा नहीं है। भारत के ‘मी टू’ आंदोलन का मकसद पुरुषों को बदनाम करना या व्यक्तिगत प्रतिशोध लेना नहीं है। यह पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता लाने के बारे में है। इसे हासिल करने के लिए माता-पिता को बेटे और बेटियों के बीच समानता की भावना बढ़ाने तथा लड़कों को बचपन से ही लड़कियों की इज्जत करने के बारे में सिखाना होगा। बहुत पुरानी बात नहीं है जब उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के इस बयान से देश भर में रोष पैदा हुआ था कि ‘लड़कों से गलती हो जाती है’!
‘मी टू’ आंदोलन से महिलाओं के लिए न्याय की लड़ाई की सिर्फ शुरुआत हुई है और आगे एक लंबा रास्ता तय करना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने समस्या की जड़ को काफी पहले पहचान लिया था। कुछ साल पहले स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में उन्होंने अभिभावकों से सवाल किया था कि ‘हम केवल बेटियों के ही रात में घर देर से आने पर क्यों चिंतित होते हैं, बेटों के देर से आने पर क्यों नहीं?’ लड़कों को कई चीज बचपन में ही सिखाने की जरूरत है जिसमें यह भी शामिल है कि महिलाओं की निजता का उनकी अनुमति के बिना उल्लंघन नहीं किया जा सकता।