एन. के. सिंह का ब्लॉगः नैतिकता के तराजू पर गांधीजी और आज के नेता
By एनके सिंह | Published: August 30, 2019 03:31 PM2019-08-30T15:31:28+5:302019-08-30T15:31:28+5:30
स्वतंत्र भारत में आज एक नेता संविधान में निष्ठा की शपथ लेता है, लेकिन उसका निकट रिश्तेदार मंत्री के विभाग की शक्तियों का इस्तेमाल करने वाली निजी कंपनियों में कानूनी सलाहकार या वकील नियुक्त हो जाता है मोटे पैसे लेकर.
महात्मा गांधी ने द. अफ्रीका में रह रहे भारतीयों व स्थानीय लोगों पर अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ बगैर कोई फीस लिए कानूनी जंग जीती थी. समय-समय पर वहां के लोगों ने उन्हें महंगे उपहार दिए जो सोने-चांदी के जेवर के रूप में ही नहीं हीरे के भी थे. जब भारत लौटने का समय आया तो गांधीजी को नैतिकता का बोध हुआ और वह समाज द्वारा दिए गए उन उपहारों को वापस समाज के कार्य में ही प्रयुक्त करवाना चाहते थे. पत्नी कस्तूरबा ने विरोध किया यह बता कर कि ये मन से दिए गए उपहार हैं और उन्हें लौटाना नहीं चाहिए.
झगड़ा आगे बढ़ा और ‘बा’ ने दावा किया कि यह उपहार सिर्फ उनके (गांधी) की वकालत की फीस न लेने की वजह से नहीं है बल्कि उसमें उनका (बा का) भी योगदान है - खाना बनाने या घर संभालने की जिम्मेदारी के रूप में. लेकिन गांधी जिद पर टिके रहे. ‘बा’ ने अगले तर्क के रूप में बेटों की भावी पत्नियों के लिए ‘जेवर’ की बात कही. बापू ने अकेले में बेटों को भी अपने पक्ष में कर लिया जिन्होंने अपनी मां को उपहार लौटाने का औचित्य समझाया. बा अंत में हार गईं. सोने-चांदी-हीरे के गहने सहित सभी उपहार एक स्थानीय कल्याण ट्रस्ट बना कर उसे सौंप दिए गए ताकि समाज के सार्वजनिक काम में प्रयुक्त हो सकें.
स्वतंत्र भारत में आज एक नेता संविधान में निष्ठा की शपथ लेता है, लेकिन उसका निकट रिश्तेदार मंत्री के विभाग की शक्तियों का इस्तेमाल करने वाली निजी कंपनियों में कानूनी सलाहकार या वकील नियुक्त हो जाता है मोटे पैसे लेकर. फिर इस मंत्री के बेटे-बेटी या भतीजे -भतीजियां भी रातों-रात व्यापारिक टैलेंट विकसित कर लेते हैं और पब्लिक इश्यू तक निकाल देते हैं जिन्हें यही निजी कंपनियां या कॉर्पोरेट घराने अगले 24 घंटों में सोने के भाव खरीद लेते हैं. क्या मंत्री को इतनी समझ नहीं होती कि उसका रिश्तेदार अचानक टैलेंट की खान कैसे बन जाता है?
भारत में या दुनिया के तमाम विकासशील देशों में भ्रष्टाचार एक नए दौर में प्रवेश कर चुका है जिसे कोल्युसिव (सहमति के साथ) या दूसरे शब्दों में पे-ऑफ सिस्टम का भ्रष्टाचार कहते हैं जो सत्तर के दशक के पूर्व से चल रहे भ्रष्टाचार ‘कोएर्सिव’ से काफी अलग है. इस किस्म के भ्रष्टाचार का नुकसान अंततोगत्वा सरकार लिहाजा समाज का होता है क्योंकि सत्ता में बैठे लोग निजी हित में लगे दलाल के साथ एक सहमति बनाते हैं. चूंकि डील किसी पांच तारा होटल में किसी तीसरे व्यक्ति के साथ (जो मंत्री का आदमी होता है) होती है, लिहाजा मंत्री पर आरोप साबित करना जांच एजेंसियों के लिए मुश्किल होता है जब तक कि पूर्ण ईमानदारी और गहराई से जांच न हो.