महाराष्ट्र दिवस विशेष: विकास की राह पर उम्मीदों का साया
By अमिताभ श्रीवास्तव | Published: May 1, 2019 05:03 PM2019-05-01T17:03:49+5:302019-05-01T17:03:49+5:30
महाराष्ट्र विशेष: आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2017-18 में राज्य की विकास दर 7.3 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद जताई गई थी, जो 2016-17 की दर 10 फीसदी की तुलना में 2.7 प्रतिशत कम थी।
अपनी स्थापना के 59 साल पूरे करने के साथ महाराष्ट्र आज अपने कीर्तिमान छह दशकों के पूर्णत्व की ओर बढ़ चला है। इस लंबे सफर में राज्य की विकास गाथा है और नई चुनौतियां भी हैं। राज्य में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में उन्नति की प्रेरणादायी कहानियां भी हैं। मगर कभी एकतरफा रहे इस सफर में अब कई आह्वान नजर आते हैं। भौतिक सुखों में जीते हुए भी प्राकृतिक सुखों का ह्रास परेशान करने लगा है।
हरित और औद्योगिक क्रांति में पथ प्रदर्शक राज्य अपने नए लक्ष्यों की ओर बढ़ते हुए अपनी आंतरिक समस्याओं से ही घिरने लगा है। इसके पीछे राजनीतिक और सामाजिक कारणों को जिम्मेदार माना जाए तो भी ताजा परिस्थितियों को समग्र रूप से देखने की जरूरत है।
हालांकि चुनावी साल होने के कारण वर्तमान राज्य सरकार बजट या उसके पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण में अपनी पीठ थपथपाने के अवसर से वंचित रही है, लेकिन पिछले सालों के आंकड़ों को भी देखा जाए तो राज्य की उजली तस्वीर ही दिखाई देती है। पिछले साल सरकार ने अपने आर्थिक सर्वेक्षण में दावा किया था कि प्रति व्यक्ति वार्षिक आय में 15105 रुपए की बढ़ोत्तरी हुई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में आमदनी 1,65,491 रुपए थी, जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 1,80,596 रुपए हो गई।
आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2017-18 में राज्य की विकास दर 7.3 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद जताई गई थी, जो 2016-17 की दर 10 फीसदी की तुलना में 2.7 प्रतिशत कम थी। इसी प्रकार कृषि विकास दर में भी 8.3 फीसदी की कमी बताई गई। राज्य सरकार ने कृषि में गिरावट के लिए वर्षा को जिम्मेदार ठहरा दिया था, लेकिन अन्य क्षेत्रों में गिरावट के लिए उसके पास कोई ठोस आधार नहीं था। साफ है कि राज्य के विकास में कहीं न कहीं व्यवधान स्थान ले रहे हैं। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप या सरकारी आंकड़ेबाजी चाहे जितनी की जाए, मगर निर्माण, उत्पादन और सेवा सभी क्षेत्रों में मुश्किलें लगातार बढ़ी हैं।
नोटबंदी और जीएसटी का असर
नोटबंदी और जीएसटी ने हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। इनसे विकास दर तो प्रभावित हुई ही है, मगर बेरोजगारी और तालाबंदी जैसी स्थितियों को आगे बढ़ने में मदद मिली है। साफ है कि बिगड़ी हुई आर्थिक परिस्थिति सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित करती है। राज्य में भी कमोबेश वही नजर आ रहा है। समाज के विभिन्न घटकों में आरक्षण की मांग इसी बात का उदाहरण है। राज्य सरकार किसी एक समाज के आरक्षण का पूरी तौर पर निपटारा नहीं कर पाती है कि दूसरे समाज का बड़ा तबका अपनी मांगों को लेकर खड़ा हो जाता है। इसमें सामाजिक अंतर तो बढ़ ही रहा है, आर्थिक असुरक्षा को लेकर चिंताएं भी बढ़ रही हैं।
राज्य के बड़े भाग में जल संकट की स्थिति है। जिसके मद्देनजर ‘जल युक्त शिवार’ नामक जल संरक्षण का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। हर साल पांच हजार गांवों को जल संकट मुक्त करने के लक्ष्य को लेकर इस वर्ष पूरे राज्य को जल संकट मुक्त महाराष्ट्र बनाने का लक्ष्य है। वर्ष 2014-15 में भूजल स्तर से दो मीटर नीचे के राज्य की 188 तहसीलों के 2 हजार 234 गांवों और सूखा ग्रस्त 22 जिलों के 19 हजार 59 गांवों में सरकारी कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से चलाने के प्रयास हो रहे हैं। मगर जमीनी स्तर पर स्थिति में कुछ उदाहरणों को छोड़कर कोई बड़ा सुधार नहीं हो रहा है।
गहराता जल संकट
जल संकट ग्रामीण भागों से लेकर शहरी इलाकों तक बड़ा संकट बनकर उभरने लगा है। इसने कृषि क्षेत्र को तो प्रभावित किया ही है, अब आम जन जीवन और रोजी-रोटी के लिए भी चिंता का विषय बन चुका है। ऐसे में कोई नई उम्मीद सजाना आसान नहीं है। पर्यावरण की स्थिति में अधिक सुधार की कम उम्मीद के चलते बारिश से बदलाव के बारे में अनुमान लगाना भी मुश्किल हो चला है।
समूची प्रगति के इर्द-गिर्द मूलभूत समस्याओं का संकट राज्य के लिए आज चिंता का विषय है। शहरी आबादी का लगातार बढ़ना और महानगरों के नाम पर प्रगति का बखान प्रदेश को कहीं न कहीं पीछे खींच रहा है। आधारभूत जरूरतों से वंचित रहने पर ग्रामीण भागों से पलायन बड़ी परेशानी बन रही है और शहरी भाग कुछ समय में विस्फोटक स्थिति में पहुंच जाएंगे। राज्य छठे दशक में बेहतर कल के लिए कोशिशें कर रहा है। राजनीतिक स्तर पर कोशिशें जारी हैं। मगर जमीन पर परिवर्तन दिखाई नहीं दे रहा है। हर क्षेत्र में निराशा की तस्वीर घर करती जा रही है। संभव है कि इसके पीछे वैश्विक कारण भी हों, लेकिन इन्हें आम आदमी को समझा पाना आसान नहीं है।
विकास के पथ पर उम्मीदों का साया तो है, लेकिन चित्र अभी अस्पष्ट है। अब राज्य के चारों ओर प्रतिस्पर्धा का वातावरण है। निवेश आकर्षित करना हर राज्य का लक्ष्य है। अत: केवल इतिहास के पन्नों को पढ़कर काम नहीं चलेगा। नई सोच से नए सपनों को साकार करना होगा, तभी महाराष्ट्र केवल दावों पर नहीं, बल्कि वास्तविकता के धरातल पर देश का अग्रणी राज्य दर्ज किया जाएगा। अन्यथा दावे-प्रतिदावों पर ऊर्जा व्यर्थ होगी।