Maharashtra Assembly Elections 2024: दिल्ली में हो रही महाराष्ट्र के दिल की बात!

By Amitabh Shrivastava | Published: August 10, 2024 05:31 AM2024-08-10T05:31:53+5:302024-08-10T05:31:53+5:30

Maharashtra Assembly Elections 2024: मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, अजित पवार से लेकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने बेटे आदित्य ठाकरे के साथ तीन दिन तक दिल्ली में ताल ठोंक चुके हैं.

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Highlightsमतदाता से लेकर पार्टियों के कार्यकर्ता तक संभ्रम में जीने के लिए मजबूर हैं.उद्धव ठाकरे ने गत छह अगस्त से तीन दिन का दिल्ली दौरा किया.राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की.

Maharashtra Assembly Elections 2024: एक जमाना था जब क्षेत्रीय दलों की ताकत के चलते सारे राजनीतिक समझौते राज्यों की राजधानियों में होते थे, लेकिन तालमेल की सियासत आरंभ होने के बाद से जहां गठबंधन का वजन अधिक होता है, वहीं पर प्रादेशिक दलों को अपने दिल की बात कहने जाना पड़ता है. इसी क्रम में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव की तैयारियों का केंद्र दिल्ली बन चुका है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, अजित पवार से लेकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने बेटे आदित्य ठाकरे के साथ तीन दिन तक दिल्ली में ताल ठोंक चुके हैं.

यह इसलिए भी हो रहा, क्योंकि बीते कुछ सालों में राज्य में राजनीतिक गठबंधन कुछ इस तरह तैयार हो गए हैं कि दल एक-दूसरे का हाथ पकड़े बिना आगे बढ़ नहीं पा रहे हैं. अतीत में भगवा दलों का मेलमिलाप और धर्मनिरपेक्ष दलों का एकजुट होना विचारधारा का सीधा विभाजन कर दिखाता था. मगर इन दिनों मतदाता से लेकर पार्टियों के कार्यकर्ता तक संभ्रम में जीने के लिए मजबूर हैं.

ताजा घटनाक्रम में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने गत छह अगस्त से तीन दिन का दिल्ली दौरा किया. उन्होंने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की. गत गुरुवार को वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल से भी मिले.

वैसे यह लोकसभा चुनाव के बाद उनका पहला और राजनीतिक जीवन का सबसे लंबी अवधि का दिल्ली दौरा था. बीते सालों, खास तौर पर नब्बे के दशक की महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर में शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे का कद बहुत ऊंचा नजर आता था. वह राजनीति के समीकरणों को अपने घर पर बैठकर तय करते थे और सभी दलों के नेता उनसे मिलने उनके घर पर ही जाते थे.

उसके बाद जब तक राज्य में भगवा गठबंधन कायम रहा, तब तक मुंबई का दबाव बना रहा. किंतु वर्ष 2019 में महाविकास आघाड़ी की सरकार बनने के बाद से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे का घर से बाहर निकलना आरंभ हो गया. वह अनेक बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार के मुंबई स्थित निवास स्थान सिल्वर ओक तक जाते दिखाई दिए.

जब वर्ष 2022 में उनकी सरकार गिर गई और कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए क्षेत्रीय दलों को साथ लाना आरंभ किया और ‘इंडिया’ गठबंधन बना तो वह उसकी बैठक में शामिल होने पटना भी पहुंचे. ठाकरे लोकसभा चुनाव के दौरान मुंबई में हुई ‘इंडिया’ गठबंधन की रैली का भी हिस्सा बने, जिससे लोकसभा चुनाव के अच्छे परिणाम सामने आए. साथ ही उन्हें धर्मनिरपेक्ष गठबंधन की राजनीति का महत्व समझ आया. बावजूद इसके अब विधानसभा चुनाव के मुहाने पर स्थितियां अलग हैं. महाराष्ट्र में ‘इंडिया’ गठबंधन के अनेक घटक दल चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हैं.

यहां तक कि कांग्रेस बार-बार पूरी सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा को सामने रख रही है. मुंबई में आम आदमी पार्टी (आप) की भी चुनाव लड़ने की तैयारी है. राज्य की कुछ सीटों के साथ मुंबई में समाजवादी पार्टी (सपा) भी अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार सकती है. ऐसे में राज्य में धर्मनिरपेक्ष मतों के बंटवारे की प्रबल संभावना है, जो ‘इंडिया’ गठबंधन के आधार हैं.

यह बात लोकसभा चुनाव में शिवसेना के उद्धव गुट को अच्छी तरह समझ में आ गई है. उसका स्वतंत्र रूप से लड़कर खुद के वोट बैंक के सहारे चुनाव जीतना असंभव है. यूं भी विधानसभा चुनाव में कुल मतदाता कम होने से मामूली अंतर से जीत-हार का खतरा हमेशा बना रहता है. इसलिए किसी तालमेल की घोषणा के पहले आपसी सामंजस्य का होना आवश्यक है.

राज्य में कांग्रेस के शीर्ष नेता, आप के नेता और सपा के नेता अपनी जमीन बनाए रखने की स्थिति में चुनाव मैदान से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं. यह संभव है कि शिवसेना उद्धव गुट राकांपा के पवार गुट को सीट बंटवारे में समझाने में सफलता पा सकता है, लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन के बाकी दलों को सीमाओं में बांधने के लिए दिल्ली से संदेश की जरूरत होगी.

उधर, सत्ताधारी महागठबंधन में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) महाराष्ट्र में 150 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है. उसने वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में 152 सीटों पर चुनाव लड़ा था. शिवसेना का शिंदे गुट लगभग 125 सीटों की मांग कर रहा है. राकांपा का अजित पवार गुट 80 सीटों पर सर्वेक्षण कर चुनाव की तैयारी कर रहा है.

इस परिस्थिति को समझने और समझाने के लिए मुख्यमंत्री शिंदे, उपमुख्यमंत्री फडणवीस और अजित पवार दिल्ली के दौरे कर रहे हैं. कोई केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिल रहा है तो कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल रहा है. इन्हीं मुलाकातों के केंद्र में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा भी हैं. शिंदे और अजित पवार दोनों को मालूम है कि भाजपा की महत्वाकांक्षा उनके अरमानों पर पानी फेर सकती है.

इसलिए वे भाजपा के हाईकमान से दबाव बनाने के भरसक प्रयास में जुटे हैं. राज्य में सत्ताधारी गठबंधन के पास विधानसभा में 180 से अधिक विधायक हैं. यदि सभी को दोबारा चुनाव लड़ने का अवसर दिया जाता है तो बंटवारे के लिए अवसर कम रह जाता है. किंतु चुनाव में मत विभाजन की संभावना के चलते हर सीट पर दोबारा जीत का भरोसा नहीं किया जा सकता है.

इसलिए जीत की अधिक संभावना के साथ ही किसी उम्मीदवार को टिकट दिया जा सकता है. ऐसे में निजी भावना, समर्पण और निष्ठा को चुनाव में अधिक महत्व मिलने की गुंजाइश कम है. इस बीच, लोकसभा चुनाव में हारे हुए अनेक उम्मीदवार भी विधानसभा में चुनाव लड़ने का ख्वाब देख रहे हैं. उनको लेकर दलों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है.

इसलिए दिल्ली की दौड़ आवश्यक हो चली है, जहां पर दिल की बात की जा सकती है और कोई आसान रास्ता निकाला जा सकता है. साथ ही पक्ष-विपक्ष के चुनावी मुद्दों की तैयारी की जा सकती है. इसी कारण राज्य की नई राजनीति से दिल्ली की दूरियां खत्म हो चली हैं. मगर यह परिस्थिति उनके लिए परेशानी पैदा करने वाली है, जो यह कहते थे कि महाराष्ट्र पर दिल्ली की हुकूमत नहीं चल सकती है.

अब वही अपनी हुकूमत चलाने-बचाने के लिए दिल्ली के गलियारों को नापते नजर आ रहे हैं. शायद उन्हें भी यह विश्वास हो चला है कि दिल्ली में दिल की बात से समाधान के दरवाजे खुल सकते हैं और राज्य की सियासत का रास्ता सीधा हो सकता है.

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