Maharashtra polls: किसी भी दिन बजेगा चुनावी बिगुल?, अब आई बोल और वचन के बीच फैसले की घड़ी
By Amitabh Shrivastava | Published: October 12, 2024 05:13 AM2024-10-12T05:13:05+5:302024-10-12T05:13:05+5:30
Maharashtra Assembly Elections 2024: पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम 24 अक्तूबर 2019 को आने के बाद राज्य में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) और शिवसेना का गठबंधन 161 सीटों को जीतकर सत्ता का प्रबल दावेदार बनकर उभरा था.
Maharashtra Assembly Elections 2024: अगले सप्ताह किसी भी दिन महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज सकता है. सितंबर की संभावनाओं से लेकर अक्तूबर तक पहुंचा चुनाव 26 नवंबर तक पूरा होने की संभावना है. करीब सवा महीने की चुनावी प्रक्रिया के लिए प्रशासनिक तंत्र तैयार है. वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दल अनेक माह पहले से ही चुनावी माहौल में रंग चुके हैं. विपक्ष के जहां सरकार पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार अपनी उपलब्धियों और कल्याणकारी योजनाओं के सहारे चुनाव की ओर कदम रख रही है.
इस सब के बीच, विपक्ष धोखाधड़ी से बनी सरकार के आरोप पर सहानुभूति पाने के लिए लालायित है तो दूसरी ओर सत्ता पक्ष पिछली सरकार के निकम्मेपन को बता कर अपने ढाई साल के कामों को गिना रहा है. इसी के बीच मतदाता है, जो जाति के फेर में भी फंसा है और अपनी समस्याओं से भी दो-चार हो रहा है.
फिर भी अच्छी बात यह है कि पिछले पांच साल में उसे दो सरकारों के कामकाज का अनुभव लेने का अवसर मिला, जो उसे फैसले की घड़ी में विकल्प उपलब्ध कराएगा और सही नतीजे पर पहुंचाएगा. यूं तो पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम 24 अक्तूबर 2019 को आने के बाद राज्य में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) और शिवसेना का गठबंधन 161 सीटों को जीतकर सत्ता का प्रबल दावेदार बनकर उभरा था.
किंतु दोनों के बीच सत्ता के नेतृत्व का समझौता नहीं होने से सरकार नहीं बन पाई और राष्ट्रपति शासन लगाया गया. उसके बाद 23 नवंबर को अचानक अलसुबह राष्ट्रपति शासन हटाया गया और भाजपा-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) गठबंधन की तीन दिन की सरकार बनी. आगे चल कर वह बहुमत सिद्ध करने में विफल रहने के कारण गिर गई.
जिसके बाद राज्य में कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना के महाविकास आघाड़ी के रूप में बने नए गठबंधन ने सरकार बनाने का दावा किया. फिर 28 नवंबर को उद्धव ठाकरे के रूप में राज्य को 19वें मुख्यमंत्री मिले. वैसे तो समस्त प्रकार के राजनीतिक दांव-पेंच के बाद सरकार बनी, लेकिन उसके पास विधानसभा में 169 विधायकों का समर्थन दर्ज हुआ.
इस दृष्टि से गठबंधन सरकार को कोई बाह्य खतरा प्रतीत नहीं होता था. किंतु मार्च 2020 में आई कोविड महामारी ने देश-दुनिया के साथ महाराष्ट्र सरकार को भी हिला कर रख दिया. वैचारिक रूप से भिन्नता रखने के बाद भी साथ आए राज्य के तीन दलों के बीच सामंजस्य एक चुनौती थी. फिर भी कोरोना संकट ने सरकार की कमजोरी झलकने नहीं दी.
लगभग तीन लॉकडाउन का सामना करने के बाद मार्च-अप्रैल 2022 से सरकार को खुलकर काम करने का अवसर मिला. मगर गठबंधन को अधिक दिन टिकाया नहीं जा सका. जून-2022 में शिवसेना में बड़ी फूट होने के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार बन गई और लगभग ढाई साल पुरानी ठाकरे सरकार गिर गई.
हालांकि तीस माह की अवधि में उसे 20 माह से अधिक समय तक कोविड महामारी और लॉकडाउन से निपटना पड़ा. वहीं दूसरी ओर महामारी समाप्त होने के बाद आई शिंदे सरकार को बिना किसी रुकावट के काम करने का अवसर मिला. एक सरकार ने लोगों को घर में रोककर जान बचाने में अपनी भूमिका निभाई.
तो दूसरी सरकार ने महामारी के संकट से बाहर निकलकर आए लोगों का मनोबल बढ़ाकर पूर्व अवस्था में लाने में अपना योगदान दिया. अब कोविड के दौरान और कोविड संकट के बाद की सरकार के राजनीति में अलग-अलग मायने बन चुके हैं. राज्य के मुख्यमंत्री शिंदे बार-बार अपने भाषणों में महामारी के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के फेसबुक पर लाइव दिए गए भाषणों का संदर्भ लेकर आलोचना करते हैं. किंतु वह उस समय की परिस्थितियों की आवश्यकता भी थी. दूसरी ओर ठाकरे सरकार के मंत्रियों और नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगना और जेल भी जाना चिंताजनक था.
फिलहाल वे सभी जमानत पर रिहा हो चुके हैं. दूसरी ओर राज्य की शिंदे सरकार ने अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार के मामलों को नजरअंदाज कर सरकारी योजनाओं और कोविड के कारण रुके कामों को तेजी से पूरा करवाया. विदेशी निवेश के प्रयासों को भी गति प्रदान की. इस प्रयास में उसे सहयोगी भाजपा और केंद्र सरकार का खुला सहयोग मिला.
वहीं, कोविड के दौरान तथा बाद में भी ठाकरे सरकार का दावा रहा कि केंद्र सरकार ने उसकी सहायता नहीं की. मगर शिंदे सरकार ने एजेंडा ही नहीं, भाजपा शासित राज्य सरकारों की योजनाओं को भी अपनाया. जिससे उसने स्वयं की छवि काम करने वाली और आमजन की सरकार के रूप में गढ़ने का प्रयास किया.
यद्यपि विपक्ष ने योजनाओं को झूठी व प्रलोभनकारी बताने से चूक नहीं की. उसने अनेक मामलों में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए. इस सब के ऊपर भाजपा पर छोटी पार्टियों को तोड़ने का सर्वाधिक आरोप लगाकर सहानुभूति बटोरने के प्रयास किए. दरअसल भाजपा ने टूटी शिवसेना के साथ सरकार तो बनाई ही, एक साल बाद राकांपा में भी फूट का लाभ उठाकर उसे अपने साथ मिला लिया.
लगभग पांच साल की समग्र परिस्थिति के बीच मतदाता के समक्ष चुनावों में सही आकलन की जिम्मेदारी है. बीते पांच सालों में उसने जितना राजनीति का खेल देखा, उतना राज्य में कभी नहीं देखा गया. जाति से लेकर संप्रदाय तक, दल से लेकर गुट तक, विकास से लेकर विनाश तक और परिवार से लेकर समाज तक हर जगह राजनीति ने अपनी जगह बनाकर मतदाता को भ्रमित अवस्था में लाकर छोड़ दिया है.
स्थितियां यहां तक हैं कि प्रत्याशियों के चयन से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं की मनोदशा को जानना किसी के बस में नहीं है. इस परिदृश्य में मतदाता के समक्ष कानों में गूंजते कुछ बोल और स्मृतियों में वचन हैं, जिनसे उम्मीदवारों के भविष्य का निर्णय होगा.
अवश्य ही फैसला खरी कसौटी पर होगा, क्योंकि ढाई-ढाई साल की दो सरकारों का कामकाज सामने है. भले ही किसी को अंधियारी रात का सफर या किसी को दिन के उजाले में दौड़ने का अवसर मिला हो. मतदाता की अपेक्षाएं दिन-रात के साथ नहीं बदलतीं, भले ही सरकारें क्यों न बदल जाएं.