मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत के शिल्पकार बने सीएम शिवराज, संघ और संगठन
By शिवअनुराग पटैरया | Published: November 11, 2020 08:51 PM2020-11-11T20:51:56+5:302020-11-11T20:53:23+5:30
28 विधानसभा क्षेत्रों के कल देर रात तक आए नतीजों में भाजपा ने 19 और कांग्रेस ने 9 विधानसभा क्षेत्रों में जीत दर्ज कराई. पर बात अलग की कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आए तीन मंत्रियों इमरती देवी, गिर्राज दंडौतिया और ऐंदल सिंह कंसाना को पराजय हाथ लगी. इसके साथ ही कांग्रेस से भाजपा में आए 4 अन्य पूर्व विधायक भी पराजित हो गए.
मध्य प्रदेश के विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा की सफलता में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ, संघ और संगठन महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया.
28 विधानसभा क्षेत्रों के कल देर रात तक आए नतीजों में भाजपा ने 19 और कांग्रेस ने 9 विधानसभा क्षेत्रों में जीत दर्ज कराई. पर बात अलग की कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आए तीन मंत्रियों इमरती देवी, गिर्राज दंडौतिया और ऐंदल सिंह कंसाना को पराजय हाथ लगी. इसके साथ ही कांग्रेस से भाजपा में आए 4 अन्य पूर्व विधायक भी पराजित हो गए.
28 विधानसभा क्षेत्रों लिए आए नतीजों के साथ ही यह बात स्पष्ट हो गई कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार के सामने अब कोई संकट नहीं है. ताजा परिणामों के साथ ही राज्य विधानसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 107 से बढ़कर 126 हो गई. वहीं कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 87 से बढ़कर 96 हो गई.
भाजपा और कांग्रेस के साथ ही विधानसभा मेें 4 निर्दलीय बसपा के 2 और सपा का एक सदस्य है. इस समय 230 सदस्यों वाली विधानसभा में सदस्यों की संख्या 229 है, क्योंकि चुनाव की प्रक्रिया के दौरान ही कांग्रेस के दमोह विधानसभा क्षेत्र के विधायक इस्तीफा देकर भाजपा में शरीक हो गए. विधानसभा के उपचुनाव में जिस तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रचार अभियान संभाला, उससे कांग्रेस का विकाऊ और गद्दार का नारा असफल साबित हो गया.
आम लोगों ने शिवराज सिंह चौहान को मिस्टर टिकाऊ मानते हुए, उन पर भरोसा किया, जबकि कांग्रेस और कमलनाथ ने सिंधिया और उनके समर्थकों को गद्दार बताने वाली अपनी बात मतदाता तक नहीं पहुंचा पाए. उपचुनाव में भाजपा के चुनावी अभियान में संघ ने प्रत्यक्ष तौर पर दूर रहकर भी अपने स्वयंसेवकों के जरिए, भाजपा को वोट करना मतदाताओं तक पहुंचते हुए, भाजपा के पक्ष में मतदान म.प्र. के हित में बताया. स्वयंसेवक के संपर्क और संवाद के साथ ही असंतुष्ट भाजपा नेता संघ के अनुशासन के डंडे के दम पर नाराज चल रहे, डा. गौरीशंकर शेजवार जैसे नाराज लोग काम पर लग गए.
इसका नतीजा हुआ कि राजधानी भोपाल से लगी हुए सांची विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस से भाजपा में आए, डा. प्रभुराम चौधरी ने 50 हजार से ज्यादा मतों से अपनी जीत दर्ज कराई. उपचुनाव में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा के नेतृत्व में भाजपा के स्थानीय संगठन ने कांग्रेस से भाजपा में आए.
प्रत्याशियों को पूरी तौर पर अपना मानकर काम किया, इसकी तुलना में कांग्रेस का संगठन सिर्फ कमलनाथ पर आश्रित रहा. पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी और अरुण यादव जैसे लोगों को कांग्रेस के प्रचार अभियान में कोई बड़ी भूमिका नहीं मिली, जबकि पचौरी ब्राम्हण नेता और अरुण यादव पिछड़े वर्ग के नेता के तौर पर प्रभावी कार्य कर सकते थे.
इसकी तुलना में भाजपा ने संगठन के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया, गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा का उनकी उपयोगिता का भरपूर उपयोग किया. जहां संगठन को जरूरत लगी उनको भेजा गया. इसी का प्रतिफल यह हुआ कि भाजपा ने उपचुनाव में अच्छे प्रदर्शन को आकार दिया.