विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: लोकतंत्र में असहमति के अधिकार की रक्षा जरूरी

By विश्वनाथ सचदेव | Published: May 3, 2019 05:31 AM2019-05-03T05:31:15+5:302019-05-03T05:31:15+5:30

हमारी त्नासदी यह है कि हम जनतंत्न के सहिष्णुता के आधार को भी कमजोर बना रहे हैं. और यह अनजाने में नहीं हो रहा. सहिष्णु होने का अर्थ है विरोधी विचारों के प्रति उदार रुख अपनाना. मैं सही हूं, लेकिन तुम भी सही हो सकते हो- यह है वह अनेकांतवाद जो हमारी, भारत की विशेषता है.

Lokmat Blog of Vishwanath Sachdev on Right of disagreement in Democracy | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: लोकतंत्र में असहमति के अधिकार की रक्षा जरूरी

2018 के साहित्य अकादमी सम्मान से विभूषित चित्ना मुद्गल की फाइल फोटो। (फोटो सोर्स - फेसबुक)

पिछले दिनों मुंबई में हिंदी की चर्चित लेखिका और वर्ष 2018 के साहित्य अकादमी सम्मान से विभूषित चित्ना मुद्गल के सम्मान में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था. हालांकि चित्नाजी अब राजधानी दिल्ली में रहती हैं, पर मुंबई में वे पली-बढ़ी हैं, इसलिए मुंबई को अपना मायका ही मानती हैं. स्वाभाविक है, यह अवसर उनके लिए एक भावुक क्षण था. मुंबई के रचनाकारों ने भी बड़ी आत्मीयता से चित्ना मुद्गल का अभिनंदन किया. 

लेकिन इस अभिनंदन के लिए उनके मुंबई आने के पहले ही एक विवाद भी मुंबई आ गया था. हुआ यह कि कुछ ही दिन पूर्व कुछ रचनाकारों ने प्रधानमंत्नी मोदी का समर्थन करते हुए इस आशय की एक अपील जारी की थी कि भाजपा को वोट दिया जाए. इस अपील पर हस्ताक्षर करने वालों में एक नाम चित्ना मुद्गल का भी था. कुछ लोगों को इस तरह किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थन में उनका सामने आना सही नहीं लगा. ऐसे लोगों में से कुछ ने जरूरी समझा कि चित्ना मुद्गल जैसी वरिष्ठ लेखिका को यह अहसास कराया जाना चाहिए कि एक पार्टी विशेष के समर्थन में बयान देना उन जैसी रचनाकार की मर्यादा के अनुकूल नहीं है. उन्होंने ऐसा किया भी.

सरकार के समर्थन में बयान देने को गलत समझने और गलत करार देने वालों को ऐसा करने का पूरा अधिकार है. लेकिन क्या यह अधिकार उनको भी नहीं है जो सरकार का समर्थन करते हैं? फ्रांसीसी विचारक वाल्तेयर ने कहा था कि मैं आपसे असहमत हो सकता हूं, पर अपनी राय रखने के आपके अधिकार की रक्षा के लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूं. वस्तुत: असहमति का यह अधिकार जनतांत्रिक मूल्यों और मर्यादाओं को परिभाषित करता है. और हमारी, यानी हमारे देश की आज की एक त्नासदी यह है कि हम जनतंत्न के इस बुनियादी सिद्धांत को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. जिन विविधताओं को हम अपनी सुंदरता और ताकत मानते हैं, उनमें एक विविधता विचारों की भी है. हमारा कर्तव्य है कि न केवल अपने इस अधिकार की रक्षा करें, बल्कि दूसरे के इस अधिकार की रक्षा को भी अपना दायित्व समझें. 

लेकिन, दुर्भाग्य से राजनीतिक स्वार्थो के चलते देश में आज कुछ ऐसी हवा बही है कि असहमति को देशद्रोह तक कहा जा रहा है- यदि देश-प्रेम की मेरी परिभाषा को आप नहीं स्वीकारते तो आप देशद्रोही हैं. कुछ वर्ष पहले देश के जाने-माने रचनाकारों ने साहित्य अकादमी के रुख पर अप्रसन्नता जाहिर करते हुए अवार्ड वापसी  की एक मुहिम चलाई थी. उनकी शिकायत यह थी कि अकादमी लेखकों की आजादी और अधिकारों की रक्षा के अपने दायित्व को नहीं निभा रही, अत: विरोध-स्वरूप वे अकादमी द्वारा दिए गए सम्मान लौटा रहे हैं. लेखकों के इस कदम से कोई असहमत हो सकता है, लेकिन यह कहना तो सही नहीं होगा कि लेखकों की यह अवार्ड वापसी देश-द्रोह है. 

हमारी त्नासदी यह है कि हम जनतंत्न के सहिष्णुता के आधार को भी कमजोर बना रहे हैं. और यह अनजाने में नहीं हो रहा. सहिष्णु होने का अर्थ है विरोधी विचारों के प्रति उदार रुख अपनाना. मैं सही हूं, लेकिन तुम भी सही हो सकते हो- यह है वह अनेकांतवाद जो हमारी, भारत की विशेषता है. हमने अपने लिए जिस राजनीतिक व्यवस्था को स्वीकारा है, उस जनतंत्न में हर नागरिक को अपनी बात रखने की आजादी है. इसके साथ ही यह भी समझना होगा कि धर्म या जाति या भाषा के आधार पर, या फिर बहुमत के विरु द्ध राय रखने के आधार पर, किसी की राष्ट्र-भक्ति का आकलन नहीं किया जा सकता. 

आज चुनौतियों के पहाड़ हमारे सामने हैं. सबसे बड़ी चुनौती तो उस संविधान की रक्षा करने की है जिसके आधार पर हमने एक नए भारत का सपना देखा था. उस नए भारत में जाति या धर्म या भाषा के नाम पर बंटवारे के लिए कोई जगह नहीं है. राष्ट्र-प्रेम पर किसी धर्म विशेष का एकाधिकार नहीं है. हर नागरिक का दायित्व बनता है कि वह उस संविधान के प्रति प्रतिबद्ध हो जो हमें समानता का अधिकार देता है, भाई-चारे के बंधन में बांधता है और न्याय का आश्वासन देता है. 

यह संविधान हमारे कर्तव्यों को परिभाषित करता है, पर साथ ही साथ इस बात का भी अहसास कराता है कि हम एक स्वतंत्न देश के स्वतंत्न नागरिक हैं. यहां किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी चित्ना मुद्गल को उसकी राय प्रकट करने से रोक सके. अभिव्यक्ति की आजादी का यह अधिकार हर नागरिक की ताकत है- और किसी व्यक्ति या किसी व्यवस्था में यह ताकत नहीं है कि वह संविधान -प्रदत्त नागरिक की ताकत को कम आंकने या कम करने की जुर्रत करे. भिन्न राय रखना अपराध नहीं है, अपराध है इस भिन्न राय को सम्मान न देना. जनतंत्न में विश्वास करने वाले नागरिक के नाते मेरा यह दायित्व बनता है कि मैं कहूं, चित्नाजी, मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूं, पर अपनी बात रखने के आपके अधिकार की रक्षा करने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूं. जनतंत्न में यह दायित्व हर विवेकशील नागरिक का होता है.

Web Title: Lokmat Blog of Vishwanath Sachdev on Right of disagreement in Democracy