बिहार: हाजीपुर में रामविलास पासवान की प्रतिष्ठा दाव पर, मतदाताओं की खामोशी ने किया बेचैन
By एस पी सिन्हा | Published: May 2, 2019 04:59 AM2019-05-02T04:59:49+5:302019-05-02T04:59:49+5:30
1977 से 2014 तक अपनी जीत दर्ज कराने वाले रामविलास पासवान को भी दो बार हाजीपुर से पराजय का सामना करना पडा था. पहली बार 1984 में उन्हें इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार रामरतन राम से तो दूसरी बार 2009 में जदयू उम्मीदवार व पूर्व मुख्यमंत्री स्व रामसुंदर दास से.
बिहार हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र राजनीतिक रूप से शुरू से ही काफी चर्चा में रहा है. यहां से सांसद रहे रामविलास पासवान ने अपनी जीत को गिनीज बुक तक में दर्ज करा चुके हैं, लेकिन इसबार वह खुद चुनावी समर से बाहर हैं और अपने भाई पशुपति कुमार पारस को चुनाव मैदान में उतार दिया है. ऐसे में चुनाव मैदान में भले ही रामविलास पासवान न हों लेकिन यहां के चुनाव में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. कहा जा रहा है कि अगर पारस की जीत हुई तो यह पासवान की जीत होगी और अगर उनकी हार होती है तो यह पासवान की हीं हार होगी.
दरअसल, यहां के राजनीतिक इतिहास को देखें तो पायेंगे कि रामविलास पासवान बनाम अन्य ही रहा है. हाजीपुर लोकसभा यानी रामविलास पासवान. इस तरह से उनका यहां खासा असर रहा है. हालांकि 1977 से 2014 तक अपनी जीत दर्ज कराने वाले रामविलास पासवान को भी दो बार यहां से पराजय का सामना करना पडा था. पहली बार 1984 में उन्हें इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार रामरतन राम से तो दूसरी बार 2009 में जदयू उम्मीदवार व पूर्व मुख्यमंत्री स्व रामसुंदर दास से. इस बार रामविलास पासवान चुनावी मैदान में नहीं है. उनकी विरासत संभालने की जिम्मेदारी उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को मिली है. वे एनडीए उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में हैं. वहीं, उनके सामने हैं महागठबंधन के उम्मीदवार पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम. इस सीट के लिए दोनों ओर से जमकर जोर आजमाइश हो रही है. पिछले चार दशक तक यहां विकास ही मुद्दा रहा है. इस बार विकास के साथ-साथ स्थानीय व बाहरी को भी मुद्दा बनाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है. वहीं, मतदाता इस बार पूरी तरह से खामोश दिख रहे हैं. चुनाव में कौन सा मुद्दा हावी होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा.
वैसे चुनावी मैदान में जोर आजमाइश कर रहे धुरंधरों को इस बार मतदाताओं की खामोशी अंदर-ही-अंदर परेशान कर रही है. उम्मीदवार दम छुडाती इस गर्मी में भी मतदाताओं को रिझाने के लिए दरवाजे से लेकर खेत-खलिहान तक में हाजिरी बनाने से नहीं चूक रहे हैं. हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र के चुनावी मैदान में डटे राजनीतिक धुरंधर इस बार भी विकास के मुद्दे को ही ज्यादा हवा दे रहे हैं, लेकिन, चर्चा स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के मुद्दों की ही हो रही है. स्थानीय बनाम बाहरी, अगडी-पिछडी, आरक्षण और विरासत की सियासत जैसे मुद्दे इस बार चुनावी फिजां में खूब उछल रहे हैं. लेकिन मतदाता खामोश दिख रहे हैं.
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले तक हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पातेपुर विधानसभा क्षेत्र और वैशाली लोकसभा क्षेत्र में लालगंज विधानसभा क्षेत्र हुआ करते थे. लेकिन, परिसीमन के बाद लालगंज को हाजीपुर से और पातेपुर को उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र से जोड दिया गया. हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में अभी हाजीपुर, लालगंज, महुआ, राजापाकर, महनार व राघोपुर विधानसभा क्षेत्र आते हैं.
गंगा और गंडक नदी से घिरे हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र की खास पहचान यहां की फिजां में घुली चिनिया केले की मिठास के साथ-साथ एक खास शख्स व फिजां में गूंजने वाले नारे से भी रही है और वे शख्स हैं रामविलास पासवान और उनके स्वागत में समर्थकों की ओर से लगाया जाने वाला नारा. धरती गूंजे आसमान, रामविलास पासवान.