चुनावी सर्वे : राजनीतिक दलों के लिए चिंता का सबब या मीडिया के अर्थव्यवस्था का नया मॉडल, आत्मविश्लेषण की जरूरत किसे ज्यादा है?
By विकास कुमार | Published: January 24, 2019 10:34 AM2019-01-24T10:34:38+5:302019-01-24T10:34:38+5:30
देश के तमाम मेनस्ट्रीम मीडिया चैनल और उनकी पूरी मशीनरी इस वक्त चुनावी सर्वे में व्यस्त हैं. शाम होते ही लोकसभा चुनाव का हल्ला राजनीतिक पार्टियों के कार्यालय से ज्यादा मीडिया चैनलों के दफ्तर में होने लगता है.
इस वक्त की सबसे बड़ी खबर, अगर आज हुए चुनाव तो यूपी में बीजेपी का हो सकता है सूपड़ा साफ. रात के 9 बज गए हैं और इस वक्त की सबसे बड़ी खबर है कि यूपी में महागठबंधन का कोई असर भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक स्वास्थय पर पड़ता हुआ नहीं दिख रहा है. प्रदेश में मोदी मैजिक एक बार फिर सर चढ़कर बोल रहा है. जी नहीं इस बार नहीं चलेगा मोदी का मैजिक और कौन पार लगाएगा बीजेपी की नैय्या. बीजेपी का चाणक्य बनाम कांग्रेस का चाणक्य.
देश के तमाम मेनस्ट्रीम मीडिया चैनल और उनकी पूरी मशीनरी इस वक्त चुनावी सर्वे में व्यस्त हैं. शाम होते ही लोकसभा चुनाव का हल्ला राजनीतिक पार्टियों के कार्यालय से ज्यादा मीडिया चैनलों के दफ्तर में होने लगता है.
हर दिन नया नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश
हाल ही में आये एक निजी चैनल का सर्वे भारतीय जनता पार्टी के लिए एक भयानक स्वप्न की तरह है. जिसमें देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी गठबंधन को मात्र 18 सीटें मिलने का दावा किया गया है. इस सर्वे के अनुसार महागठबंधन को जिसमें सपा-बसपा-रालोद शामिल है उन्हें 58 सीटें मिलने का दावा किया गया है. अगर इस गठबंधन में कांग्रेस को भी शामिल कर लिया जाता तो भाजपा का उत्तर प्रदेश में सूपड़ा साफ हो जाता. उस स्थिति में महागठबंधन को 75 सीटें मिलती. लेकिन यह साफ है कि किसी भी हाल में जबरदस्त नुकसान बीजेपी को ही होता हुआ नजर आ रहा है.
हर एक सर्वे के बाद दूसरे सर्वे की तैयारी की जा रही है और ऐसा लग रहा है कि एक सुनियोजित प्लान के तहत हर बार अलग-अलग गठबंधन को मजबूत दिखाने का प्रयास किया जा रहा और इसके पीछे की वजह विज्ञापन का वो आर्थिक मॉडल दिख रहा है जिसको हाल के दिनों में राजनीतिक दलों ने दोनों हांथों से लुटाने का ट्रेंड लांच किया है.
मेनस्ट्रीम मीडिया में टीआरपी की होड़
सर्वे के मुताबिक महागठबंधन के कारण बीजेपी को जबरदस्त नुकसान होने वाला है. देश में आये दिन टीवी चैनलों पर लोकसभा चुनाव को लेकर सर्वे सामने आ रहा है. जिसमें हर सप्ताह अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं. कभी भारतीय जनता पार्टी को 50 सीटें दी जा रही है तो कभी 18 सीटों पर पहुंचा दिया जा रहा है. बीते दिन देश की प्रमुख मीडिया चैनल के आये सर्वे में मात्र 2,478 लोगों से राय ली गई है और उसी के आधार पर पूरे राज्य का खांका खींच लिया गया है. सर्वे के मुताबिक बीजेपी के वोट शेयर में भी जबरदस्त गिरावट देखने को मिल रहा है. लेकिन इस सर्वे का क्या भरोसा जब 15 दिनों के बाद यही चैनल एक और नए सर्वे के साथ आ जाये. लोकसभा चुनाव से पहले मेनस्ट्रीम मीडिया के बीच देश के तमाम राजनीतिक दलों की तरह हर रोज एक नया घोषणा करने की होड़ सी लग गई है.
हर 15 दिन बाद किए जा रहे सर्वे में किसी भी प्रदेश का समीकरण बदलता हुआ दिख रहा है, जैसे राजनीति नहीं हो मुंबई का शेयर बाजार हो. लोकसभा चुनाव से पहले टीआरपी के जंग में तमाम चैनल उतर गए हैं और प्रतिदिन नए सर्वे के जरिये एक राजनीतिक तूफान खड़ा करने की कोशिश की जा रही है.
सर्वे से पैदा की जा रही है सनसनी
लोकसभा चुनाव को इस बार देश के आखिरी लोकसभा चुनाव की तरह पेश किया जा रहा है. नरेन्द्र मोदी और अमित शाह इसे नैतिक युद्ध बता रहे हैं तो विपक्ष इसे देश की सामाजिक ताने-बाने की रक्षा का अंतिम संकल्प. इस बीच सन्नाटे को चीर कर सनसनी बनाने वाली मीडिया भी पार्टियों और राजनीतिक दलों का बखूबी साथ निभा रही हैं. सरकार और विपक्ष के हर एक कदम को चुनाव से जोड़ दिया जा रहा है और फिर उस पर तमाम तरह की पंचायतों का एलान कर दिया जाता है.
अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि यह चुनाव देश के लिए धर्मयुद्ध की तरह है जैसे उनका विपक्ष कांग्रेस और टीएमसी नहीं बल्कि महमूद गजनवी और नादिर शाह है. उनके इस बयान को मीडिया का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है और प्रतिदिन नए सर्वे के साथ एक फेक नैरेटिव पेश कर दिया जा रहा है. इस खेल में सभी साझे रूप से शामिल हैं इसलिए कोई भी इस ट्रेंड के खिलाफ बोलने की नैतिक साहस नहीं जुटा पा रहा है. लेकिन हाल के दिनों में मीडिया जगत के भीतर से ही कुछ बड़े नामों ने आये दिन होने वाले चुनावी सर्वे पर गंभीर चिंता जताई है.
सर्वे विज्ञापन हासिल करने का आर्थिक मॉडल तो नहीं
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. यहां चुनाव आजादी के बाद से ही होते आ रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे. लेकिन जिस तरह से आज राजनीतिक पार्टियां अपने चुनाव प्रचार पर खर्च कर रही हैं और मीडिया भी अपने संसाधनों को झोंक रहा है उससे देश में एक राजनीतिक अव्यवस्था का महल बनता हुआ दिख रहा है. 2014 के बाद से अकेले भारतीय जनता पार्टी ने विज्ञापन के ऊपर 4000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और अगर सभी राजनीतिक दलों को इसमें शामिल कर दिया जाए तो यह आंकड़ा आसमान छूने लगेगा.
इसमें कोई शक नहीं है कि राजनीतिक दलों के चुनावी प्रचार का एक बड़ा बजट टीवी चैनलों को जाता है जिससे टीवी मालिक भी मालामाल हो रहे हैं और यह एक पेशा बनता जा रहा है. तो क्या इन सर्वे का मकसद राजनीतिक पार्टियों को ये बताना होता है कि आपको चुनाव प्रचार के लिए बजट बढ़ाने की जरूरत है.