एनके सिंह का ब्लॉगः सोशल मीडिया के लिए स्वनियमन का सही समय
By एनके सिंह | Published: March 26, 2019 08:46 AM2019-03-26T08:46:03+5:302019-03-26T08:46:03+5:30
वर्तमान चुनाव एक कसौटी होने जा रहा है सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की समझ, सदाशयता और परिपक्वता का और साथ ही समाज की तर्कशक्ति के बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग का. जनता की भावनात्मक अतिरेक से बचने की कोशिश और तार्किक सोच इस प्रयास में बेहद सार्थक भूमिका निभा सकती है.
वर्तमान चुनाव में सोशल मीडिया की एक बड़ी भूमिका होगी. जो इसके इस्तेमाल से अभी भी अछूते हैं उन्हें भी अनौपचारिक पारस्परिक विमर्श के जरिए यह प्रभावित करेगा. चूंकि भारतीय समाज भावनात्मक अतिरेक में जीता है और चूंकि सोशल मीडिया के अनौपचारिक होने के कारण व्यावहारिक रूप से सामान्य कानूनों के नियंत्नण से भी बच सकता है लिहाजा अफवाह व कुतर्क से जनमत पर प्रभाव पड़ सकता है.
यही वजह है कि चुनाव आयोग ने इस बार सोशल मीडिया या अन्य प्लेटफार्मो पर नजर रखने की अलग से व्यवस्था की है और गूगल, ट्विटर व फेसबुक के प्रतिनिधियों से बात भी की है. खतरा प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा चलाए जा रहे वेब प्लेटफार्म से नहीं बल्कि अनाम, छिटपुट व रातोंरात पैदा हुई साइटों से है या उनसे जो उपरोक्त तीनों वेब सेवाओं के जरिए अफवाहों को सार्वजनिक करते हैं.
नई तकनीकी के विकास के साथ वेब मीडिया का प्रादुर्भाव अभिव्यक्ति की स्वतंत्नता का ‘पूर्ण समाजीकरण’ कहा जा सकता है. एक सामान्य सा व्यक्ति भी सोशल मीडिया पर अपनी बात अपलोड कर सकता है जो कई बार समाज में स्वस्थ सामूहिक आक्रोश का कारण बनता है. लेकिन इसके खतरे भी बढ़ गए हैं. दुबई में बैठा एक आईएसआई का एजेंट भारत में दंगे करा सकता है.
फर्जी पोर्टल या प्लेटफार्म विकसित कर वह फर्जी विजुअल्स साइट पर डाल कर भारत में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ सकता है क्योंकि सोशल मीडिया पर क्या अपलोड हो और किन संगठनों द्वारा या कौन सा व्यक्ति यह कर सकता है, इसकी पहचान सरकार द्वारा असंभव ही नहीं अव्यावहारिक भी है. चूंकि ज्ञान अब संस्थाओं में कुछ ही लोगों तक महदूद न हो कर सबके लिए ‘गूगल बाबा’ ने सुलभ कर दिया है इसलिए सोशल मीडिया पर रोक लगाने की बात सोचना भी बचकाना है.
लिहाजा खबरों को इस नए माध्यम के जरिए जन-जन तक विश्वसनीयता के साथ पहुंचाना वेब न्यूज से जुड़े लोगों के लिए आज अस्तित्व का प्रश्न है. लेकिन यह तभी संभव है जब निहायत सदाशयता, नैतिक और प्रोफेशनल प्रतिबद्धता और आत्मोत्थान के रूप में इस पवित्न पेशे में आएं और आत्म-नियमन के हर पायदान पर अपने को खरा उतारें. समाज आपका खैरमकदम करेगा, अच्छी सरकार आप को अपना मित्न मानेगी. हां, अगर वेब मीडिया इन मानदंडों से गिरता है और सरकार द्वारा बनाई गई कोई संस्था इसे नियंत्रित करने का अधिकार पा जाती है तो वह स्वस्थ प्रजातंत्न के लिए बेहद खतरनाक स्थिति होगी.
वर्तमान चुनाव एक कसौटी होने जा रहा है सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की समझ, सदाशयता और परिपक्वता का और साथ ही समाज की तर्कशक्ति के बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग का. जनता की भावनात्मक अतिरेक से बचने की कोशिश और तार्किक सोच इस प्रयास में बेहद सार्थक भूमिका निभा सकती है. दूसरी ओर तार्किकता और वैज्ञानिक सोच के अभाव में समाज को यह माध्यम भंवर में फंसे तिनके की तरह बहा सकता है.