वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अंग्रेजी की गुलामी न करें नेता
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 14, 2019 10:08 AM2019-11-14T10:08:58+5:302019-11-14T10:08:58+5:30
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्नी जगनमोहन रेड्डी ने सारे आंध्र की सरकारी पाठशालाओं में सभी विषयों को पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम अंग्रेजी कर देने की घोषणा कर दी है.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्नी जगनमोहन रेड्डी ने सांप की बांबी में हाथ डाल दिया है. उन्होंने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्नी चंद्रबाबू नायडू और आंध्र के अन्य नेताओं को अपने एक ऐसे तर्क में लपेट लिया है, जो मूलत: गलत है. रेड्डी ने सारे आंध्र की सरकारी पाठशालाओं में सभी विषयों को पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम अंग्रेजी कर देने की घोषणा कर दी है. यानी अब आंध्र के बच्चे किसी भी विषय को सीखना चाहें तो उसे वे तेलुगू या उर्दू माध्यम से नहीं सीख सकेंगे.
इस नई व्यवस्था को लागू करने के पीछे उनका तर्कयह है कि अंग्रेजी विश्वभाषा है और उसके माध्यम से ऊंचे रोजगार पाना देश और विदेशों में भी आसान होता है. सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले गरीबों, ग्रामीणों और पिछड़ों के बच्चों को इस लाभ से वंचित क्यों रखा जाए? जब जगन रेड्डी की इस घोषणा का विरोध वेंकैया नायडू और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं ने किया तो उन्होंने पूछा कि ये नेता यह क्यों नहीं बताते कि इनके बच्चों को उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से क्यों पढ़ाया है?
सवाल तो ठीक है. लेकिन रेड्डी जैसा युवा नेता भेड़चाल क्यों चलना चाहता है? दुनिया के किसी भी शक्तिशाली और संपन्न देश में बच्चों की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा को नहीं बनाया जाता है. बच्चों की शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ माध्यम मातृभाषा होती है. इसका अर्थ यह नहीं कि वे विदेशी भाषा न सीखें. जरूर सीखें और बहुत अच्छी तरह से सीखें. किसी एक विदेशी भाषा को अपनी मातृभाषा और पितृभाषा का दर्जा देना तो शुद्ध मानसिक गुलामी है.
अगर जगनमोहन रेड्डी जैसे नेता खुद को इस गुलामी से मुक्त कर सकें तो अपने बुजुर्ग नेताओं को वे उल्टी पट्टी पढ़ाना बंद कर देंगे. मैं तो चाहता हूं कि जगन जैसे नेता सरकारी नौकरियों, अदालतों और संसद में थोपी हुई अंग्रेजी की गुलामी से भारत को आजादी दिलाएं.