कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: दिल्ली में आग भड़काने वाले अभी भी आजाद क्यों!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 28, 2020 02:06 AM2020-02-28T02:06:38+5:302020-02-28T02:06:38+5:30

हिंसा को हवा देने में कुछ भी उठा न रखने वाले प्राय: सारे शब्दवीर इस सरकार की संचालक सत्तारूढ़ पार्टी के नेता हैं और अभी तक उनके खिलाफ किसी कार्रवाई की जरूरत नहीं महसूस की गई है.

Krishna Pratap Singh blog: Why are those who set fire to Delhi still free? | कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: दिल्ली में आग भड़काने वाले अभी भी आजाद क्यों!

कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: दिल्ली में आग भड़काने वाले अभी भी आजाद क्यों!

देश की राजधानी में विधानसभा चुनाव के दौरान वोटों के सौदागरों ने जिस तरह अपनी सांप्रदायिक घृणा के सारे रास्तों का मुंह जानबूझकर नागरिकों की ओर मोड़ रखा था, उसकी अंतिम परिणति यही होनी थी. ये पंक्तियां लिखने तक दंगे 27 जानें निगल और इससे दस गुना लोगों को अस्पतालों के हवाले कर चुके हैं. इसकी गिनती तो खैर अभी संभव ही नहीं कि इनके अलावा और कितने लोगों के तन-मन-धन को कभी न भरने वाले जख्म दिए हैं, लेकिन कफ्यरू-निषेधाज्ञा और देखते ही गोली मार देने के आदेश के बावजूद कई क्षेत्रों में डरे हुए मजबूर लोग अपने घर छोड़कर पलायन कर रहे हैं.  

हिंसा को हवा देने में कुछ भी उठा न रखने वाले प्राय: सारे शब्दवीर इस सरकार की संचालक सत्तारूढ़ पार्टी के नेता हैं और अभी तक उनके खिलाफ किसी कार्रवाई की जरूरत नहीं महसूस की गई है. अनुराग ठाकुर व प्रवेश वर्मा जैसे मंत्रियों व सांसदों की तो छोड़िए, जिन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान सांप्रदायिक घृणा के विष से बुङो हुए शब्दबाण चलाए थे, वह कपिल मिश्र भी अभी तक निर्भय खुले घूम रहे हैं, जिन्होंने संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में शाहीनबाग समेत कई क्षेत्रों में चल रहे धरने व प्रदर्शनों से सीधा टकराव मोल लेने के लिए सीएए के समर्थन में आंदोलन का ऐलान कर दिया! और तो और, भारतीय जनता पार्टी के 303 लोकसभा सदस्यों में एक गौतम गंभीर को छोड़कर किसी को भी नहीं लगता कि कपिल मिश्र ने उग्र शब्दबाण चलाकर कुछ गलत किया है. उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज होकर रह गई है. दिल्ली हाईकोर्ट ने भड़काऊ भाषण देने वालों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के निर्देश देकर सख्त रवैया अपनाया है.

किसे नहीं मालूम कि एक नाराज भीड़ के खिलाफ दूसरी नाराज भीड़ खड़ी हो जाए तो कांटे से कांटा निकालने में विश्वास रखने वाली सत्ताओं का काम कितना आसान हो जाता है. सुरक्षा के बहाने वे इस या उस जिस भी भीड़ से जैसे भी चाहें निपट सकती हैं. अब पुलिस की भूमिका पर सवालों के बीच उसके सिर पर 27 लाशों की शर्म आ पड़ी है तो भी उसको महसूस करना उसे गवारा नहीं हो रहा.  

ऐसे छिद्रान्वेषणों से सत्ताधारी अपने राजनीतिक विपक्ष को भले ही चुप करा दे, जो इस हिंसा को उसकी ‘सोची-समझी साजिश’ बताकर केंद्र व दिल्ली दोनों ही सरकारों को विफल करार दे रहा है और गृहमंत्री अमित शाह से इस्तीफा मांग रहा है, देशवासियों की सच्ची सदाशयता नहीं पा सकती. देश की सदाशयता पाने के लिए उनमें फौरन यह विश्वास जगाना जरूरी है कि सरकार बिना भेदभाव के सारे देशवासियों की शुभचिंतक है और उसके नागरिकों में कोई भी उसका सगा या कोई सौतेला नहीं है.

Web Title: Krishna Pratap Singh blog: Why are those who set fire to Delhi still free?

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