कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: गांधीवादी मूल्यों के अप्रतिम संवाहक थे शास्त्रीजी
By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: January 11, 2021 12:11 PM2021-01-11T12:11:10+5:302021-01-11T12:29:59+5:30
लालबहादुर शास्त्री का परिचय केवल देश के दूसरे प्रधानमंत्री के तौर पर अधूरा नजर आता है. पाकिस्तान के हमले के बाद जो रूप दुनिया ने उनका देखा, उसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी.
देश के दूसरे प्रधानमंत्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री को, जिनकी आज पुण्यतिथि है, आमतौर पर उनकी सादगी, नैतिकता और ईमानदारी के लिए याद किया जाता है, लेकिन सच पूछिए तो हमारी राजनीति को उनका असल योगदान यह है कि वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सार्वजनिक जीवन मूल्यों को उसकी दूसरी पीढ़ी तक ले गए.
दरअसल, स्वतंत्रता आंदोलन की आंच से तपकर निकले हमारे अनेक नेताओं में इकलौते शास्त्नीजी ही हैं जो हमें सिखा सकते हैं कि कैसे काजल की कोठरी में रहकर नितांत विपरीत स्थितियों में भी मूल्यों व नैतिकताओं से विचलित हुए बिना अपनी खुदी को इतना बुलंद किया जा सकता है कि देश की जरूरत के वक्त उसकी नेतृत्व कामना को भरपूर तृप्त किया जा सके.
दारुण मौत ने उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा के लिए सिर्फ 18 महीने ही दिए, लेकिन इस छोटी-सी अवधि में ही अपने कुशल नेतृत्व व दूरदर्शी फैसलों से उन्होंने जैसी अमिट छाप छोड़ी, वह अनेक देशवासियों के दिल व दिमाग पर अभी भी इस कदर ताजा है कि कई बार प्रधानमंत्री होना उनका अधूरा परिचय नजर आने लगता है.
27 मई, 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को शास्त्री जी उनके स्थान पर प्रधानमंत्री बने तो कहा कि उनकी शीर्ष प्राथमिकता महंगाई रोकना और सरकारी क्रियाकलापों को व्यावहारिक व जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना है.
बाद में उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ जैसा लोकप्रिय नारा दिया लेकिन वे उसकी उम्र लंबी कर पाते इससे पहले ही पाकिस्तान ने हमला कर दिया. फिर तो ठिगने कद वाले शास्त्री ने अप्रत्याशित रूप से अपने व्यक्तित्व को इतना विराट कर लिया, जिसकी पाकिस्तान ने कल्पना तक नहीं की थी.