वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः कर्नाटक का असर महाराष्ट्र पर!
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 11, 2019 07:11 AM2019-12-11T07:11:50+5:302019-12-11T07:11:50+5:30
कर्नाटक की जनता के मन पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? यही कि यह गठबंधन की सरकार नाकारा है. कांग्रेस के विधायकों ने भी थोक में दलबदल कर लिया.
कर्नाटक विधानसभा के उपचुनाव ने भाजपा को दक्षिण भारत में दुबारा मजबूत बना ही दिया है, उसने महाराष्ट्र की गैर-कांग्रेसी सरकार के लिए खतरे की घंटी भी बजा दी है. कांग्रेस और जनता दल (एस) की गठबंधन सरकार जैसी चली, उसका पहला नतीजा तो यह हुआ कि वह लड़खड़ाती गिर पड़ी. अपने छोटे-से कार्यकाल में उस सरकार के आपसी दंगल की खबरें कन्नड़ लोगों के दिमाग पर छाई रहीं. कुमार स्वामी मुख्यमंत्नी तो बन गए लेकिन कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया ने उनका जीना मुश्किल कर दिया था. सार्वजनिक तौर पर आंसू बहानेवाले शायद देश के वे पहले मुख्यमंत्नी थे.
इसमें शक नहीं कि उन्होंने काफी लगन और उत्साह से काम किया लेकिन उन पर कांग्रेसी विधायकों के हमले भाजपाइयों से कहीं ज्यादा हुए. कर्नाटक की जनता के मन पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? यही कि यह गठबंधन की सरकार नाकारा है. कांग्रेस के विधायकों ने भी थोक में दलबदल कर लिया. दलबदलुओं को जनता अक्सर हरा देती है लेकिन इस उपचुनाव में भाजपा के 15 विधायकों में से 13 जीत गए. ये जीते हुए विधायक कौन हैं?
भाजपा के 13 विधायक ऐसे थे, जो पहले कांग्रेस या जनता दल (एस) में थे. इन विधायकों को लोगों ने क्यों जिता दिया? क्योंकि वे अपने प्रांत में स्थिर सरकार चाहते हैं. यदि ये सारे विधायक हार जाते या भाजपा के 6 विधायक भी नहीं जीतते तो येदियुरप्पा की सरकार अल्पमत में चली जाती और फिर या तो उसे जनता दल (एस) से गठबंधन करना पड़ता या कांग्रेस और जनता दल अपने मुर्दा गठबंधन को दुबारा जिंदा करते. लेकिन कर्नाटक की जनता ने गहरे विवेक का परिचय दिया है. अब भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत है.
आशा है कि अब येदियुरप्पा पहली पारी से बेहतर सरकार चलाएंगे. अपने आप को विवादों और आरोपों से ऊपर रखेंगे. कर्नाटक की सफलता का असर महाराष्ट्र पर पड़ सकता है. कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों जगह भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भी है. यदि महाराष्ट्र में भी शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस का गठबंधन बिखरेगा तो भाजपा को वहां भी मौका मिल सकता है.