ब्लॉग: गौरवशाली रही है भारत के गणतंत्र की यात्रा लेकिन सामने है नैतिक मूल्यों की सही मायने में स्थापना की बड़ी चुनौती

By गिरीश्वर मिश्र | Published: January 26, 2023 02:17 PM2023-01-26T14:17:43+5:302023-01-26T14:19:23+5:30

भारत ने अनेक क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान दर्ज की है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद और जी-20 समूह की अध्यक्षता के अच्छे परिणाम होने चाहिए.

journey of Republic of India has been glorious since independence | ब्लॉग: गौरवशाली रही है भारत के गणतंत्र की यात्रा लेकिन सामने है नैतिक मूल्यों की सही मायने में स्थापना की बड़ी चुनौती

गौरवशाली रही है भारत के गणतंत्र की यात्रा

भारत और उसके समाज के बारे में विचार करते समय मन में हजारों वर्षों से चलती आ रही एक अद्भुत सांस्कृतिक यात्रा का बिम्ब उभरता है. इस यात्रा में कई संस्कृतियों के लोग शामिल होते गए थे. उनके विभिन्न किस्म के प्रभावों के बीच ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य आदि का सतत सृजन भी होता रहा. यह सब कई तरह के उतार-चढ़ावों के बीच हुआ. आज जिस संप्रभु भारतीय गणराज्य में हम रहते हैं इसका वर्तमान रूप सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद हुए स्वाधीनता संग्राम की कठिन राहों से गुजर कर हासिल हुआ था. 

इस क्रम में जब 26 जनवरी 1950 की ऐतिहासिक और निर्णायक घड़ी में भारत ने एक लोकतांत्रिक संसदीय गणतंत्र के रूप में अपना भाग्य नियत किया था तो उसी के साथ अपने लिए एक खास तरह के शासन तंत्र को भी अंगीकार किया था. आधुनिक गणतंत्र के रूप में भारत राष्ट्र के उद्भव की घटना जनता में राष्ट्रीय गौरव का बोध जगाने वाली थी. इसने देश की समृद्ध विरासत को संभालने-संवारने के लिए भी उद्यत किया. पर इनसे भी अधिक था आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का तीव्र ज्वार जिनको लेकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी गई थी.

शक्ति, प्रेम, शौर्य और मातृभूमि के लिए समर्पण की प्रेरणा स्वरूप तिरंगा झंडा भारत की राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बन गया. देश ने केसरिया, सफेद और हरे रंगों के साथ साहस और त्याग, शांति और सत्य तथा आस्था और शिष्टता के भावों को व्यक्त किया. झंडे के मध्य में अशोक चक्र है जो इस बात की याद दिलाता है कि इसके तहत कार्य करने वाले सत्य और धर्म का पालन करेंगे. 
चक्र गति को भी व्यंजित करता है और गति में ही जीवन होता है. 

गति का आशय है कि स्वाधीन राष्ट्र के नागरिकों में दायित्वों की सचेत भागीदारी की प्रवृत्ति विकसित हो. यह गणतंत्र दिवस अनेक खट्टी-मीठी और तीखी-कड़वी स्मृतियों के साथ देशवासियों को राष्ट्र को आगे ले जाने का दायित्व भी स्मरण करा रहा है.

आज भारत विकास की राह पर अग्रसर है. यद्यपि अंतरिक्ष विज्ञान, कृषि, स्वास्थ्य, आधारभूत संरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) और शिक्षा के क्षेत्रों में देश ने उल्लेखनीय प्रगति की है, गरीबी उन्मूलन की दिशा में भी प्रगति हुई है, डिजिटल कारोबार बढ़ा है, शासन-प्रशासन में पारदर्शिता कुछ बढ़ी है. आर्थिक व्यवस्था के रूप में भारत एक नई शक्ति के रूप में उभर रहा है. परंतु इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि उदारीकरण और निजीकरण की बढ़ती उपस्थिति के बीच अमीरी और गरीबी के बीच की खाई बढ़ रही है. 

ऐसे ही नीतियों के कार्यान्वयन में कोताही, संस्थाओं के संचालन में राजनीतिक दखलंदाजी और विभिन्न स्तरों पर बढ़ता भ्रष्टाचार विकास को बाधित कर रहा है. राजनीति में बाहुबल और धनबल बड़ा खेल खेल रहे हैं. इस बीच देश का आख्यान एक राजनीतिक सवाल भी बन गया और वर्चस्व को लेकर प्रतिस्पर्धी राजनीतिक दलों में होड़ भी चलती रहती है. 

ऐसे में नैतिक मूल्यों की स्थापना एक बड़ी चुनौती बन कर खड़ी हो रही है.
भारत ने अनेक क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान दर्ज की है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद और जी-20 समूह की अध्यक्षता के अच्छे परिणाम होने चाहिए. गौरतलब है कि पड़ोसी देशों के हालात बहुत संतोषजनक नहीं हैं. 
पाकिस्तान में सत्ता के लिए उथल-पुथल चल रही है और वह आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देने से बाज नहीं आ रहा है. नेपाल, म्यांमार, अफगानिस्तान, श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता है और आर्थिक संकट गहरा रहा है. चीन की नीति आर्थिक और राजनीतिक पैंतरेबाजी के साथ रिश्तों को असहज बना रही है और उसमें तत्काल किसी बदलाव की आशा नहीं दिख रही है. 

इस माहौल में भारत को सतर्क राजनय और सामरिक सुदृढ़ता पर बल देना होगा. देश अभी भी कृषिप्रधान है और गांवों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए. खाद्यान्न उत्पादन में विविधता की दृष्टि से मोटे अनाज, तिलहन तथा दलहन को बढ़ावा देने के उपक्रम तेज करने होंगे. खेती-किसानी को सुविधाजनक बनाने के लिए व्यवस्था और नीतियों पर संवेदनशीलता के साथ विचार किया जाना जरूरी है.

अंग्रेजी उपनिवेश की छाया से मुक्ति के बाद भारत के आधुनिक लोकतंत्र की सात दशकों की यात्रा के दौरान उसकी चेतना तीव्र हो रही है. उसकी आहट शिक्षा की संरचना, विषयवस्तु और प्रक्रिया में देखी जा सकती है. आशा है परिवर्तन की अस्त-व्यस्तताओं के साथ ही नई व्यवस्थाओं की जो शुरुआत हुई है वह स्पष्ट होगी. अभी संस्थाओं की प्रचलित व्यवस्था को पुनर्व्यवस्थित करने के लिए राज्यों और केंद्र में कई स्तरों पर युद्धस्तरीय तैयारी की जरूरत है. 

पराधीन से स्वाधीन होना जहां एक औपनिवेशिक विदेशी शासन की जकड़न से मुक्त कराने वाला अनुभव था वहीं दूसरी ओर उसने देश के नागरिकों को अनिवार्य जिम्मेदारी से भी बांध दिया. स्वतंत्रता का सीधा अभिप्राय आत्मनिर्भरता होता है. अमृत काल की अवधि एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए भारतीय समाज का आवाहन है. इस लक्ष्य के प्रति समर्पण के साथ ही देश आगे बढ़ सकेगा.

Web Title: journey of Republic of India has been glorious since independence

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