ब्लॉग: कश्मीर में फिर से पैर फैलाने की कोशिश करता आतंकवाद
By शशिधर खान | Published: October 26, 2021 01:26 PM2021-10-26T13:26:24+5:302021-10-26T13:28:51+5:30
पहले कश्मीरी पंडितों का मुस्लिम बहुल कश्मीर से हिंदू आबादी वाले जम्मू की ओर पलायन शुरू हुआ. फिर प्रवासी मजदूर भागने लगे, जब बिहार और यूपी के दो मजदूरों की हत्या हो गई. मुख्य रूप से अल्पसंख्यकों को आतंकवादी निशाना बना रहे हैं, जिन्हें कश्मीर के मूल बाशिंदे आतंकवादी नहीं मानते.
जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ दिनों से आतंकवाद एक बार फिर सिर उठाने की कोशिश कर रहा है. धारा-370 हटने के बाद पहली बार हालात गंभीर होते दिखाई दे रहे हैं. आतंकवादी अब हिंदुओं को अपना निशाना बना रहे हैं और सरकार आतंकवादियों की तलाश में घाटी में सर्च अभियान चला रही है.
यह ऑपरेशन वैसे समय में चल रहा है, जब जम्मू व कश्मीर का जनजीवन अस्त-व्यस्त है. कश्मीर के गैर-स्थानीय के साथ-साथ स्थानीय लोगों में भी असुरक्षा की भावना व्याप्त है. सामाजिक से लेकर कानूनी असुरक्षा के माहौल से लोगों में दहशत है.
पहले कश्मीरी पंडितों का मुस्लिम बहुल कश्मीर से हिंदू आबादी वाले जम्मू की ओर पलायन शुरू हुआ. फिर प्रवासी मजदूर भागने लगे, जब बिहार और यूपी के दो मजदूरों की हत्या हो गई. मुख्य रूप से अल्पसंख्यकों को आतंकवादी निशाना बना रहे हैं, जिन्हें कश्मीर के मूल बाशिंदे आतंकवादी नहीं मानते.
हत्याओं के इस सिलसिले को 1990 जैसे आतंकवाद का फिर से पैर फैलाना माना जा रहा है. 7 अक्तूबर को श्रीनगर के एक स्कूल में घुसकर प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और शिक्षक दीपक चंद की आतंकवादियों ने हत्या कर दी.
1990 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद चुन-चुनकर कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाने से उपजा था. उसके बाद कश्मीर छोड़कर भागे पंडितों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के धारा-370 तथा धारा 35-ए हटाने के बाद सुरक्षा के आश्वासन पर धीरे-धीरे लौटना शुरू किया था.
लेकिन 7 और 8 अक्तूबर को कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने कहा कि दो दिनों में 70 परिवार कश्मीर छोड़कर जम्मू चले गए. उसके बाद से यह सिलसिला जारी है.
कश्मीरी सिख और पंडित समुदाय के कई सरकारी कर्मचारी तथा शिक्षक कश्मीर छोड़कर जम्मू भागे. श्रीनगर में शिक्षा विभाग में जूनियर सहायक सिद्धार्थ रैना के शब्दों में - ‘हम कश्मीर से बाइक पर भागे हैं. डर बना रहा कि जो कोई हमारी तरफ देख रहा है, वो हमें गोली मार देगा.’सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?
कइयों ने तबादला मांगा, काम पर नहीं पहुंचे
जवाब में जम्मू व कश्मीर प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाया. कश्मीर के डिवीजनल कमिश्नर ने कश्मीर के सभी 10 जिलों के उपायुक्तों को निर्देश दिया कि जो कोई भी अनुपस्थित पाए जाएंगे, उनके खिलाफ सेवा नियमों के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी.
हालात काबू से बाहर जाते देख प्रशासन ने भरोसा दिलाया, मगर अल्पसंख्यकों का भय दूर नहीं हुआ. जिन मुस्लिम सरकारी कर्मचारियों पर प्रशासन को संदेह है उनको नौकरी से बर्खास्त करने वाली संविधान की धारा 311(2)(सी) के तहत कार्रवाई की जा रही है.
इस कानून के अंतर्गत प्रशासन को किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ आरोपों की जांच किए बगैर सीधे बर्खास्त करने का अधिकार है. जो अल्पसंख्यक सिख और हिंदू कर्मचारी हैं, उन्हें प्रशासन सुरक्षा नहीं दे पा रहा है. मुसलमानों पर सरकार भरोसा नहीं कर रही है और हिंदुओं को सरकार पर भरोसा नहीं है.
लद्दाखवासियों के बीच दशहरा मनाने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पहुंचे. 5 से 17 अक्तूबर के बीच हत्याओं का सिलसिला जारी था. राष्ट्रपति जिस दिन लद्दाख से विदा हुए, उसी दिन 17 अक्टूबर को दो बिहारी राजमिस्त्रियों की ईंट मार-मारकर हत्या कर दी गई.
केंद्र सरकार कश्मीर से बाहर से लोगों को यहां आने और अन्य राज्यों की तरह बसने का न्यौता धारा-370 के साथ ही धारा-35-ए भी खत्म करने के बाद से दे रही है. हाल यह है कि जो उसके पहले से रह रहे हैं, उनकी जान खतरे में है.
ताजा आतंकी हमले के आलोक में दो बातें याद करने लायक है. भाजपा ने कश्मीर समस्या के लिए धारा-370 और कांग्रेस की नीतियों को हमेशा जिम्मेदार ठहराया.
इतिहास बदलने के बाद का यह नया आतंकवाद चैप्टर है. कश्मीर में फिदायीन (आत्मघाती) हमला जनवरी, 2018 में हुआ. जब जैश-ए-मुहम्मद से संबद्ध 16 साल के एक किशोर ने विस्फोट करके पांच सीआरपी जवानों की जान ली. उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धारा-370 हटाने वाले कानून का मसौदा तैयार कर रहे थे.
पुंछ में जारी मुठभेड़ ने 2003 की हिलकाका मुठभेड़ की याद दिला दी, जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. अप्रैल-मई, 2003 में दो हफ्ते तक चले सेना के सर्पविनाश ऑपरेशन में 62 आतंकवादी मारे गए. सेना के सिर्फ दो जवान मारे गए. वो उस समय तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन था.
अभी कश्मीर के सिख और पंडित जान बचाने के लिए जम्मू के जिस जगती टाउनशिप में पनाह लेने जा रहे हैं, वो 2011 में कांग्रेस गठजोड़ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासनकाल का बना हुआ है. दो रूम वाले इन 4200 फ्लैटों में करीब 6500-7000 परिवार रह रहे हैं.