भारत: कुछ अरसा पहले कश्मीर के दोनों हिस्सों को बांटने वाले दरिया जेहलम अर्थात नीलम किनारे खड़े उन सैंकड़ों लोगों के लिए वह परेशानी और दुख से भरी घड़ी थी जब उन्हें सीमा पार से मिलने वाले संदेशों ने उनकी आंखों को नम कर दिया था। यह संदेशा उस पार से एक पत्थर के साथ कागज के टुकड़े पर लिख कर भिजवाया गया था और सच में यह पत्थर कलेजे पर पत्थर के समान ही साबित हुआ था।
वर्ष 1992 में कश्मीर के केरन सेक्टर से पलायन कर उस ओर चले जाने वाले इरशाद अहमद खान ने यह संदेशा भेजा था। वह पेशे से इंजीनियर था जब वह उस पार चला गया था। अब क्या करता है कोई नहीं जानता लेकिन उस पार कमसार और पतिका के बीच स्थापित कैम्पों में रहने वाला इरशाद अब यह जान गया था कि जिसका नाम आजाद कश्मीर है वह वाकई ‘आजाद' नहीं है।
सूत्रों के अनुसार, उसने अपने संदेशे में लिखा था वे सैंकड़ों लोग जो कश्मीर से पलायन कर इस ओर आए थे कमसार और अन्य कैम्पों में रह रहे थे। भूंकप ने उन पर भयानक कहर बरपाया था। 800 से अधिक मर गए हैं और 3200 के करीब जख्मी हैं। पाकिस्तानी सरकार को न ही मरने वालों की चिंता है और न ही घायलों की। बस आपसे गुजारिश है अब हमें अपने वतन वापस बुला लो।'
अधिकारी बताते हैं कि इरशाद का पत्थर के साथ आया खत सभी के दिलों पर पत्थर बन कर बैठ गया था। इरशाद के भाई जाया अहमद खान ने इस खत को पढ़ा तो उसकी आंखें आंसुओं से भर आई थीं। असल में इरशाद उन 212 परिवारों में से एक था जो उस ओर इसलिए चला गया था क्योंकि उसे आजाद कश्मीर ‘आजाद' लगा था।
लेकिन अब स्पष्ट हो गया था कि आजाद कश्मीर सिर्फ नाम का ही आजाद था और पाकिस्तानी अधिकारी इस कश्मीर से उस पार जाने वालों के साथ अच्छा सुलूक नहीं करते थे। उस पार से सिर्फ इरशाद का ही पत्र एकमात्र नहीं था जो दुखभरी दास्तानें सुनाता था। कई लोग अपने सगे-संबंधियों को अपनी खबर अतीत में इसी प्रकार पत्थरों से बांधे हुए पत्रों से देते रहे थे और हर खत सिर्फ गम के आंसू ही रूलाने को मजबूर करता था।
बता दें कि किसी ने अपना भाई खो दिया था। किसी ने पूरा परिवार। कईयों के लिए वह घड़ी और दर्दनाक उस समय हो गई थी जब वह अपने सगे-संबंधी को घायलावस्था में उस पार देखता। इसी प्रकार गुल अफसाना दो बार बेहोश हो गई थी जब उसने अपनी मां को गुलदामा बेगम को उस पार देखा था। गुलदामा की एक टांग को वर्ष 2005 के भूंकप लील गया था। मिलने वाली खबरें कहती थीं कि कुछ अरसा पहले नीलम दरिया के दोनों किनारे एकत्र हुए सैंकड़ों लोगों के लिए सच में यह दुख की घड़ी ही थी क्योंकि उनके बीच दरिया नीलम, जिसे इस ओर के लोग दरिया जेहलम कह कर पुकारते थे, रूकावट बन कर खड़ा था। इस सेक्टर में यही दरिया एलओसी का काम भी करता था।