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Wayanad Landslides: वायनाड त्रासदी में प्रकृति को दोष देना ठीक नहीं

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 1, 2024 11:55 IST

मृतकों का सरकारी आंकड़ा भले कुछ भी हो, मगर हादसे की विकरालता को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मरने वालों की तादाद कई सौ हो सकती है.

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ठळक मुद्देकेरल के वायनाड जिले में भूस्खलन से हुई विनाशलीला ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है.दो दिन से मलबे से लाशें निकालने का काम चल ही रहा है.इस प्राकृतिक आपदा के लिए सिर्फ प्रकृति के प्रकोप को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. 

केरल के वायनाड जिले में भूस्खलन से हुई विनाशलीला ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है. दो दिन से मलबे से लाशें निकालने का काम चल ही रहा है. मृतकों का सरकारी आंकड़ा भले कुछ भी हो, मगर हादसे की विकरालता को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मरने वालों की तादाद कई सौ हो सकती है. इस प्राकृतिक आपदा के लिए सिर्फ प्रकृति के प्रकोप को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. 

उस इलाके में प्रकृति से बुरी तरह छेड़छाड़ की गई और सहनशक्ति खत्म हो जाने के बाद प्रकृति ने भयावह तरीके से अपने गुस्से का इजहार किया. भू-स्खलन की यह घटना अपने आप में पहली नहीं है. पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील समझे जानेवाले इलाकों में प्रकृति बार-बार अनिष्ट के प्रति आगाह करती रहती है लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. 

जलवायु परिवर्तन ऐसे हादसों के लिए बड़ा कारण हो सकता है लेकिन जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कौन है? उत्तर है हम सभी. प्रकृति एकाएक उग्र नहीं होती. वह पहले हल्की चेतावनी देती है और उसके बाद भी जब हम नहीं संभलते तब विकराल रूप दिखाती है जिससे भारी विनाश होता है. केरल में वायनाड जिले के मेप्पाड़ी इलाके में सोमवार-मंगलवार की दरम्यानी रात भू-स्खलन  से विनाशलीला सबसे ज्यादा हुई है.  

वायनाड जिला प्राकृतिक रूप से बेहद खूबसूरत है और यहां हर वर्ष लाखों पर्यटक आते हैं. इस क्षेत्र में खनिज भी प्रचुर मात्रा में है. इस इलाके की पर्यावरणीय चिंताओं  को ताक पर रखकर अंधाधुंध निर्माण तथा खनन कार्य किए गए. इससे पहाड़ियों में दरारें पड़ने लगीं और मिट्टी  की पकड़ भी कमजोर हो गई. पर्यावरण  विशेषज्ञों  की चिंताओं को खारिज कर प्रशासन निर्माण तथा खनन कार्य को मंजूरी देता रहा. 

एक तरह से वायनाड जिले में तबाही को न्यौता दिया गया अैर अब सारा दोष प्रकृति पर मढ़ा जा रहा है. महाराष्ट्र भी भू-स्खलन की विनाशलीला देख चुका है. 2005 में रायगढ़ के महाड तालुका के जुई, दासगांव, कोडवाइट और रोहन गांव भू-स्खलन से तबाह हो गए. 2021 में महाड का तालिये गांव भू-स्खलन से तबाह हो गया. 

उसी साल तालिये गांव के हादसे के कुछ ही दिन बाद सातारा, पालघर और रायगढ़ में भू-स्खलन हुआ अैर लगभग 50 लोगों की मौत हुई. पिछले साल 20 जुलाई की आधी रात को रायगढ़ जिले ने भू-स्खलन से फिर तबाही का मंजर देखा. खालापुर तहसील का इरशालवाड़ी गांव भू-स्खलन से नष्ट हो गया. 27 लोगों की मौत  हुई और 57 लोगों का आज तक पता नहीं चला. उत्तराखंड में 2013 में हुई केदारनाथ त्रासदी को आज तक देश नहीं भूला है. 

उसकी याद करके ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उस त्रासदी में हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी. पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, मेघालय, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे कई राज्यों में भू-स्खलन का तांडव हो चुका है. केंद्र तथा राज्य सरकारों को भू-स्खलन के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्रों के बारे में पूरी जानकारी है लेकिन लोगों को उनकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया गया है. 

केरल के वायनाड जिले की त्रासदी को टाला जा सकता था. पश्चिमी घाट के पर्यावरणीय संतुलन का अध्ययन करने, प्राकृतिक हादसों की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने तथा संभावित हादसों को टालने के बारे में सुझाव देने के लिए 2010 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने माधव गाडगिल पैनल का गठन किया था. 

इस पैनल ने वायनाड जिले सहित पश्चिमी घाट के पर्यावण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों की पहचान कर वहां बड़े पैमाने पर निर्माण न करने, जंगलों तथा पहाड़ों की कटाई रोकने, वनभूमि  को गैर वनभूमि में तब्दील न करने, बांध न बनाने, बड़ी रेलवे तथा सड़क परियोजनाएं शुरू करने पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी. 

गाडगिल पैनल ने अपनी रिपोर्ट में बड़े पैमाने पर निर्माण तथा खनन के कारण वायनाड के मेप्पाड़ी क्षेत्र में भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की आशंका भी जताई थी. गाडगिल पैनल की रिपोर्ट को उस वक्त की केंद्र सरकार ने खारिज कर एक नई कमेटी बनाई जिसने संवेदनशील क्षेत्रों  का आकार 37 प्रतिशत कम कर दिया. 

वायनाड त्रासदी पर अन्य त्रासदियों की तरह शोक जताया जा रहा है, मदद पहुंचाई जा रही है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी आपदाओं की पुनरावृत्ति रोकने के बारे में कोई ठोस बात करने के लिए तैयार नहीं है. वायनाड त्रासदी का शोर भी कुछ दिन बाद शांत हो जाएगा और प्रकृति को नाराज करने का सिलसिला चलता रहेगा.

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