ब्लॉगः देश में जनसंख्या नियंत्रण का मसला, सीएम योगी ने नीति पेश की, आर्थिक दृष्टिकोण की जरूरत
By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: July 21, 2021 01:51 PM2021-07-21T13:51:27+5:302021-07-21T13:52:36+5:30
जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य प्राप्त करना, मातृ मृत्यु और बीमारियों के फैलाव पर नियंत्रण, नवजात और पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु रोकना और उनकी पोषण स्थिति में सुधार करना है.
इस समय देश में जनसंख्या नियंत्रण का मसला उभरकर दिखाई दे रहा है. विगत 11 जुलाई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या नीति 2021-2030 जारी की है.
इस नीति के तहत दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन से लेकर स्थानीय निकायों में चुनाव लड़ने पर रोक लगाने और सरकारी योजनाओं का लाभ न दिए जाने की बात कही गई है. इस नई जनसंख्या नीति का मकसद सभी लोगों के लिए जीवन के प्रत्येक चरण में गुणवत्ता में सुधार लाना है.
इस नीति का उद्देश्य जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य प्राप्त करना, मातृ मृत्यु और बीमारियों के फैलाव पर नियंत्रण, नवजात और पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु रोकना और उनकी पोषण स्थिति में सुधार करना है. निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश की तरह देश के अन्य राज्यों में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए आगे बढ़ने की भी जरूरत है.
ज्ञातव्य कि इन दिनों देश की जनसंख्या से संबंधित विभिन्न रिपोर्टो में कहा जा रहा है कि भारत में छलांगें लगाकर बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण आर्थिक-सामाजिक चुनौतियां लगातार विकराल रूप लेती जा रही हैं. ऐसी स्थिति में भारत में जहां एक ओर जनसंख्या विस्फोट को रोकना जरूरी है, वहीं दूसरी ओर जनसंख्या में कमी से भी बचना होगा ताकि भविष्य में विकास की प्रक्रिया और संसाधनों का विदोहन मुश्किल न हो जाए.गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग करने वाले याचिकाकर्ता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने कहा है कि जनसंख्या के मामले में हमारा देश चीन के बराबर पहुंचने वाला है.
देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन, कृषि भूमि, पेयजल और अन्य मूलभूत जरूरतों की उपलब्धता की तुलना में जनसंख्या लगातार चिंताजनक स्थिति निर्मित करते हुए दिखाई दे रही है. चूंकि जनसंख्या नियंत्रण समवर्ती सूची में है इसीलिए कोर्ट केंद्र सरकार को निर्देश दे कि वह नागरिकों के गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए कड़े और प्रभावी नियम-कानून व दिशानिर्देश तैयार करे.
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि उत्तर प्रदेश की तरह देश के अन्य राज्यों में भी तेजी से बढ़ती जनसंख्या का संसाधनों पर जबरदस्त दबाव बढ़ता जा रहा है. चूंकि संसाधनों को विकसित करने की रफ्तार जनसंख्या वृद्धि की दर से कम है इसलिए देश में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या देश की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की जननी बनकर देश के विकास के लिए खतरे की घंटी दिखाई दे रही है.
निस्संदेह बढ़ती जनसंख्या के कारण देश गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल और सार्वजनिक सेवाओं की कारगर प्राप्ति जैसे मापदंडों पर बहुत पीछे दिखाई दे रहा है तथा देश के अधिकांश लोग गरिमामय जीवन से दूर हो गए हैं. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के मुद्दों पर प्रकाशित मानव विकास सूचकांक 2020 में 189 देशों की सूची में भारत 131वें पायदान पर है. वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों की सूची में भारत 94वें स्थान पर है. विश्व बैंक के द्वारा तैयार किए गए 174 देशों के वार्षिक मानव पूंजी सूचकांक 2020 में भारत का 116वां स्थान है.
यह सूचकांक मानव पूंजी के प्रमुख घटकों स्वास्थ्य, जीवन प्रत्याशा, स्कूल में नामांकन और कुपोषण पर आधारित है. यद्यपि इस समय करीब 141 करोड़ आबादी वाला चीन दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश का दर्जा रखता है लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा जून 2019 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 2027 तक दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के तौर पर चीन से आगे निकल जाने का अनुमान है.
ज्ञातव्य है कि भारत दुनिया का पहला देश है, जिसने अपनी जनसंख्या नीति बनाई थी, लेकिन देश की जनसंख्या वृद्धि दर आशा के अनुरूप नियंत्रित नहीं हो पाई है. संयुक्त राष्ट्र वल्डरेमीटर के मुताबिक वर्ष 2020 में भारत की जनसंख्या करीब 138 करोड़ पर पहुंच गई है. दुनिया की कुल जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी करीब 17.5 फीसदी हो गई है जबकि पृथ्वी के धरातल का मात्र 2.4 फीसदी हिस्सा ही भारत के पास है. अतएव एक ऐसे समय में जब चीन जनसंख्या और विकास के मॉडल में अपनी भूल संशोधित कर रहा है,
तब दुनिया के जनसंख्या और अर्थविशेषज्ञ चीन के जनसंख्या परिवेश से भारत को कुछ सीख लेने की सलाह देते हुए दिखाई दे रहे हैं. उनका मत है कि भारत में जहां एक ओर जनसंख्या विस्फोट को रोकना जरूरी है, वहीं जनसंख्या में ऐसी कमी से भी बचना होगा कि भविष्य में विकास की प्रक्रिया और संसाधनों का विदोहन मुश्किल हो जाए.
हम उम्मीद करें कि उत्तर प्रदेश के द्वारा घोषित की गई नई जनसंख्या नीति और असम के द्वारा तैयार की जा रही दो बच्चों की जनसंख्या नीति की तरह देश के अन्य प्रदेश भी आर्थिक और बुनियादी संसाधनों की चुनौतियों के बीच उपयुक्त जनसंख्या वृद्धि दर के लिए एक दंपति दो बच्चों की नीति तैयार करने के लिए दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ेंगे.