वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः श्रीलंका से दोस्ती बढ़ाए भारत
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 20, 2019 07:38 PM2019-11-20T19:38:33+5:302019-11-20T19:38:33+5:30
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गोटबाया राजपक्षे के बीच जो आदान-प्रदान हुआ है, उससे आशा बंधती है कि दोनों राष्ट्रों के रिश्तों में कोई खटास नहीं आएगी.
श्रीलंका में गोटबाया राजपक्षे के राष्ट्रपति बनने पर भारत को चिंता होना स्वाभाविक है, क्योंकि उनके भाई महिंद्रा राजपक्षे अब से पांच साल पहले दस साल तक जब श्रीलंका के राष्ट्रपति थे, तब चीन की तरफ उनका झुकाव जरूरत से ज्यादा रहा था. उन्होंने चीन से इतना ज्यादा कर्ज ले लिया था कि उन्हें हबनतोता का बंदरगाह 99 वर्षों के लिए चीन के हवाले करना पड़ गया था. चीन के युद्धपोत अक्सर श्रीलंका के बंदरगाहों पर टिके हुए दिखाई पड़ने लगे थे. चीन-श्रीलंका व्यापार में भी असाधारण तेजी आ गई थी.
चीनी पर्यटकों की संख्या में भी उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हो गई थी. ऐसा लगने लगा था कि श्रीलंका मानो भारत का नहीं, चीन का पड़ोसी देश है. अब वैसा माहौल बने रहने का कोई कारण नहीं है. अब गोटबाया ने सजित प्रेमदास को हराया तो श्रीलंका के अल्पसंख्यकों में काफी डर फैल गया है और यह माना जा रहा है कि गोटबाया भारत के लिए भी कठिनाइयां पैदा करेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गोटबाया राजपक्षे के बीच जो आदान-प्रदान हुआ है, उससे आशा बंधती है कि दोनों राष्ट्रों के रिश्तों में कोई खटास नहीं आएगी. ऐसा माना जा रहा है कि यदि सजित प्रेमदास जीत जाते तो हमारा तमिलनाडु भी खुश हो जाता. मैं आशा करता हूं कि गोटबाया, जैसा कि उन्होंने वादा किया है, तमिलों और मुसलमानों के साथ कोई अन्याय नहीं करेंगे.
उनकी जीत भी इसीलिए हुई है कि उत्तर और पूर्व में बसे अल्पसंख्यकों के अलावा शेष श्रीलंका के सिंहलियों ने उन्हें प्रचंड बहुमत से जिताया है. श्रीलंका के 70 प्रतिशत सिंहलियों ने गोटबाया को जिताकर यह बता दिया है कि पिछले साल ईस्टर पर चर्च में हुए हत्याकांड जैसी आतंकी घटनाएं अब नहीं होंगी. गोटबाया कट्टर बौद्ध हैं.
राजपक्षे परिवार से मोदी का संपर्कबना हुआ है. महिंद्रा राजपक्षे उनसे दो बार मिल चुके हैं. भारत और श्रीलंका के संबंध इतने गहरे हैं कि कुछ तात्कालिक कारण उन्हें सदा के लिए खराब नहीं कर सकते. अच्छी बात यह है कि भारत आने का निमंत्रण स्वीकार कर गोटबाया ने अच्छा संकेत दिया है.