खाद्य सुरक्षा पर मंडरा रहा खतरा
By पंकज चतुर्वेदी | Published: December 18, 2021 10:16 AM2021-12-18T10:16:51+5:302021-12-18T10:17:05+5:30
पश्चिम बंगाल में 62 हजार हेक्टेयर खेत सूने हो गए तो केरल में 42 हजार हेक्टेयर से किसानों का मन उचट गया.
भले ही तीन कृषि कानून वापस होने के बाद किसान घर लौट गए हों लेकिन गंभीरता से विचार करें तो भारत की अर्थ नीति का आधार खेती-किसानी ही खतरे में है और संकट इतना गहरा है कि देश की बढ़ती आबादी के लिए कहीं पेट भरना एक नया संकट न बन जाए. आजादी के बाद देश अन्न पर आत्मनिर्भरता न होने की त्रसदी एक बार भुगत चुका है. आज जिस तरह खेती की जमीन तेजी से अन्य उपयोग में बदली जा रही है, किसान का खेती से मन उचाट हो रहा है, भारत पर यह खतरा बढ़ता जा रहा है कि कहीं खाद्य सुरक्षा पर खतरा न खड़ा हो जाए. यही नहीं, खेत सिकुड़ने का असर भारत के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने पर भी पड़ रहा है.
भारत के ग्रामीण विकास मंत्रलय के भूमि संसाधन विभाग और इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा जारी ‘वेस्टलैंड एटलस-2019’ में उल्लेखित बंजर जमीन को खेती लायक बदलने की सरकारी गौरव गाथाओं के बीच यह दुखद तथ्य भी छुपा है कि हमारे देश में खेती के लिए जमीन साल-दर-साल कम हो रही है, जबकि आबादी बढ़ने से खाद्य की मांग बढ़ रही है.
सरकार भी मानती है कि पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य में देखते ही देखते 14 हजार हेक्टेयर अर्थात कुल जमीन का 0.33 प्रतिशत पर खेती बंद हो गई. पश्चिम बंगाल में 62 हजार हेक्टेयर खेत सूने हो गए तो केरल में 42 हजार हेक्टेयर से किसानों का मन उचट गया. देश के सबसे बड़े खेतों वाले राज्य उत्तर प्रदेश का यह आंकड़ा तो और भी ज्यादा खतरनाक है कि राज्य में विकास के नाम पर हर साल 48 हजार हेक्टेयर खेती की जमीन को उजाड़ा जा रहा है.
आखिर खेत की जमीन कौन खा जाता है? इसके मूल कारण तो खेती का अलाभकारी कार्य होना, उत्पाद का माकूल दाम न मिलना, मेहनत की सुरक्षा आदि तो हैं ही, विकास ने सबसे ज्यादा खेतों की हरियाली का दमन किया है. पूरे देश में इस समय बन रहे या प्रस्तावित छह औद्योगिक कॉरीडोर के लिए कोई 20.14 करोड़ हेक्टेयर जमीन की बलि चढ़ेगी. जाहिर है इसमें खेत भी होंगे. जरा सोचिए, जो देश सन् 2031 तक डेढ़ सौ करोड़ की आबादी पार कर जाएगा, वहां की खाद्य सुरक्षा बगैर खेती का इजाफा किए कैसे संभव होगी.
किसानों के प्रति अपनी चिंता को दर्शाने के लिए सरकार के प्रयास अधिकांशत: उसकी चिंताओं में इजाफा ही कर रहे हैं. इसके बावजूद सरकार चाहती है कि किसान पारंपरिक खेती के तरीके को छोड़ नई तकनीक अपनाए. इससे खेती की लागत बढ़ रही है और इसकी तुलना में लाभ घट रहा है.