अवधेश कुमार का ब्लॉग: देश की मुखर होती विदेश नीति
By अवधेश कुमार | Published: May 21, 2022 12:43 PM2022-05-21T12:43:01+5:302022-05-21T12:46:56+5:30
आपको बता दें कि नॉर्वे के विदेश मंत्री ने यूक्रेन पर रूसी हमले में भारत की भूमिका पर जब प्रश्न उठाया तो जयशंकर ने उन्हें जवाब देते हुए कहा याद कि कीजिए कि अफगानिस्तान में क्या हुआ?
विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत के एक बड़े वर्ग के हीरो बन गए हैं. पिछले दिनों उन्होंने जिस तरह बयान दिया, द्विपक्षीय-बहुपक्षीय वार्ताओं में जो कहा और पत्रकारों के प्रश्नों के जैसे उत्तर दिए वैसे आमतौर पर वैदेशिक मामले में भारत से सुने नहीं जाते. आपको बता दें कि जयशंकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ 11 अप्रैल को टू प्लस टू बातचीत के लिए अमेरिका गए थे.
रूस से तेल खरीदने वाले सवाल पर क्या कहा विदेश मंत्री जयशंकर ने
एक पत्रकार ने रूस से भारत के तेल खरीदने पर सवाल पूछा तो जयशंकर ने कहा कि भारत रूस से जितना तेल एक महीने में खरीदता है, उतना यूरोप एक दोपहर में खरीद लेता है. उसी पत्रकार वार्ता में अमेरिकी विदेश मंत्री ने कह दिया कि भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर उनकी नजर है.
भारत में मानवाधिकारों को लेकर क्या कहा जयशंकर ने
ब्लिंकन के इस वक्तव्य पर भारतीय पत्रकारों ने जयशंकर से प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने कहा कि जिस तरह से अमेरिका भारत में मानवाधिकारों को लेकर अपनी राय रखता है, उसी तरह से भारत भी अमेरिका में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर अपना विचार रखता है. हमारी भी उनके यहां मानवाधिकारों पर नजर है.
जयशंकर ने नॉर्वे के विदेश मंत्री के सवाल पर क्या कहा
ये सारे बयान सुर्खियों में थे ही कि 26 अप्रैल को रायसीना डायलॉग में उनके बयान फिर चर्चा में आ गए. उसमें नॉर्वे के विदेश मंत्री ने यूक्रेन पर रूसी हमले में भारत की भूमिका पर प्रश्न उठाया तो जयशंकर ने कहा याद कीजिए कि अफगानिस्तान में क्या हुआ? यहां की पूरी सिविल सोसायटी को विश्व ने छोड़ दिया.
विदेश मंत्री जयशंकर की विदेश नीति
जनप्रतिक्रियाओं को देखने के बाद पहला निष्कर्ष यही आएगा कि अमेरिका और यूरोप को जिस ढंग से जयशंकर ने खरी-खरी सुनाई, वैसा ही भारत के लोग चाहते हैं. एक बार आपने सुस्पष्ट होकर उत्तर देना शुरू किया और साथ ही आंतरिक बातचीत में अपने लहजे को बेहतर रखकर उपयोगिता साबित करते हुए संबंधों को ठीक पटरी पर ले चले तो किसी देश से संबंध भी नहीं बिगड़ता. एस. जयशंकर की मुखरता व दो टूक शब्दों में दिए जा रहे वक्तव्य इसी व्यावहारिक राष्ट्रहित पर आधारित विदेश नीति के प्रतीक हैं.