रमेश ठाकुर का ब्लॉग: इस बार वर्चुअल राखी से ही करना होगा संतोष

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 3, 2020 06:01 AM2020-08-03T06:01:05+5:302020-08-03T06:01:05+5:30

भाई-बहनों को अबकी बार वर्चुअल रक्षाबंधन से ही संतोष करना होगा. पिछले सात-आठ महीनों से कोरोना का भय समूचे संसार में व्याप्त है. सभी त्यौहार,  शादी-विवाह समारोह आदि कार्यक्रमों में वर्चुअलरूपी खानापूर्ति हो रही है.

In Coronavirus time you will have to be satisfied with virtual online Raksha Bandhan celebration | रमेश ठाकुर का ब्लॉग: इस बार वर्चुअल राखी से ही करना होगा संतोष

प्रतीकात्मक तस्वीर

रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट रिश्तों का एहसास कराता है. बहन अपने भाई की कलाई पर पवित्न धागा बांधकर अपने लिए रक्षा का वचन लेती है, उसे रक्षाबंधन कहा जाता है. लेकिन इस बार ये त्यौहार कुछ फीका सा है, पूरे संसार में फैली वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते. कोरोना से बचाव के लिए लोग सतर्कता बरतते हुए अपने-अपने घरों में हैं, इसलिए भाई-बहनों का मिलना इस बार राखी पर कम ही होगा.

भाई-बहनों को अबकी बार वर्चुअल रक्षाबंधन से ही संतोष करना होगा. पिछले सात-आठ महीनों से कोरोना का भय समूचे संसार में व्याप्त है. सभी त्यौहार,  शादी-विवाह समारोह आदि कार्यक्रमों में वर्चुअलरूपी खानापूर्ति हो रही है. वर्चुअल और डिजिटल सिस्टम में परंपरागत तरीकों जैसा आस्वाद नहीं, लेकिन संकट का समय है, गुजारना तो होगा ही. राखी के त्यौहार का स्वरूप वैसे भी पिछले कुछ दशकों में काफी बदल चुका है. त्यौहार पर आधुनिकता का रंग चढ़ गया है. रक्षाबंधन पर पिछले कुछ वर्षो से चाइनीज राखियों ने कब्जा किया हुआ था. बार्डर पर भारत-चीन की तनातनी के बाद इस बार भारतीय बाजारों में उनके सामानों का बहिष्कार शुरू हो गया है. चीन में निर्मित राखियां बाजारों से गायब हैं.  

भारतीय सभ्यता में रक्षाबंधन का बड़ा महत्व माना गया है. राखी का वास्तविक अर्थ सामने वाले को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना होता है. इस दिन बहनें भाइयों को सूत की राखी बांधकर अपनी जीवन रक्षा का दायित्व उन पर सौंपती हैं. एक जमाना था जब कुछ ही पैसों में बहनें बाजारों से यह धागा खरीदकर भाइयों के हाथों में बांध कर उनसे सुरक्षा और रक्षा का वचन लेती थीं. पर, मौजूदा समय में रक्षाबंधन  बाजार का हिस्सा बन गया है.

बदलाव की बात करें तो एक वक्त था जब बाजार में सिर्फ सूत या रेशम से बनी राखियां ही मिला करती थीं. गरीब व मध्यम वर्ग के लोग कच्चे सूत की डोरी बांध या बंधवा कर ही रक्षाबंधन का त्यौहार बड़े चाव के साथ मना लेते थे. वहीं अमीर लोग रेशम की या जरी की राखियों से राखी का त्यौहार मनाते थे. महलों में राजा-महाराजा चांदी से बनी राखियां बंधवाना पसंद करते थे. लेकिन अब राखी के सूत की डोर कमजोर पड़ गई है, उसकी जगह पर अब चांदी की और महंगी से महंगी राखियों ने कब्जा कर लिया है.

भाई-बहन के पावन प्रेम का प्रतीक यह पर्व सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है और अनेक कथाएं इस त्यौहार से जुड़ी हैं. शनि के इंद्र को रक्षा सूत्न बांधने से लेकर द्रौपदी के कृष्ण की उंगली पर पट्टी बांधने की अनेकानेक कहानियां रक्षाबंधन की हैं. वहीं, राजा बलि का नाम लेकर तो आज भी हरेक धार्मिक कृत्य में पंडित यजमान को डोरी बांधते हैं. इन सभी का एक ही आशय है, अपने प्रिय की रक्षा की भावना व उसके लिए शुभकामनाएं देना.

Web Title: In Coronavirus time you will have to be satisfied with virtual online Raksha Bandhan celebration

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