संतोष देसाई का ब्लॉगः कल्पनाशीलता और अमीरों की गरीबी 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 17, 2019 08:47 PM2019-01-17T20:47:14+5:302019-01-17T20:47:14+5:30

सदुपयोग के संदर्भ में कहा जा सकता है कि पैसा जितना ज्यादा खर्च किया जाता है, उससे हासिल की जाने वाली चीजें उतनी ही अमूर्त होती हैं. परोपकार एक ऐसा तरीका है जिसमें व्यय किए जाने वाले धन में अपने आप में बेहतर महसूस कराने की पूर्ण अमूर्त क्षमता है- उन लोगों पर पैसे खर्च करने का फैसला करके, जिन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है. 

imagination and poverty of the rich in india | संतोष देसाई का ब्लॉगः कल्पनाशीलता और अमीरों की गरीबी 

संतोष देसाई का ब्लॉगः कल्पनाशीलता और अमीरों की गरीबी 

संतोष देसाई 

क्या किसी को पैसा खर्च करना सीखने की जरूरत है, खासकर तब जब किसी के पास बहुत सारी संपत्ति हो? निश्चित रूप से यह एक ऐसी समस्या है, जिसका हममें से बहुत कम लोगों को सामना करना पड़ेगा. लेकिन पिछले कुछ दिनों में हमने जिस तरह से कुछ बेशुमार खर्च वाले महंगे विवाह समारोहों को देखा है, उससे ऐसा लगता है कि पैसा खर्च करना भी एक कौशल है जिसमें हर कोई कुशल नहीं हो सकता.

इस बहस में उलझने का कोई मतलब नहीं है कि धन का ऐसा बेशुमार खर्च अच्छा है या बुरा. सिद्धांत रूप में, असीमित धन खर्च करने की क्षमता किसी की भी कल्पना को असीमित उड़ान का अवसर देती है. ऐसा व्यक्ति वह सब कुछ कर सकता है जिसकी कल्पना की जाए. लेकिन व्यवहार में अत्यधिक धन अक्सर कल्पना की गरीबी को प्रकट करता है. कई  बार देखने में आता है कि बड़े-बड़े आयोजनों में पैसा तो बेशुमार खर्च किया जाता है, लेकिन कल्पनाशीलता का कम ही उपयोग किया जाता है. 

सदुपयोग के संदर्भ में कहा जा सकता है कि पैसा जितना ज्यादा खर्च किया जाता है, उससे हासिल की जाने वाली चीजें उतनी ही अमूर्त होती हैं. परोपकार एक ऐसा तरीका है जिसमें व्यय किए जाने वाले धन में अपने आप में बेहतर महसूस कराने की पूर्ण अमूर्त क्षमता है- उन लोगों पर पैसे खर्च करने का फैसला करके, जिन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है. 

आखिरकार धन किसी के पास भले ही अथाह हो लेकिन स्व तो परिमित है. बेशक, हर कोई इस रास्ते पर जाने को तैयार नहीं होता, इसके लिए मन में संतुष्टि के भाव की जरूरत होती है, जो कि ऐसे देश में आना आसान नहीं है जहां नवधनाढय़ वर्ग अभी तक अपनी नवसमृद्धि की चकाचौंध से बाहर नहीं आया हो.

दूसरी संभावना, जो उसी उद्देश्य को पूरा करती है, वह है कला को संरक्षण देना या स्थायी सांस्कृतिक मूल्यों का निर्माण. अत्यधिक अमीर लोगों ने ऐसे कलात्मक प्रयासों का समर्थन किया है. अतीत में एक समय ऐसा भी था जब समय पर अमिट छाप छोड़ने के लिए विशाल स्मारक बनाए गए और विरासत को अमर बनाने का प्रयास किया गया. पैसे वाले बहुत सारे लोग इसे अच्छी तरह से खर्च करने की जिम्मेदारी ले सकते हों या नहीं, लेकिन निश्चित रूप से उनके पास यह निर्धारित करने के लिए विकल्प होता है कि वे किस चीज को महत्व दें. पैसा कैसे खर्च किया जाता है यह किसी की कल्पनाशीलता को मापने का जरिया हो सकता है और यह भी कि उसकी स्व की भावना कितनी व्यापक है.

Web Title: imagination and poverty of the rich in india

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