विजय दर्डा का ब्लॉगः गुनहगारों को सजा मिलने में देरी से फैलता है गुस्सा

By विजय दर्डा | Published: December 9, 2019 08:07 AM2019-12-09T08:07:12+5:302019-12-09T08:07:12+5:30

निर्भया कांड के बाद बहुत से कानून बदले गए थे. लोगों को भरोसा हुआ था कि अपराधी कानून से डरेंगे. उन्हें मौत का खौफ होगा लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा है कि अपराधियों में कोई खौफ पैदा हुआ है. अभी उन्नाव में एक रेप पीड़िता को जिंदा जला दिया गया. आरोपी जमानत पर बाहर छूटे थे. 

hyderabad rape murder case: justice delayed punishing culprit anger | विजय दर्डा का ब्लॉगः गुनहगारों को सजा मिलने में देरी से फैलता है गुस्सा

Photo ANI

हैदराबाद में बलात्कार और जिंदा जला देने के नृशंस अपराध के बाद पुलिस को लेकर जो गुस्सा फूटा था वह आरोपियों के एनकाउंटर के साथ ही न केवल खत्म हो गया बल्कि लोगों ने पुलिसवालों को गले से लगा लिया, फूलों की बारिश की और मुंह मीठा कराया! किसी एनकाउंटर के बाद पुलिस के प्रति ऐसा प्रेम इससे पहले मैंने न कहीं देखा और न सुना! तो इस पब्लिक सेंटिमेंट का मतलब क्या है? जवाब बड़ा सीधा सा है. इंसाफ में विलंब से लोग इतने आजिज आ चुके हैं कि पुलिस की ‘त्वरित कार्रवाई’ उन्हें पसंद आ गई.

सवाल यह है कि लोगों को गुस्सा आए भी क्यों न! आखिर इंसाफ में इतना विलंब क्यों? हमारे सामने  निर्भया कांड का उदाहरण है. दिसंबर 2012 में दिल्ली की एक बस में निर्भया के साथ गैंगरेप हुआ था. नरपिशाचों ने उसके निजी अंगों को क्षत-विक्षत कर दिया था. उस घटना ने देश-दुनिया को हिला कर रख दिया था. 

फास्ट ट्रैक कोर्ट ने नौ महीने के भीतर आरोपियों को मौत की सजा भी सुना दी थी. एक नाबालिग था, वह तीन साल की सजा के बाद छूट गया. एक की मौत हो गई लेकिन बाकी चार अभी भी जिंदा हैं. गृह मंत्रलय ने अब उनकी याचिका राष्ट्रपति के पास भेजी है और याचिका खारिज करने का आग्रह किया है. ..और यह देरी आज की नहीं है. 1990 में कोलकाता की 14 वर्षीय बच्ची हेतल पारेख के साथ बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी. आरोपी धनंजय चटर्जी को फांसी पर चढ़ाने में 13 साल लग गए. ऐसे और भी कई उदाहरण हैं.  

निर्भया कांड के बाद बहुत से कानून बदले गए थे. लोगों को भरोसा हुआ था कि अपराधी कानून से डरेंगे. उन्हें मौत का खौफ होगा लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा है कि अपराधियों में कोई खौफ पैदा हुआ है. अभी उन्नाव में एक रेप पीड़िता को जिंदा जला दिया गया. आरोपी जमानत पर बाहर छूटे थे. 

पिछले साल उत्तर प्रदेश के बाहुबली कुलदीप सिंह सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की की कार को ट्रक ने टक्कर मार दी. उसकी दो चाचियों की मौत हो गई. वकील जख्मी हो गया. अभी-अभी बक्सर में एक लड़की को रेप के बाद जिंदा जला दिया गया. आप देश के किसी भी हिस्से से छपने वाले अखबार को देखें, उसमें हर रोज रेप की कोई न कोई घटना जरूर छपी होती है. ..और जब मैं यह कॉलम लिख रहा हूं तब भी देश में कहीं न कहीं कोई बेटी बलात्कारियों का शिकार हो रही होगी.

जो सबसे ताजा सरकारी आंकड़ा उपलब्ध है वह 2017 का है. कायदे से 2018 का आंकड़ा अब तक सार्वजनिक हो जाना चाहिए था लेकिन हमारे यहां आंकड़ों की लेटलतीफी कोई नई बात नहीं है. तो 2017 के आंकड़े बताते हैं कि उस साल पूरे देश में बलात्कार के 32559 मामले दर्ज हुए, यानी हर रोज करीब 90 मामले. इसमें वो मामले शामिल नहीं हैं जिनमें रेप के बाद हत्या कर दी गई. 

ऐसा इसलिए क्योंकि अपराध का आंकड़ा तैयार करते वक्त इस पुराने नियम का पालन किया जाता है कि जो सबसे गंभीर अपराध हो, उसी श्रेणी में घटना को दर्ज किया जाए. उदाहरण के लिए यदि रेप और मर्डर हुआ है तो उस घटना को मर्डर में गिना जाएगा. आंकड़े ये भी बताते हैं कि निर्भया कांड के बाद अकेले दिल्ली में ही बलात्कार की घटनाएं सौ फीसदी से ज्यादा बढ़ी हैं. जब दिल्ली का ये हाल है तो पूरे देश का क्या हाल होगा, इस बात का केवल अंदाजा लगाया जा सकता है.

दुनिया के स्तर पर देखें तो रेप के मामलों में भारत पांचवें क्रम पर है. रेप के लिए कुख्यात टॉप 10 में हमारा कोई भी पड़ोसी नहीं है. दरअसल इसका सबसे बड़ा कारण इंसाफ की गति में विलंब को ही मानना चाहिए. हमारे पास 2017 का जो सरकारी आंकड़ा उपलब्ध है उससे यह बात साफ जाहिर होती है कि बलात्कार के मामले न्यायालय में पेंडिंग होते जा रहे हैं. 2017 में बलात्कार के करीब 1 लाख 13 हजार 6 सौ मामले पहले से लंबित थे. इनमें 2017 के 32559 मामले और जोड़ दीजिए तो आंकड़ा पहुंच जाता है 146159. पूरे साल में केवल 18300 मामलों में फैसला दिया गया. इस तरह 2018 के लिए 127859 मामले लंबित रह गए.  नया आंकड़ा आने पर ही पता चलेगा कि 2018 में क्या स्थिति रही और अभी कितने मामले लंबित हैं.

लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि राजनीतिक मामलों में अदालतें यदि रविवार को भी सुनवाई करती हैं और कई मसलों पर रात में भी सुनवाई हुई है यानी न्यायालय ने तत्परता दिखाई है तो रेप जैसे नृशंस  मामलों में इस तरह की सुनवाई क्यों नहीं हो सकती कि तत्काल फैसला आ जाए! शासन को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि फैसला तत्काल आए. और सजा भी तत्काल मिले. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रेप के मामलों में अव्वल मध्यप्रदेश में 40 बलात्कारियों को फांसी की सजा मिल चुकी है लेकिन उन्हें अभी तक फांसी पर नहीं चढ़ाया गया है.  स्थिति ऐसी होगी तो डर क्यों पैदा होगा. रेप को रोकना है तो डर..डर और डर पैदा करना जरूरी है. ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि रेप करने की बात सोचने वाले भी कांप उठें.

एक और महत्वपूर्ण मसला है दर्ज होने वाले मामलों में कन्विक्शन रेट का. 2014 के 28 प्रतिशत की तुलना में 2017 में कन्विक्शन रेट हालांकि 32.2 प्रतिशत तक पहुंचा लेकिन इसे पर्याप्त तो नहीं कहा जा सकता. कम कन्विक्शन रेट पर पुलिस को गंभीरता से विचार करना होगा क्योंकि अदालतें सबूत पर फैसला देती हैं. यदि आरोपी छूटते रहेंगे या इंसाफ में विलंब होता रहेगा तो लोगों का गुस्सा भड़केगा ही.
और अंत में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंदजी ने बिल्कुल सही कहा है कि ‘पॉक्सो एक्ट के तहत दुष्कर्म के दोषियों को दया याचिका दाखिल करने का हक नहीं मिलना चाहिए.’ 

निश्चित रूप से संसद को इस पर विचार करना चाहिए. राष्ट्रपतिजी की ये बात भी सही है कि ‘हर माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे अपने बेटों को महिलाओं का सम्मान करना सिखाएं.’ कहने की जरूरत नहीं कि बेटों को संस्कार मिलने की शुरुआत घर से ही होती है और सही
संस्कार देना हर माता-पिता का कर्तव्य है.

Web Title: hyderabad rape murder case: justice delayed punishing culprit anger

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